उत्तराखंड के जोशीमठ में भूमि धंसने पर चिंता व्यक्त करते हुए बद्रीनाथ मंदिर के प्रमुख पुजारी ईश्वर प्रसाद नंबूदरी ने कहा कि न केवल एनटीपीसी परियोजना, बल्कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली सभी परियोजनाओं को रोका जाना चाहिए. हिमालय क्षेत्र एक संवेदनशील क्षेत्र है. इस पवित्र भूमि की रक्षा की जानी चाहिए.
कन्नूर: उत्तराखंड के जोशीमठ में भूमि धंसने पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रसिद्ध बद्रीनाथ मंदिर के रावल या प्रमुख पुजारी ईश्वर प्रसाद नंबूदरी ने जोशीमठ में प्रकृति और लोगों को नुकसान पहुंचाने वाली परियोजनाओं को रोकने का अधिकारियों से अनुरोध किया है.
करीब 1,830 मीटर की ऊंचाई पर स्थित 17,000 की आबादी वाले जोशीमठ में सैकड़ों घरों और इमारतों में दरारें आने के लिए साफ तौर पर जमीन धंसने को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. जोशीमठ हिंदू और सिख तीर्थस्थलों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है और हिमालय के हिस्सों में पर्वतारोहियों को भी आकर्षित करता है.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा जारी उपग्रह तस्वीरों से जोशीमठ में भूमि धंसने की चिंता बीते 13 जनवरी को और बढ़ गई, जिसमें दिखाया गया कि जोशीमठ 12 दिनों में 5.4 सेंटीमीटर धंस गया.
इस शहर में जमीन धंसने की तस्वीरों के कारण हंगामा खड़ा हो गया. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) और उत्तराखंड सरकार ने अंतरिक्ष एजेंसी (इसरो) समेत कई सरकारी संस्थानों को निर्देश दिया है कि वे जोशीमठ की स्थिति पर मीडिया के साथ बातचीत न करें या सोशल मीडिया पर जानकारी साझा न करें.
इसके बाद इसरो ने जमीन धंसाव से संबंधित अपनी रिपोर्ट वापस ले ली थी.
प्रमुख पुजारी ईश्वर प्रसाद नंबूदरी ने कहा, ‘हम धरती माता की पूजा करते हैं. जोशीमठ में विकास चिंता का विषय है. पृथ्वी की दृष्टि से हानिकारक विकास परियोजनाओं को रोका जाना चाहिए. ऐसी किसी परियोजना का कोई मतलब नहीं है कि जो पारिस्थितिक रूप से नाजुक धरती और यहां के लोगों के लिए समस्या पैदा करे.’
बद्रीनाथ मंदिर के प्रमुख पुजारी उत्तरी केरल के नंबूदरी (मलयाली ब्राह्मण) समुदाय से होते हैं. इस परंपरा की शुरुआत सदियों पहले स्वयं ऋषि श्री शंकराचार्य ने शुरू की थी.
प्रमुख पुजारी ने कहा कि लोगों के जीवन की रक्षा करते हुए विकास कार्यों को लागू किया जाना चाहिए. 19 नवंबर 2022 को सर्दियों के मौसम से पहले बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के बाद वह अपने गृह राज्य (केरल) लौटे हैं.
यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित 108 दिव्यदेशम में से एक है और वैष्णवों के लिए एक पवित्र मंदिर है, जहां भगवान बद्रीनाथ के रूप में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है.
हिमालय क्षेत्र में प्रतिकूल मौसम की स्थिति के कारण मंदिर हर साल केवल छह महीने के लिए खुलता है. मंदिर के कपाट अप्रैल के अंत में खुलते हैं और नवंबर की शुरुआत तक श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते हैं.
उन्होंने कहा, ‘धर्म की मूल अवधारणा यह है कि किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए.’
उन्होंने कहा कि पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील पर्वतीय क्षेत्रों में प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना सड़कों का निर्माण किया जाना चाहिए.
नंबूदरी ने कहा, ‘इन दिनों पर्यावरण के अनुकूल विकास योजनाओं के लिए विकल्प हैं. हम अन्य देशों की तरह ही ऐसा कर सकते हैं. अगर लोग अपने गांवों और आजीविका को खो देते हैं तो ऐसी परियोजनाओं को लाने का क्या मतलब है.’
जोशीमठ में जमीन धंसने की समीक्षा करने के लिए बीते 10 जनवरी को केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) के अधिकारियों को तलब किया था, जो इस क्षेत्र में तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना का निर्माण कर रहे हैं.
भारत की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक कंपनी ने एक दिन बाद मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा था कि इस क्षेत्र की जमीन धंसने में उसकी परियोजना की कोई भूमिका नहीं है.
प्रमुख पुजारी नंबूदरी ने कहा, ‘हमें आम लोगों की रक्षा करते हुए विकास करने की जरूरत है. इस तरह की परियोजनाओं की तुलना में लोगों का जीवन और कल्याण अधिक महत्वपूर्ण है.’
