एक याचिकाकर्ता ने दिसंबर 2019 में सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन की अनुमति मांगी थी, जिससे गुजरात पुलिस ने इनकार कर दिया. तब उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत उन नियमों को प्रकाशित करने के लिए कहा, जो पुलिस को प्रदर्शन या रैलियां करने की अनुमति देने या अस्वीकार करने का अधिकार देते हैं. हालांकि उनके आवेदन को गुजरात पुलिस द्वारा ख़ारिज कर दिया गया था.
नई दिल्ली: गुजरात हाईकोर्ट ने मंगलवार (17 जनवरी) को फैसला सुनाया कि नागरिकों को उन नियमों को जानने का अधिकार है जो राज्य पुलिस को विरोध प्रदर्शन या रैलियां करने की अनुमति देने या अस्वीकार करने का अधिकार देते हैं.
अदालत ने एक महिला द्वारा दायर एक मामले में यह आदेश पारित किया. महिला ने राज्य पुलिस के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें इन नियमों को प्रकाशित करने के लिए सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत दिए गए महिला के आवेदन को राज्य पुलिस द्वारा खारिज कर दिया गया था.
बार और बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस बीरेन वैष्णव की एकल पीठ द्वारा पारित आदेश में कहा गया है कि ऐसे नियमों को प्रकाशित न करना आरटीआई अधिनियम के लोकतंत्र में पारदर्शिता को बढ़ावा देने संबंधी उद्देश्य को ही खत्म कर देगा.
आदेश में कहा गया है, ‘लोकतंत्र में सूचना से ओत-प्रोत नागरिक एवं सूचना की पारदर्शिता की जरूरत होती है, जो इसके कामकाज के लिए महत्वपूर्ण है और भ्रष्टाचार को रोकने एवं सरकारों व उनके तंत्र को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं.’
क्या था मामला
याचिकाकर्ता स्वाति गोस्वामी ने 29 दिसंबर 2019 को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ एक ‘शांतिपूर्ण रैली’ के आयोजन की योजना बनाई थी, लेकिन एक दिन पहले (28 दिसंबर) को उन्हें पुलिस द्वारा सूचित किया गया कि कानून व्यवस्था और यातायात संबंधी समस्याओं के चलते उन्हें रैली की अनुमति देने से इनकार किया जाता है.
बार एंड बेंच के अनुसार, उन्होंने फिर भी सभा करने का फैसला किया और कुछ घंटों के लिए हिरासत में ले ली गईं.
गोस्वामी ने रैली से इनकार करने संबंधी पुलिस के फैसले को चुनौती नहीं दी, बल्कि उन्होंने एक आरटीआई आवेदन दायर किया, जिसमें राज्य या उसके नियंत्रण में या उसके कर्मचारियों द्वारा अपने कार्यों के निर्वहन के लिए उपयोग किए जाने वाले सभी नियमों, विनियमों, निर्देशों, मैनुअल और रिकॉर्ड तक पहुंच की मांग की.
हालांकि क्राइम ब्रांच द्वारा इस अनुरोध को खारिज कर दिया गया. इसके बाद उन्होंने इस अस्वीकृति को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया.
अदालत ने क्या कहा
बार एंड बेंच के अनुसार, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पुलिस द्वारा अनुमति देने या अस्वीकार करने के नियमों को प्रकाशित करने में विफलता कार्यकारी कार्रवाई की अवैधता, लोकतंत्र, कानून के शासन एवं प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उनके अधिकारों और संविधान के अनुच्छेद 19 व 21 में मिले उनके अधिकारों का उल्लंघन है.
राज्य सरकार ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ऐसी जानकारी की हकदार नहीं है और राजनीतिक रैली की अनुमति से इनकार करना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है.
अदालत ने कहा कि परस्पर विरोधी हितों में ‘सामंजस्य’ होने की जरूरत है, ताकि लोकतांत्रिक आदर्श की सर्वोच्चता बचे रहना सुनिश्चित हो.
अदालत ने सरकार का यह तर्क खारिज कर दिया कि सूचना प्रदान करने की जरूरत नहीं है, जिस पर अदालत ने कहा कि यह आरटीआई अधिनियम के उद्देश्य को खत्म कर देगा और उसका गला घोंट देगा.
अदालत ने कहा कि मांगी गई जानकारी को प्रकाशित करना राज्य का कानूनी कर्तव्य है और याचिकाकर्ता ‘गुजरात पुलिस अधिनियम की धारा 33 के तहत बनाए गए नियमों को जानने का हकदार है, ताकि अनुमति से इनकार करने के कारणों को जान सके.’
अदालत ने आगे कहा कि यह जाने बिना याचिकाकर्ता अनुमति न दिए जाने के फैसले को चुनौती नहीं दे पाएंगी, ‘जो उनके मौलिक अधिकार का सीधा उल्लंघन होगा और यह जानने के अधिकार का उल्लंघन होगा कि उन्होंने कौन-सा कानून तोड़ा है.’
अदालत ने पुलिस को गुजरात पुलिस अधिनियम की धारा 33 के तहत बनाए गए सभी नियमों और आदेशों को वेबसाइट पर प्रकाशित करने का निर्देश दिया.