क़ानून मंत्री ने सीजेआई को लिखा- कॉलेजियम में सरकार का प्रतिनिधि शामिल करें

केंद्र और न्यायापालिका के बीच जजों की नियुक्ति को लेकर चल रही खींचतान के बीच अब केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को लिखा है कि केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को हाईकोर्ट के कॉलेजियम में जगह दी जानी चाहिए.

केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू और सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: पीटीआई)

केंद्र और न्यायापालिका के बीच जजों की नियुक्ति को लेकर चल रही खींचतान के बीच अब केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को लिखा है कि केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को हाईकोर्ट के कॉलेजियम में जगह दी जानी चाहिए.

केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू और सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: न्यायिक नियुक्तियों पर फैसला करने वाले जजों के कॉलेजियम को लेकर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच चल रही खींचतान के नए अध्याय में केंद्र सरकार ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर कॉलेजियम में सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल करने कहा है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा लिखे गए पत्र में सुझाव दिया गया है कि केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों को उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम में और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को उच्च न्यायालय के कॉलेजियम में शामिल किया जाना चाहिए.

पत्र में कहा गया है कि ‘यह इस धारणा को दूर करेगा कि संवैधानिक न्यायालय के जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में अपारदर्शिता है.’

दो स्तरीय कॉलेजियम 25 साल पुरानी प्रणाली है जिसके माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं. वर्तमान में कॉलेजियम में सीजेआई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस एसके कौल, केएम जोसेफ, एमआर शाह, अजय रस्तोगी और संजीव खन्ना शामिल हैं.

शीर्ष अदालत और कानून मंत्रालय के बीच खींचतान बीते कई महीनों से चल रही है और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम इसके केंद्र में रहा है. संसद द्वारा पारित और 2015 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निरस्त किए गए अधिनियम में जजों की नियुक्ति करने वाले निकाय में दो सरकारी प्रतिनिधियों की कल्पना की गई थी.

केंद्र और न्यायपालिका के बीच गतिरोध

उल्लेखनीय है कि जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली बीते कुछ समय से केंद्र और न्यायपालिका के बीच गतिरोध का विषय बनी हुई है, जहां कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू कई बार विभिन्न प्रकार की टिप्पणियां कर चुके हैं.

दिसंबर 2022 में संपन्न हुए संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान रिजिजू सुप्रीम कोर्ट से जमानत अर्जियां और ‘दुर्भावनापूर्ण’ जनहित याचिकाएं न सुनने को कह चुके हैं, इसके बाद उन्होंने अदालत की छुट्टियों पर टिप्पणी की और कोर्ट में लंबित मामलों को जजों की नियुक्ति से जोड़ते हुए कॉलेजियम के स्थान पर नई प्रणाली लाने की बात दोहराई.

इससे पहले भी रिजिजू कुछ समय से न्यायपालिका, सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम प्रणाली को लेकर आलोचनात्मक बयान देते रहे हैं.

नवंबर 2022 में किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम व्यवस्था को ‘अपारदर्शी और एलियन’ बताया था. उनकी टिप्पणी को लेकर शीर्ष अदालत ने नाराजगी भी जाहिर की थी.

सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम की विभिन्न सिफारिशों पर सरकार के ‘बैठे रहने’ संबंधी आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए रिजिजू ने कहा था कि ऐसा कभी नहीं कहा जाना चाहिए कि सरकार फाइलों पर बैठी हुई है.

नवंबर 2022 में ही सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि सरकार का कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नाम रोके रखना अस्वीकार्य है. कॉलेजियम प्रणाली के बचाव में इसके बाद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि संवैधानिक लोकतंत्र में कोई भी संस्था परफेक्ट नहीं है.

इसके बाद दिसंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली इस देश का कानून है और इसके खिलाफ टिप्पणी करना ठीक नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसके द्वारा घोषित कोई भी कानून सभी हितधारकों के लिए ‘बाध्यकारी’ है और कॉलेजियम प्रणाली का पालन होना चाहिए.

इसके उलट रिजिजू के अलावा 7 दिसंबर 2022 को उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने अपने पहले संसदीय संबोधन में एनजेएसी कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने को लेकर अदालत पर निशाना साधा था.

धनखड़ ने बीते11 जनवरी को भी इस कानून को रद्द किए जाने को लेकर न्यायपालिका को घेरा था. उन्होंने कहा कि संसदीय क़ानून को अमान्य करना लोकतांत्रिक नहीं था. साथ ही कहा था कि वह शीर्ष अदालत द्वारा लगाए गए इस प्रतिबंध से सहमत नहीं हैं कि संसद संविधान के ‘मूल ढांचे’ में संशोधन नहीं कर सकती है.

इससे पहले 2 दिसंबर 2022 को धनखड़ ने कहा था कि वह ‘हैरान’ थे कि शीर्ष अदालत द्वारा एनजेएसी कानून को रद्द किए जाने के बाद संसद में कोई चर्चा नहीं हुई. उससे पहले उन्होंने संविधान दिवस (26 नवंबर 2022) के अवसर पर हुए एक कार्यक्रम में भी ऐसी ही टिप्पणी की थी.