वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल को दिल्ली हाईकोर्ट का जज नियुक्त करने की सिफ़ारिश दोहराने के साथ ही कॉलेजियम ने सोमशेखर सुंदरेशन को बॉम्बे हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त करने को लेकर केंद्र द्वारा उनकी ‘सोशल मीडिया पोस्ट्स’ को लेकर दर्ज करवाई गई आपत्ति को भी ख़ारिज कर दिया.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने अपनी समलैंगिक पहचान खुले तौर पर स्वीकार करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल को दिल्ली हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त करने की 11 नवंबर, 2021 की अपनी सिफारिश को दोहराया है.
कॉलेजियम ने केंद्र की इस दलील को खारिज किया है कि भारत में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है लेकिन समलैंगिक विवाह को अब भी मान्यता नहीं है.
कॉलेजियम के बयान में कृपाल के यौन रुझान के बारे में उनके द्वारा खुलकर बात करने के लिए उनकी सराहना की गई है. इसने कहा कि इसका श्रेय कृपाल को जाता है कि वह अपने यौन रुझान को छुपाते नहीं हैं.
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने कहा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सौरभ कृपाल की नियुक्ति का प्रस्ताव पांच साल से अधिक समय से लंबित है, जिस पर तेजी से निर्णय लेने की आवश्यकता है.
कॉलेजियम में जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ भी शामिल हैं.
उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर जारी एक बयान में कहा गया है, ‘इस पृष्ठभूमि में, कॉलेजियम ने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सौरभ कृपाल की नियुक्ति के लिए 11 नवंबर, 2021 की अपनी सिफारिश को दोहराया है, जिस पर तेजी से निर्णय लेने की आवश्यकता है.’
इसमें कहा गया, ‘13 अक्टूबर, 2017 को दिल्ली उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा सर्वसम्मति से की गई सिफारिश और 11 नवंबर, 2021 को उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा अनुमोदित इस सिफारिश को पुनर्विचार के लिए 25 नवंबर, 2022 को हमारे पास वापस भेज दिया गया.’
बयान में कहा गया कि सौरभ कृपाल के पास ‘क्षमता, सत्यनिष्ठा और मेधा’ है और उनकी नियुक्ति से उच्च न्यायालय की पीठ में विविधता आएगी.
ज्ञात हो कि सौरभ देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश बीएन कृपाल के बेटे हैं. सौरभ कृपाल ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की है और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से कानून में मास्टर डिग्री ली है तथा जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र में एक संक्षिप्त कार्यकाल के बाद वह भारत लौट आए थे.
कृपाल दो दशक से अधिक समय से शीर्ष अदालत में वकालत कर रहे हैं. वह उस मामले में नवतेज जौहर, रितु डालमिया और अन्य लोगों के वकील थे, जिसमें 2018 में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था.
न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि कानून मंत्री ने अप्रैल 2021 को एक पत्र में कहा था कि ‘भारत में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है लेकिन समलैंगिक विवाह को अब भी मान्य नहीं है.’ मंत्री ने यह भी कहा था कि उम्मीदवार की ‘समलैंगिक अधिकारों के लिए सक्रिय भागीदारी और लगाव’ को देखते हुए पक्षपात और पूर्वाग्रह की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
SC collegium on appointment… by The Wire
हालांकि कॉलेजियम ने इसे ख़ारिज कर दिया. कॉलेजियम के बयान में कहा गया है, ‘रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के 11 अप्रैल, 2019 और 18 मार्च, 2021 के पत्रों से ऐसा प्रतीत होता है कि इस अदालत के कॉलेजियम द्वारा 11 नवंबर, 2021 को सौरभ कृपाल के नाम को लेकर की गई सिफारिश पर दो आपत्तियां हैं: पहला कि सौरभ कृपाल के साथी (पार्टनर) स्विट्जरलैंड के नागरिक हैं, और दूसरा यह कि वह घनिष्ठ संबंध में हैं और अपने यौन रुझान को खुले तौर पर स्वीकार करते हैं.’
आपत्तियों को लेकर कॉलेजियम ने कहा कि रॉ के पत्रों में कृपाल के साथी के व्यक्तिगत आचरण या व्यवहार के संबंध में ऐसी किसी भी आशंका की ओर ध्यान आकर्षित नहीं किया गया है, जिसका राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर पड़ता है. यह मानने का कोई कारण नहीं है कि उम्मीदवार का साथी ‘हमारे देश के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार करेगा, क्योंकि उसका मूल देश एक मित्र राष्ट्र है.’
बयान में कहा गया है कि उच्च पदों पर आसीन कई व्यक्तियों- जिनमें संवैधानिक पदों पर रहे और वर्तमान में कार्यरत कई लोग शामिल हैं- के जीवनसाथी विदेशी नागरिक हैं.
कॉलेजियम ने कहा, ‘इसलिए सैद्धांतिक तौर पर सौरभ कृपाल की उम्मीदवारी पर इस आधार पर कोई आपत्ति नहीं की जा सकती कि उनका पार्टनर विदेशी नागरिक है.’
दूसरी आपत्ति के बारे में कॉलेजियम ने कहा कि यह ध्यान देने की जरूरत है कि उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के फैसलों में स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति यौन रुझान के आधार पर अपनी गरिमा और व्यक्तित्व बनाए रखने का हकदार है.
कॉलेजियम ने कहा, ‘तथ्य यह है कि श्री सौरभ कृपाल अपने यौन रुझान के बारे में खुलकर बात करते हैं और यह बात उनके पक्ष में जाती है. न्यायपालिका के संभावित उम्मीदवार के रूप में वह अपने यौन रुझान के बारे में कुछ छिपा नहीं रहे हैं. संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त अधिकारों को ध्यान में रखते हुए उनकी उम्मीदवारी को खारिज करना स्पष्ट रूप से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित संवैधानिक सिद्धांतों के विपरीत होगा. सौरभ कृपाल के पास क्षमता, सत्यनिष्ठा और मेधा है और उनकी नियुक्ति से उच्च न्यायालय की पीठ में विविधता आएगी.’
