हिमाचल के मुख्यमंत्री ने जोशीमठ जैसी घटना टालने के लिए केंद्र से राज्य पर ध्यान देने को कहा

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री की अध्यक्षता में हुए एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हिमाचल में भी ऐसे कई क्षेत्र हैं, जो धीरे-धीरे भू-धंसाव का अनुभव कर रहे हैं. यदि सही समय पर सही समाधान और इसे कम करने के उपाय नहीं किए गए तो व्यापक तबाही होगी.

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सुखविंदर सिंह सुक्खू. (फोटो: पीटीआई)

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री की अध्यक्षता में हुए एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हिमाचल में भी ऐसे कई क्षेत्र हैं, जो धीरे-धीरे भू-धंसाव का अनुभव कर रहे हैं. यदि सही समय पर सही समाधान और इसे कम करने के उपाय नहीं किए गए तो व्यापक तबाही होगी.

सुखविंदर सिंह सुक्खू. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने रविवार को केंद्र को चेतावनी दी कि संभावना है कि उनके राज्य में भी जोशीमठ जैसी भू-धंसाव की स्थिति पैदा हो और केंद्र से आग्रह किया कि वे ‘बड़ी तबाही’ को रोकने के लिए संवेदनशील क्षेत्रों पर ध्यान दे.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सुक्खू ने नई दिल्ली के मौसम भवन में आयोजित भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के 148वें स्थापना दिवस को वर्चुअली संबोधित करते हुए कहा, ‘पहाड़ों में जैसा कि जोशीमठ में हुआ है, हिमाचल प्रदेश में भी ऐसे कई क्षेत्र हैं, जो धीरे-धीरे भू-धंसाव का अनुभव कर रहे हैं. यदि सही समय पर सही समाधान और इसे कम करने के उपाय नहीं किए गए तो व्यापक तबाही होगी.’

सुक्खू ने कहा, ‘पहाड़ों में लोग अपने मन-मुताबिक निर्माण कर रहे हैं. इस दृष्टिकोण से आपको राज्य पर ध्यान देने की जरूरत है और तथ्य यह है कि हिमाचल प्रदेश एक भूकंपीय खतरे वाला क्षेत्र भी है.’

समाचार एजेंसी पीटीआई/भाषा के मुताबिक हिमाचल के मुख्यमंत्री सुक्खू ने केंद्र सरकार से राज्य के लिए आपदा निधि बढ़ाने का अनुरोध किया, क्योंकि यह प्रदेश दुर्गम स्थलाकृति और जलवायु स्थितियों के कारण विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से कमजोर है.

उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में किन्नौर जिले में बादल फटने से काफी नुकसान हुआ है, इसलिए यह अहम है कि पहले ही एहतियाती कदम उठाते हुए उचित मौसम पूर्वानुमान व्यवस्था की जाए.

उन्होंने कहा कि बादल फटने की इन घटनाओं ने इलाके में खासतौर से बिजली परियोजनाओं को काफी नुकसान पहुंचाया है.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पृथ्वी विज्ञान मंत्री जितेंद्र सिंह थे. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, जिन्हें वर्चुअल रूप से सभा को संबोधित करना था, नई दिल्ली में एक अन्य मीटिंग के लिए बैठक से जल्दी चले गए.

इस बीच सिंह ने जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश को चार डॉपलर मौसम रडार (डीडब्ल्यूआर) सिस्टम समर्पित किए. उन्होंने हिमाचल प्रदेश के मुरारी देवी और जोत में सुक्खू के साथ संयुक्त रूप से दो रडार सिस्टम का उद्घाटन किया.

डीडब्ल्यूआर के लिए सिंह को धन्यवाद देते हुए सुक्खू ने कहा, ‘जो डॉपलर लगाए गए हैं वे किन्नौर और लाहौल स्पीति के कम से कम 80 फीसदी इलाके को कवर करेंगे, लेकिन अभी भी 30 फीसदी जगह है, जहां बादल फटना होता रहता है. लाहौल-स्पीति हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है और भारत में दूसरा सबसे बड़ा जिला है, जहां बर्फ, ग्लेशियर और नदियां हैं. किन्नौर चीन सीमा के पास है. इन क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए. ’

मालूम हो कि उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित जोशीमठ को भूस्खलन और धंसाव क्षेत्र घोषित कर दिया गया है तथा दरकते शहर के क्षतिग्रस्त घरों में रह रहे परिवारों को अस्थायी राहत केंद्रों में पहुंचाया गया है.

बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब जैसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों और अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग गंतव्य औली का प्रवेश द्वार कहलाने वाला जोशीमठ शहर आपदा के कगार पर खड़ा है.

आदिगुरु शंकराचार्य की तपोभूमि के रूप में जाना जाने वाला जोशीमठ निर्माण गतिविधियों के कारण धीरे-धीरे दरक रहा है और इसके घरों, सड़कों तथा खेतों में बड़ी-बड़ी दरारें आ रही हैं. तमाम घर धंस गए हैं.

नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीसीपी) की पनबिजली परियोजना समेत शहर में बड़े पैमाने पर चल रहीं निर्माण गतिविधियों के कारण इस शहर की इमारतों में दरारें पड़ने संबंधी चेतावनियों की अनदेखी करने को लेकर स्थानीय लोगों में सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश है.

स्थानीय लोग इमारतों की खतरनाक स्थिति के लिए मुख्यत: एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जैसी परियोजनाओं और अन्य बड़ी निर्माण गतिविधियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.