जोशीमठ: सरकार ने संस्थानों के मीडिया से बातचीत पर रोक लगाई; इसरो ने धंसाव संबंधी रिपोर्ट वापस ली

उत्तराखंड सरकार के निर्देश पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने दर्जन भर सरकारी संस्थानों और वैज्ञानिक संगठनों को पत्र लिखकर कहा है कि वे जोशीमठ में भू-धंसाव के संबंध में मीडिया से बातचीत या सोशल मीडिया पर डेटा साझा न करें. इसके बाद ज़मीन धंसने के संबंध में भारतीय अतंरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा जारी एक रिपोर्ट को वेबसाइट से हटा दिया गया है.

जोशीमठ में जमीन धंसाव के कारण क्षतिग्रस्त मकान. (फाइल फोटो: पीटीआई)

उत्तराखंड सरकार के निर्देश पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने दर्जन भर सरकारी संस्थानों और वैज्ञानिक संगठनों को पत्र लिखकर कहा है कि वे जोशीमठ में भू-धंसाव के संबंध में मीडिया से बातचीत या सोशल मीडिया पर डेटा साझा न करें. इसके बाद ज़मीन धंसने के संबंध में भारतीय अतंरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा जारी एक रिपोर्ट को वेबसाइट से हटा दिया गया है.

जोशीमठ में जमीन धंसाव के कारण क्षतिग्रस्त मकान. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने दर्जन भर सरकारी संस्थानों और वैज्ञानिक संगठनों को उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ शहर में भू-धंसाव के संबंध में मीडिया से बातचीत या सोशल मीडिया पर डेटा साझा नहीं करने का निर्देश दिया है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, निर्देश में कहा गया है कि उनके द्वारा की गई ‘स्थिति की व्याख्या’ न सिर्फ प्रभावित निवासियों, बल्कि देश के नागरिकों के बीच भी भ्रम पैदा कर रही है.

भारतीय अतंरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी) द्वारा शुक्रवार (13 जनवरी) को जारी एक प्रारंभिक रिपोर्ट, जो जोशीमठ के कुछ हिस्सों में ‘तेजी से धंसाव’ की घटना दिखाती है, को एनआरएससी की वेबसाइट से हटा दिया गया है.

प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2022 से 7 महीनों की अवधि में जोशीमठ शहर के भीतर 8.9 सेंटीमीटर तक ‘धीमा धंसाव’ दर्ज किया गया था. इसरो के ‘कार्टोसेट-2एस’ उपग्रह के डेटा ने 27 दिसंबर 2022 से 8 जनवरी 2023 के बीच सिर्फ 12 दिनों में करीब 5.4 सेंटीमीटर ‘तीव्र धंसाव’ दर्ज किया था.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शहर के मध्य भाग में तेजी से धंसाव हुआ है. इसमें कहा गया है मुख्य धंसाव क्षेत्र जोशीमठ-औली रोड के पास 2,180 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.

शनिवार को एनआरएससी के अधिकारी इस पर टिप्पणी करने के लिए उपलब्ध नहीं थे कि रिपोर्ट क्यों हटाई गई. इसरो के प्रवक्ता को भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं मिला.

लेकिन उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत ने संडे एक्सप्रेस को बताया कि इसरो की रिपोर्ट को लेकर जोशीमठ में दहशत है, इसलिए उन्होंने इसरो के निदेशक से बात की और उनसे रिपोर्ट हटाने को कहा.

रावत ने कहा, ‘वेबसाइट पर यह कहा गया था कि भू-धंसाव हो रहा है और उसने यहां (जोशीमठ में) दहशत पैदा कर दी. इसलिए मैंने उनसे केवल आधिकारिक बयान देने के लिए कहा और वेबसाइट पर ऐसे ही कुछ भी पोस्ट नहीं करने को कहा. मैंने उनसे केवल सच बोलने के लिए कहा और अगर ऐसा नहीं है तो इसे वेबसाइट से हटा दें. मैंने उनसे अनुरोध किया कि वे आधिकारिक रिपोर्ट दें और जब तक कोई आधिकारिक रिपोर्ट न हो तब तक दहशत पैदा न करें.’

धंसाव के संबंध में इसरो द्वारा जारी की गई तस्वीर, जिसे अब हटा लिया गया है.