उल्लेखनीय है कि लंबे समय से अटकलें लगाई जा रही थीं कि सरकार की आपत्ति अधिवक्ता के समलैंगिक होने के कारण थी, लेकिन अब कॉलेजियम ने पहली बार इसकी पुष्टि की है. कॉलेजियम के लिए सरकार द्वारा उठाई गई आपत्तियों को बताना सामान्य बात नहीं है और ऐसा तब हुआ है जब बीते कुछ महीनों से न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच गतिरोध जारी है.
पिछले कुछ महीनों में सरकार ने न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर यह कहते हुए सवाल उठाए हैं कि यह अपारदर्शी और अक्षम है. हाल ही में कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम में एक सरकारी प्रतिनिधि को रखने की वकालत की थी.
कॉलेजियम ने अन्य प्रस्तावों को भी दोहराया
कॉलेजियम ने गुरुवार को सोमशेखर सुंदरेशन को बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने के फैसले को भी दोहराया. सरकार ने उनकी नियुक्ति पर यह कहते हुए आपत्ति जताई थी कि ‘उन्होंने कई मामलों पर सोशल मीडिया पर अपने विचार साझा किए हैं जो अदालतों के विचाराधीन विषय हैं.’.
इस पर कॉलेजियम ने कहा कि “उम्मीदवार के लिए सोशल मीडिया पर दिए गए विचार यह अनुमान लगाने का कोई आधार नहीं हैं कि वह पक्षपाती हैं.’ कॉलेजियम ने कहा कि जिन मुद्दों पर उम्मीदवार के विचारों की बात की गई है, वे सार्वजनिक डोमेन में हैं और उन पर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बड़े पैमाने पर विचार-विमर्श किया गया है.
न्यायाधीशों ने जोड़ा कि यह दिखाने के लिए भी कोई सामग्री नहीं है कि सुंदरेशन की अभिव्यक्ति ‘किसी मजबूत वैचारिक झुकाव वाले राजनीतिक दल के साथ उनके संबंधों का संकेत है.’
कॉलेजियम ने कहा, ‘संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(ए) के तहत सभी नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार है. एक उम्मीदवार द्वारा विचारों की अभिव्यक्ति उसे एक संवैधानिक पद धारण करने के लिए तब तक अयोग्य नहीं बनाती है जब तक कि न्यायाधीश पद के लिए प्रस्तावित व्यक्ति सक्षम, योग्यता और सत्यनिष्ठा वाला व्यक्ति हो.’
कॉलेजियम ने कहा कि सुंदरेशन ने वाणिज्यिक कानून में विशेषज्ञता हासिल की है और न्यायाधीश के रूप में उनकी उपस्थिति ‘बॉम्बे हाईकोर्ट के लिए महत्वपूर्ण होगी, जहां अन्य केसों के अलावा वाणिज्यिक और प्रतिभूति कानूनों के मामलों की एक बड़ी संख्या है.’
कॉलेजियम द्वारा दोहराई गई तीसरी सिफारिश मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में आर. जॉन सत्यन की नियुक्ति से संबंधित थी.
कॉलेजियम के मुताबिक, सरकार ने दो सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर उनकी नियुक्ति पर आपत्ति जताई थी. पहले में, उन्होंने द क्विंट में प्रकाशित एक लेख साझा किया, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करता था. दूसरी पोस्ट में, सत्यन ने नीट परीक्षा पास न कर सकी एक मेडिकल आकांक्षी की आत्महत्या पर टिप्पणी करते हुए इसे ‘राजनीतिक विश्वासघात’ कहा था और साथ ही ‘शेम ऑफ यू इंडिया’ टैग जोड़ा था.
कॉलेजियम ने उनकी नियुक्ति की सिफारिश दोहराते हुए कहा कि ये कथन सत्यन की “उपयुक्तता, चरित्र या अखंडता पर कोई प्रभाव नहीं डालते हैं.’
कलकत्ता उच्च न्यायालय की दो सिफारिशों को दूसरी बार दोहराया गया
कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में अमितेश बनर्जी और शाक्य सेन को नियुक्त करने की सिफारिश को दोहराते हुए कॉलेजियम ने गुरुवार को सरकार को उसी प्रस्ताव को ‘बार-बार’ वापस भेजने के लिए फटकार लगाई, जिसे उसने आपत्तियों पर विचार करने के बाद दोहराया है.
बनर्जी और सेन को जुलाई 2019 में न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की गई थी. 2021 में सरकार ने फाइलें वापस कर दी थीं, लेकिन कॉलेजियम ने सितंबर 2021 (बनर्जी के लिए) और अक्टूबर 2021 (सेन के लिए) की अपनी सिफारिशों को दोहराया. कॉलेजियम ने 25 नवंबर, 2022 को इन फाइलों को लौटा दिया.
कॉलेजियम ने गुरुवार को दूसरी बार अपने फैसले को दोहराते हुए कहा, ‘न्याय विभाग द्वारा 25 नवंबर 2022 को फाइल में जो इनपुट प्रस्तुत किए गए हैं, उनमें कोई ताज़ा सामग्री या आधार नहीं है. इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा 01 सितंबर 2021 को प्रस्ताव को दोहराने के बाद यह विभाग के लिए बार-बार उसी प्रस्ताव को वापस नहीं भेज सकता, जिसे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सरकार की आपत्तियों पर विधिवत विचार करने के बाद दोहराया है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)