32 वर्षीय नंबूदरी मई 2014 में बंद्रीनाथ मंदिर के रावल बने थे. इससे पहले वह मंदिर में ‘नायब पुजारी’ के रूप में सेवा दे रहे थे.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक उन्होंने कहा, ‘न केवल एनटीपीसी परियोजना, बल्कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली सभी परियोजनाओं को रोका जाना चाहिए. हमें अपनी पवित्र भूमि को नष्ट नहीं करना चाहिए. हिमालय क्षेत्र एक संवेदनशील क्षेत्र है. इस पवित्र भूमि की रक्षा की जानी चाहिए.’
बद्रीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी ने किसी का नाम लिए बिना कहा कि परियोजना के काम अक्सर ‘अकेले मुनाफा कमाने के निहित स्वार्थ’ के साथ किए जाते हैं.
मालूम हो कि जोशीमठ भू-धंसाव को लेकर इसरो की ओर से रिपोर्ट जारी किया गया था. इसकी प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2022 से 7 महीनों की अवधि में जोशीमठ शहर के भीतर 8.9 सेंटीमीटर तक ‘धीमा धंसाव’ दर्ज किया गया था. इसरो के ‘कार्टोसेट-2एस’ उपग्रह के डेटा ने 27 दिसंबर 2022 से 8 जनवरी 2023 के बीच सिर्फ 12 दिनों में करीब 5.4 सेंटीमीटर ‘तीव्र धंसाव’ दर्ज किया था.
इसने कहा था कि एक सामान्य भूस्खलन आकार जैसे दिखने वाले एक धंसाव क्षेत्र की पहचान की गई है. रिपोर्ट में कहा गया था कि धंसाव का केंद्र जोशीमठ-औली रोड के पास 2,180 मीटर की ऊंचाई पर स्थित था.
तस्वीरों में सेना के हेलीपैड और नरसिंह मंदिर को जोशीमठ शहर के मध्य भाग में फैले धंसाव क्षेत्र के प्रमुख स्थलों के रूप में दिखाया गया था.
हालांकि, 14 जनवरी को एनडीएमए और उत्तराखंड सरकार द्वारा इसरो सहित कई सरकारी संस्थानों को बिना पूर्वानुमति के जोशीमठ की स्थिति पर मीडिया के साथ बातचीत या सोशल मीडिया पर जानकारी साझा नहीं करने का निर्देश दिया गया.
जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने कहा था कि शहर में जिन घरों में दरारें आ गई हैं, उनकी संख्या अब 760 हो गई है, जिनमें से 147 को असुरक्षित चिह्नित किया गया है.
इस बीच, राज्य के स्वामित्व वाली एनटीपीसी ने कहा कि तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना से जुड़ी 12 किलोमीटर लंबी सुरंग जोशीमठ शहर से एक किलोमीटर दूर स्थित है और जमीन से कम से कम एक किलोमीटर नीचे है.
एनटीपीसी ने कहा था कि तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना से संबंधित एक हेड ट्रेस टनल (एचआरटी) जोशीमठ शहर के नीचे से नहीं गुजर रही है.
एनटीपीसी ने बिजली मंत्रालय को यह भी बताया था कि करीब दो साल से इलाके में कोई सक्रिय निर्माण कार्य नहीं हो रहा है.
4×130 मेगावाट की तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना के लिए निर्माण कार्य नवंबर 2006 में शुरू हुआ था. इस परियोजना में तपोवन (जोशीमठ शहर के 15 किमी ऊपर की ओर) में एक कंक्रीट बैराज का निर्माण शामिल है.
यह परियोजना मार्च 2013 में पूरी होनी थी, लेकिन लगभग 10 साल बाद भी निर्माणाधीन है. 2,978.5 करोड़ रुपये के प्रारंभिक स्वीकृत निवेश से परियोजना लागत अब अनुमानित रूप से 7,103 करोड़ रुपये हो गई है.
मालूम हो कि उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब जैसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों और अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग गंतव्य औली का प्रवेश द्वार कहलाने वाला जोशीमठ शहर आपदा के कगार पर खड़ा है.
जोशीमठ को भूस्खलन और धंसाव क्षेत्र घोषित कर दिया गया है तथा दरकते शहर के क्षतिग्रस्त घरों में रह रहे परिवारों को अस्थायी राहत केंद्रों में पहुंचाया जा रहा है.
आदिगुरु शंकराचार्य की तपोभूमि के रूप में जाना जाने वाला जोशीमठ निर्माण गतिविधियों के कारण धीरे-धीरे दरक रहा है और इसके घरों, सड़कों तथा खेतों में बड़ी-बड़ी दरारें आ रही हैं. तमाम घर धंस गए हैं.
नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीसीपी) की पनबिजली परियोजना समेत शहर में बड़े पैमाने पर चल रहीं निर्माण गतिविधियों के कारण इस शहर की इमारतों में दरारें पड़ने संबंधी चेतावनियों की अनदेखी करने को लेकर स्थानीय लोगों में सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश है.
स्थानीय लोग इमारतों की खतरनाक स्थिति के लिए मुख्यत: एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जैसी परियोजनाओं और अन्य बड़ी निर्माण गतिविधियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)