उन्होंने कहा कि एनडीएमए का पत्र तब जारी किया गया जब उत्तराखंड सरकार ने एजेंसी से कहा कि जोशीमठ से संबंधित किसी भी रिपोर्ट को पहले केंद्र या राज्य सरकार से मंजूरी लेनी चाहिए.

रावत ने कहा, ‘हमने एनडीएमए से अनुरोध किया है. मैंने व्यक्तिगत रूप से इसरो के निदेशक से बात की है. इसके पीछे मुख्य मकसद यह सुनिश्चित करना है कि लोगों में कोई दहशत न हो. यहां के लोग पहले से ही परेशान हैं.’

जोशीमठ के संबंध में मीडिया से बातचीत या सोशल मीडिया पर डेटा साझा करने पर रोक लगाने वाला एनडीएमए कार्यालय का ज्ञापन शुक्रवार को जारी किया गया.

इसमें रुड़की स्थित केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान, कोलकाता स्थित भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई), हैदराबाद स्थित एनआरएससी-इसरो, नई दिल्ली स्थित केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी), देहरादून स्थित भारतीय सर्वेयर जनरल (एसओआई), इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (आईआईआरएस), हैदराबाद का राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई), रुड़की स्थित राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच), देहरादून का वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी), आईआईटी रुड़की, नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम), देहरादून स्थित उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) के प्रमुखों को मीडिया से बाचतीत और आंकड़े साझा करने से बचने के लिए कहा गया है.

एनडीएमए ने अपने कार्यालय ज्ञापन में कहा, ‘यह देखा गया है कि विभिन्न सरकारी संस्थान सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में विषयवस्तु से संबंधित डेटा जारी कर रहे हैं. साथ ही वे मीडिया में अपने मुताबिक स्थिति व्याख्या कर रहे हैं. यह न केवल प्रभावित निवासियों के बीच बल्कि देश के नागरिकों के बीच भी भ्रम पैदा कर रहा है.’

इसमें कहा गया है कि 12 जनवरी 2023 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई बैठक के दौरान इस मुद्दे पर प्रकाश डाला गया था.

इसमें कहा गया है, ‘इसके अनुसार 12 जनवरी 2023 को एनडीएमए के सदस्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक के दौरान भी इस पर चर्चा की गई. साथ ही जोशीमठ में जमीन धंसाव के आकलन के लिए एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया गया है.’

एनडीएमए ने कहा, ‘आपसे अनुरोध है कि इस मामले को लेकर अपने संगठन को संवेदनशील बनाएं और एनडीएमए द्वारा विशेषज्ञ समूह की अंतिम रिपोर्ट जारी होने तक मीडिया मंचों पर कुछ भी पोस्ट करने से बचें.’

एनडीएमए के आदेश और इसमें उत्तराखंड सरकार की भूमिका पर सवाल उठाते हुए राज्य कांग्रेस अध्यक्ष करण महरा ने राज्य सरकार पर ‘इस तथ्य को छिपाने का आरोप लगाया है कि उन्होंने कभी विशेषज्ञों की बात नहीं सुनी और किसी भी विशेषज्ञ के सुझाव को कभी लागू नहीं किया गया.’

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है. जोशीमठ में जो हो रहा है, वह ऐसा कुछ है जिस पर बहुत अधिक जन जागरूकता की जरूरत है. जब तमाम तरह के विचार और सुझाव सामने आएंगे, तभी दूसरी एजेंसियों के सामने चीजें स्पष्ट होंगी. यदि वैकल्पिक विचारों का स्वागत नहीं किया जाता है, तो यह अच्छी बात नहीं है.’

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ट्वीट किया, ‘संकट को हल करने और लोगों की समस्याओं का समाधान खोजने के बजाय सरकारी एजेंसियां ​​इसरो की रिपोर्ट पर प्रतिबंध लगा रही हैं और अपने अधिकारियों को मीडिया से बातचीत करने से रोक रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से आग्रह है कि जो वास्तविक स्थिति बता रहे हैं, उनको सजा मत दीजिए (डोंट शूट द मैसेंजर).’

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, ‘वे एक संवैधानिक संस्था से दूसरे पर हमला करवाते हैं. अब राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, इसरो को चुप रहने के लिए कह रहा है.’

