नई दिल्ली में नग्न अवस्था में घूमने वाले एक मानसिक रोगी की दुर्घटना में मौत के बाद शव नग्न अवस्था में पड़े रहने और पहचान न होने के मामले में अदालत ने लगाई फटकार.
नई दिल्ली: शहर की एक अदालत ने सड़कों पर घूम रहे मानसिक रोगियों की दुर्दशा के संबंध में पुलिस की उदासीनता और असंवेदनशील रवैये को लेकर नाराजगी व्यक्त की है. अदालत ने कहा कि इस तरह के मुद्दों से निपटने के लिए पुलिस को संवेदनशील बनाने के वास्ते दिशा-निर्देश तैयार किए जाना चाहिए. भटकते मानसिक रोगियों को बचाना कानूनी रूप से पुलिस का दायित्व है.
अदालत हिट एंड रन के एक मामले को लेकर नाराज थी जिसमें एक व्यक्ति का नग्न शव सड़क किनारे मिला था. इस मामले में न तो मृतक की पहचान हो सकी थी और न ही पुलिस घटना में शामिल वाहन का पता लगा सकी थी.
मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अभिलाष मल्होत्रा ने एक आदेश में कहा, ‘तथ्य और परिस्थितियां स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं कि मानसिक रोग से पीड़ित लोगों के प्रति पुलिस अधिकारियों का रवैया उदासीन और असंवेदनशील है.’
अदालत ने कहा कि मानसिक रोगी अपने अधिकारों की रक्षा नहीं कर सकते हैं और न ही अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ सकते हैं. अधिकारियों को चाहिए कि वे उन्हें बचाएं और उनसे अच्छी तरह पेश आएं.
अदालत ने यह आदेश तब दिया जब यह उल्लेख किया गया कि पुलिस ने अपनी जांच में पाया कि संबंधित व्यक्ति अक्सर मध्य दिल्ली के आईपी एस्टेट इलाके में बिना कपड़ों को भटकते दिखता था.
न्यायाधीश ने कहा, मानसिक स्वास्थ्य कानून, 1987 के प्रावधानों में मानसिक रूप से पीड़ित लोगों के मामले में पुलिस अधिकारियों का कर्तव्य स्पष्ट रूप से परिभाषित है.
संबंधित कानून की धारा 231क के तहत यह पुलिसकर्मी का दायित्व है कि वह किसी भटकते मानसिक रोगी को बचाए. ऐसे व्यक्ति को उसके उपचार के लिए संबंधित आदेश हासिल करने के वास्ते अदालत के समक्ष पेश किए जाने की आवश्यकता है.
आदेश में कहा गया कि यह स्पष्ट है कि संबंधित व्यक्ति आईपी एस्टेट थानांतर्गत क्षेत्र में बिना कपड़ों के भटकता रहता था, लेकिन किसी भी बीट अधिकारी या गश्त करने वाले स्टाफ ने उस पर ध्यान नहीं दिया और उसे बचाने के लिए अपना कानूनी तथा मानवीय दायित्व महसूस नहीं किया.
मजिस्ट्रेट ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिल्ली पुलिस सड़क पर बिना कपड़ों के घूमने वाले मानसिक रोगी की दुर्दशा पर ध्यान दे पाने में विफल रही. मानसिक रोगी अपने अधिकारों की रक्षा करने या अधिकारों के लिए लड़ पाने में अक्षम होते हैं. वे अपने नाम-पते और परिवार से अनजान यूं ही भटकते रहते हैं. उन्हें बचाने के लिए अधिकारियों को आगे आना चाहिए और उनसे सही से पेश आया जाना चाहिए.
अदालत ने दिल्ली पुलिस आयुक्त से मामले को गंभीरता से देखने को कहा और निर्देश दिया कि बल को संवेदनशील बनाने के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए जाने चाहिए तथा प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जाना चाहिए, खासकर निचले पायदान के अधिकारियों के लिए.