उत्तराखंड: ग्रामीणों का दावा- जोशीमठ जैसे हालात की राह पर सेलंग गांव

जोशीमठ से क़रीब पांच किलोमीटर दूर स्थित सेलंग गांव के लोगों को कहना है कि पिछले कुछ महीनों से खेतों और कई घरों में दरारें दिखाई दे रही हैं. ग्रामीण इसके लिए एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. उनके अनुसार, गांव के नीचे एनटीपीसी की नौ सुरंगें बनी हैं, जिससे गांव की नींव को नुकसान पहुंचा है.

एनटीपीसी की परियोजना के खिलाफ सेलंग गांव में लोग प्रदर्शन भी कर रहे हैं. (फोटो साभार: एएनआई)

जोशीमठ से क़रीब पांच किलोमीटर दूर स्थित सेलंग गांव के लोगों को कहना है कि पिछले कुछ महीनों से खेतों और कई घरों में दरारें दिखाई दे रही हैं. ग्रामीण इसके लिए एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. उनके अनुसार, गांव के नीचे एनटीपीसी की नौ सुरंगें बनी हैं, जिससे गांव की नींव को नुकसान पहुंचा है.

एनटीपीसी की परियोजना के खिलाफ सेलंग गांव में लोग प्रदर्शन भी कर रहे हैं. (फोटो साभार: एएनआई)

सेलंग: भू-धंसाव प्रभावित उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित जोशीमठ से करीब पांच किलोमीटर दूर स्थित गांव सेलंग में भी जोशीमठ जैसी स्थिति उत्पन्न होने की आशंका मंडरा रही है, क्योंकि पिछले कुछ महीनों से खेतों और कई घरों में दरारें दिखाई दे रही हैं.

बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच-58) पर स्थित सेलंग के निवासियों ने कहा कि वे डरे हुए हैं और जोशीमठ संकट ने उनके डर को और बढ़ा दिया है.

ग्रामीण अपनी दुर्दशा के लिए एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.

सेलंग निवासी विजेंद्र लाल ने कहा कि इस परियोजना की सुरंगें गांव के नीचे बनाई गई हैं. उन्होंने दावा किया कि इन सुरंगों में से एक के मुहाने के पास राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित एक होटल जुलाई, 2021 में ढह गया और नजदीक का पेट्रोल पंप भी आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुआ.

लाल ने कहा कि ढह गए होटल के पास स्थित घरों को भी खतरा है.

उन्होंने दावा किया, ‘गांव के नीचे एनटीपीसी की नौ सुरंगें बनी हैं. सुरंगों के निर्माण में बहुत सारे विस्फोटकों का इस्तेमाल किया गया था, जिससे गांव की नींव को नुकसान पहुंचा है.’

लगभग 15 घरों में दरारें आने का दावा करते हुए ग्रामीण ने कहा, ‘गांव की मुख्य बस्ती से 100 मीटर नीचे एक जल निकासी प्रणाली भी बनाई जा रही है, जिससे कुछ मीटर की दूरी पर गांव की ओर दरारें नजर आने लगी हैं.’

सेलंग गांव के वन पंचायत सरपंच शिशुपाल सिंह भंडारी ने कहा कि एनटीपीसी परियोजना के कारण निवासियों का जीवन दयनीय हो गया है.

भंडारी ने कहा, ‘कई आवेदन भेजे गए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.’

उन्होंने दावा किया, ‘नुकसान करीब एक दशक पहले उस समय शुरू हुआ था, जब एनटीपीसी ने इलाके में सुरंग खोदनी शुरू की थी. लोगों ने विरोध किया तो एनटीपीसी ने एक निजी कंपनी के माध्यम से घरों का बीमा करवाया. लेकिन, अब जब मकानों में दरारें आ रही हैं तो वह मकान मालिकों को मुआवजा देने से बच रहा है.’

भंडारी ने कहा कि एनटीपीसी परियोजना में काम करने वाले गांव के कुछ लोग सुरंगों के अंदर अक्सर किए जाने वाले विस्फोट के बारे में बताते रहते हैं.

उन्होंने कहा, ‘अगर ऐसा ही चलता रहा तो गांव में स्थिति और खराब हो जाएगी.

गांव की महिला मंगल दल की अध्यक्ष भवानी देवी ने कहा, सेलंग में स्थिति उतनी खराब नहीं है, जितनी जोशीमठ में है, लेकिन अगर सुधारात्मक कार्रवाई जल्द नहीं की गई तो इसका भी वही हश्र हो सकता है.’

मालूम हो कि उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित जोशीमठ को भूस्खलन और धंसाव क्षेत्र घोषित कर दिया गया है तथा दरकते शहर के क्षतिग्रस्त घरों में रह रहे परिवारों को अस्थायी राहत केंद्रों में पहुंचाया गया है.

बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब जैसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों और अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग गंतव्य औली का प्रवेश द्वार कहलाने वाला जोशीमठ शहर आपदा के कगार पर खड़ा है.

आदिगुरु शंकराचार्य की तपोभूमि के रूप में जाना जाने वाला जोशीमठ निर्माण गतिविधियों के कारण धीरे-धीरे दरक रहा है और इसके घरों, सड़कों तथा खेतों में बड़ी-बड़ी दरारें आ रही हैं. तमाम घर धंस गए हैं.

नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीसीपी) की पनबिजली परियोजना समेत शहर में बड़े पैमाने पर चल रहीं निर्माण गतिविधियों के कारण इस शहर की इमारतों में दरारें पड़ने संबंधी चेतावनियों की अनदेखी करने को लेकर स्थानीय लोगों में सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश है.

स्थानीय लोग इमारतों की खतरनाक स्थिति के लिए मुख्यत: एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जैसी परियोजनाओं और अन्य बड़ी निर्माण गतिविधियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.

सेलंग गांव के अलावा जोशीमठ से 82 किलोमीटर दूर चमोली जिले के ही कर्णप्रयाग में भी सड़कों और घरों की दीवारों पर दरारें देखी गई हैं.

कर्णप्रयाग में बहुगुणा कॉलोनी के दो दर्जन से अधिक घरों में दरारें आ गई हैं, जो करीब एक दशक पहले दिखाई देना शुरू हुई थीं. दीवारों का फटना और दरारें अब इतनी चौड़ी और लंबी हो गई हैं कि कई मकान रहने लायक नहीं बचे हैं. मालिक और किरायेदार उन्हें छोड़कर जाने के लिए मजबूर हैं. अन्य लोग जो खुद से कोई वैकल्पिक आवास नहीं खोज सके हैं, वे नगर परिषद के आश्रय स्थलों में रातें गुजार रहे हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)