इस बीच रुड़की स्थित केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) की तकनीकी निगरानी में दरारों के कारण ऊपरी हिस्से से एक दूसरे से खतरनाक तरीके से जुड़ गए दो होटलों – सात मंजिला ‘मलारी इन’ और पांच मंजिला ‘माउंट व्यू’ को तोड़ने की कार्रवाई जारी रही.

इन दोनों होटलों के कारण उनके नीचे स्थित करीब एक दर्जन घरों को खतरा उत्पन्न हो गया था.

उधर, चमोली में जिला आपदा प्र​बंधन प्राधिकरण ने बताया कि जोशीमठ के 25 और परिवारों को शुक्रवार को अस्थाई राहत शिविरों में स्थानांतरित किया गया. हालांकि, उन भवनों की संख्या अभी 760 ही है, जिनमें दरारें आई हैं और इनमें से 147 को असुरक्षित घोषित किया गया है.

वहीं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि अब तक जोशीमठ के 90 परिवारों को ‘स्थानांतरित’ किया गया है.

उन्होंने फिर साफ किया कि अभी किसी के मकान को तोड़ा नहीं जा रहा है और केवल आवश्यकतानुसार उन्हें खाली करवाया जा रहा है. इस संबंध में उन्होंने कहा कि जोशीमठ में सर्वेक्षण करने वाले दल अपना काम कर रहे हैं.

प्रभावितों की हरसंभव मदद के लिए अपनी सरकार की प्रतिबद्धता दोहराते हुए धामी ने कहा कि प्रभावित परिवारों को 1.5 लाख रुपये की अंतरिम सहायता दी जा रही है और बृहस्पतिवार (12 जनवरी) से इसका वितरण भी शुरू कर दिया गया है.

उन्होंने कहा कि जोशीमठ में पुनर्वास की कार्रवाई पूरी योजना के साथ की जाएगी. उन्होंने कहा, ‘यह प्राकृतिक आपदा है और हम उसी के अनुसार फैसले ले रहे हैं.’

मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि वहां का जनजीवन सामान्य है और 60 प्रतिशत से ज्यादा चीजें सामान्य चल रही हैं.

इस बीच, मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में जोशीमठ में भू-धंसाव से प्रभावित लोगों को राहत पहुंचाने के लिए एक सप्ताह के भीतर राहत पैकेज प्रस्ताव तैयार कर केंद्र को भेजने तथा उन्हें मकान के किराए के रूप में दी जाने वाली धनराशि बढ़ाकर 5 हजार रुपये प्रतिमाह करने का निर्णय लिया गया.

जोशीमठ में धंसाव की चपेट में आए एक मकान के नीचे के हिस्से की मरम्मत करते कर्मचारी. (फोटो: पीटीआई)

प्रदेश के मुख्य सचिव सुखबीर सिंह संधु ने कहा कि अभी तक की रिपोर्ट के अनुसार, जोशीमठ के नीचे कठोर चट्टान नहीं है, इसलिए वहां भू-धंसाव हो रहा है.

उन्होंने कहा कि यही कारण है कि जिन शहरों के नीचे कठोर चट्टानें हैं, वहां जमीन धंसने की समस्या नहीं होती हैं.

संधु ने कहा कि 1976 में भी जोशीमठ में थोड़ी जमीन धंसने की बात सामने आई थी.

उन्होंने कहा कि जोशीमठ में पानी निकलने को लेकर विभिन्न संस्थान जांच में लगे हैं.

संधु ने कहा कि विशेषज्ञ जोशीमठ में सभी पहलुओं का अध्ययन कर रहे हैं और उनकी रिपोर्ट आने के बाद यह मामला राज्य मंत्रिमंडल के सामने रखा जाएगा और उसके आधार पर ही कोई निर्णय किया जाएगा.

उन्होंने कहा कि विभिन्न संस्थानों को जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया है और उन सभी की रिपोर्ट के अध्ययन के लिए एक समिति बनाई जाएगी जो अपना निष्कर्ष देगी.

मालूम हो कि उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित जोशीमठ को भूस्खलन और धंसाव क्षेत्र घोषित कर दिया गया है तथा दरकते शहर के क्षतिग्रस्त घरों में रह रहे परिवारों को अस्थायी राहत केंद्रों में पहुंचाया गया है.

बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब जैसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों और अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग गंतव्य औली का प्रवेश द्वार कहलाने वाला जोशीमठ शहर आपदा के कगार पर खड़ा है.

आदिगुरु शंकराचार्य की तपोभूमि के रूप में जाना जाने वाला जोशीमठ निर्माण गतिविधियों के कारण धीरे-धीरे दरक रहा है और इसके घरों, सड़कों तथा खेतों में बड़ी-बड़ी दरारें आ रही हैं. तमाम घर धंस गए हैं.

नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीसीपी) की पनबिजली परियोजना समेत शहर में बड़े पैमाने पर चल रहीं निर्माण गतिविधियों के कारण इस शहर की इमारतों में दरारें पड़ने संबंधी चेतावनियों की अनदेखी करने को लेकर स्थानीय लोगों में सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश है.

स्थानीय लोग इमारतों की खतरनाक स्थिति के लिए मुख्यत: एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जैसी परियोजनाओं और अन्य बड़ी निर्माण गतिविधियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.

बुनियादी ढांचे की तुलना में चार धाम में तीर्थ यात्रियों की संख्या अधिक: एनजीटी समिति

इंडियन एक्सप्रेस की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, तीर्थयात्रियों और खच्चरों/घोड़ों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि के कारण ‘उत्तराखंड के संवेदनशील और समृद्ध जैव विविधता क्षेत्रों में पवित्र तीर्थ स्थलों के पास और आसपास होने वाली पारिस्थितिक क्षति’ की जांच के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा गठित एक संयुक्त समिति ने पाया है कि क्षेत्र में अपशिष्ट प्रबंधन बुनियादी ढांचे का अभाव है.

गौरतलब है कि पिछले साल अप्रैल से नवंबर के बीच 23 लाख से अधिक तीर्थयात्रियों ने चार धाम यात्रा की थी.

समिति ने 8 दिसंबर 2022 को अपनी रिपोर्ट एनजीटी को सौंपी थी.

एनजीटी के 12 अगस्त 2022 के एक आदेश के बाद गठित समिति ने चार धाम यात्रा के चार तीर्थ स्थलों – केदारनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री और हेमकुंड साहिब का सर्वेक्षण किया था.

समिति के सदस्यों में उत्तराखंड के पर्यावरण विभाग के उपनिदेशक डॉ. के. मोंडल, सीपीसीबी लखनऊ के अधिकारी रूना उरांव, उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी डॉ. आरके चतुर्वेदी और जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान (जीबीपीएनआईएचई) के एक वैज्ञानिक डॉ. सुमित राय शामिल थे. उन्होंने अक्टूबर 2022 में तीर्थ स्थलों का सर्वेक्षण किया था.

समिति की रिपोर्ट ‘उत्तराखंड के प्रमुख तीर्थ क्षेत्रों में भारी पर्यावरणीय क्षरण के मुद्दे के जमीनी मूल्यांकन’ में कहा गया है, ‘(समिति के) दौरे के दौरान यह पाया गया कि तीर्थयात्रियों के यातायात के प्रबंधन, ठोस कचरा, प्लास्टिक कचरा, और खच्चरों या घोड़ों की खाद के लिए मौजूद बुनियादी ढांचे की तुलना में अधिक तीर्थयात्री देखे गए.’

ट्रैकिंग के मार्गों पर घोड़ों के प्रवेश को विनियमित नहीं किया गया था. समिति की रिपोर्ट में कहा गया, ‘बड़ी संख्या में जानवर प्राचीन क्षेत्रों में पारिस्थितिक गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं.’

इसने कहा कि इन क्षेत्रों में घोड़ों के स्वास्थ्य और सुविधाओं के लिए उचित प्रबंधन और निगरानी के तरीके, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं. पानी और मिट्टी की गुणवत्ता पर डेटा उपलब्ध नहीं था और पर्यटकों व स्थानीय समुदाय को पर्यावरण पर पर्यटन के प्रभाव को लेकर जागरूकता की कमी थी.

समिति ने कहा, ‘संबंधित क्षेत्रों में जैव विविधता के नुकसान पर पर्यटक प्रवाह के प्रत्यक्ष प्रभाव पर अब तक कोई रिपोर्ट या शोध नहीं किया गया है.’

चार धाम यात्रा उत्तराखंड के उच्चतम रोजगार सृजकों में से एक है, जिसने 2019 में केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री जाने वाले लगभग 36 लाख तीर्थयात्रियों के साथ अनुमानित 1,100 करोड़ रुपये कमाए थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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