उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार, सोशल मीडिया मंचों पर किसी उत्पाद या सेवाओं के बारे में राय रखने वाले ‘इंफ्लुएंसर्स’ को तस्वीर, वीडियो या लाइव स्ट्रीमिंग के ज़रिये उत्पाद का विज्ञापन करने की स्थिति में उसी दौरान दर्शकों को यह भी जानकारी देनी होगी कि उक्त विज्ञापन में उनके क्या हित हैं. उल्लंघन की स्थिति में ज़ुर्माना लगाया जाएगा.
नई दिल्ली: सरकार ने शुक्रवार (21 जनवरी) को सोशल मीडिया ‘इंफ्लुएंसर्स’ के लिए उत्पादों और सेवाओं का प्रचार करते समय अपने ‘भौतिक जुड़ाव’ और हितों, जैसे कि उपहार, होटल सुविधा, इक्विटी, छूट और पुरस्कारों का खुलासा करना अनिवार्य करते हुए कहा है कि ऐसा नहीं करने पर विज्ञापन को प्रतिबंधित करने जैसे सख्त कानूनी कदम उठाए जाएंगे.
ये दिशानिर्देश भ्रामक विज्ञापनों पर अंकुश लगाने के साथ-साथ उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए जारी कोशिशों का हिस्सा हैं. यह इस लिहाज से अहम हैं कि वर्ष 2025 तक सोशल मीडिया ‘इंफ्लुएंसर्स’ का बाजार लगभग 2,800 करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है.
सोशल मीडिया मंचों पर किसी उत्पाद या सेवाओं के बारे में अपनी राय रखकर जनमानस को प्रभावित करने वालों को ‘इंफ्लुएंसर्स’ कहते हैं.
उपभोक्ता मामलों के विभाग ने सोशल मीडिया मंचों पर मशहूर हस्तियों, ‘इंफ्लुएंसर्स’ एवं ‘ऑनलाइन मीडिया इंफ्लुएंसर्स’ के बारे में नए दिशानिर्देश जारी किए हैं. इनके उल्लंघन की स्थिति में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-2019 के तहत भ्रामक विज्ञापन के लिए निर्धारित जुर्माना लगाया जाएगा.
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) भ्रामक विज्ञापन के संबंध में उत्पादों के विनिर्माताओं, विज्ञापनदाताओं और प्रचारकों पर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगा सकती है. बार-बार नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माने की राशि बढ़ाकर 50 लाख रुपये तक की जा सकती है.
इसके अलावा प्राधिकरण किसी भ्रामक विज्ञापन का प्रचार करने वाले को एक साल तक किसी भी विज्ञापन से रोक सकता है, जिसे तीन साल तक बढ़ाया भी जा सकता है.
उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह ने दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान कहा कि नए दिशानिर्देश उपभोक्ता अधिनियम के दायरे में जारी किए गए हैं, जो अनुचित व्यापार तरीकों और भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए रूपरेखा प्रदान करता है.
उन्होंने उम्मीद जताई कि दिशानिर्देश सोशल मीडिया पर असर डालने वाले ‘इंफ्लुएंसर्स’ के लिए एक निवारक व्यवस्था के रूप में कार्य करेंगे.
उन्होंने कहा, ‘यह बेहद अहम मुद्दा है. वर्ष 2022 में भारत में सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स का बाजार 1,275 करोड़ रुपये का था, लेकिन वर्ष 2025 तक इसके लगभग 19-20 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर के साथ 2,800 करोड़ रुपये हो जाने की संभावना है.’
सोशल मीडिया पर प्रभाव डालने वाले इंफ्लुएंसर्स की देश में संख्या एक लाख से अधिक हो चुकी है और इंटरनेट का प्रसार बढ़ने के साथ इसमें तेजी आने की ही उम्मीद है.
उपभोक्ता मामलों के सचिव ने कहा, ‘ऐसी स्थिति में सोशल मीडिया ‘इंफ्लुएंसर्स’ को जिम्मेदारी से बर्ताव करने की जरूरत है. अब उन्हें उस उत्पाद या सेवा के बारे में अपने भौतिक जुड़ाव की जानकारी देनी होगी, जिसका वे सोशल मीडिया पर विज्ञापन कर रहे हैं.’
इस अवसर पर सीसीपीए की मुख्य आयुक्त निधि खरे ने कहा कि किसी भी रूप, प्रारूप या माध्यम में भ्रामक विज्ञापन करना कानूनन प्रतिबंधित है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उन्होंने कहा कि इसी कारण जिन व्यक्तियों की दर्शकों तक पहुंच और उनके खरीद संबंधी निर्णयों को प्रभावित करने की शक्ति है, उन्हें नए मानदंडों के अनुसार भौतिक हितों का खुलासा करना होगा.
दिशानिर्देशों के मुताबिक, भौतिक लाभों की परिभाषा में मौद्रिक या अन्य प्रतिफल; किसी भी शर्त या बिना शर्त लगाए नि:शुल्क उत्पाद, बिना मांगे गए या अनापेक्षित उत्पाद सहित; प्रतियोगता; यात्राएं या होटल में ठहरना; मीडिया बार्टर, कवरेज और पुरस्कार; या निजी और रोजगार संबंध भी शामिल हैं.
इसमें मशहूर हस्तियों और इंफ्लुएंसर्स को सलाह दी गई है कि वे समीक्षा करके स्वयं को संतुष्ट करें कि विज्ञापनदाता विज्ञापन में किए गए दावों को प्रमाणित करने की स्थिति में है. दिशानिर्देश कहते हैं, ‘यह भी अनुशंसा की जाती है कि उत्पाद या सेवा विज्ञापनकर्ता द्वारा वास्तव में उपयोग या अनुभव किए जाएं.’
उपभोक्ता मामलों के सचिव सिंह ने कहा, ‘उपभोक्ताओं को पता होना चाहिए कि अगर डिजिटल मीडिया से उन्हें कुछ बेचा जा रहा है तो वह व्यक्ति या संस्था जो इसे प्रायोजित कर रही है, उसने पैसा लिया है या ब्रांड के साथ उनका कोई संबंध है.’
दिशानिर्देशों के अनुसार, खुलासा इस तरह से होना चाहिए कि उसे ‘नजरअंदाज करना मुश्किल’ हो और सरल भाषा में होना चाहिए. इसे हैशटैग या लिंक के समूह के साथ मिलाकर प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है.
उदाहरण के लिए चित्रात्मक विज्ञापन के दौरान प्रकटीकरण को तस्वीर के ऊपर लगाया जाना चाहिए ताकि दर्शक नोटिस कर सकें.
वीडियो के मामले में यह वीडियो के अंदर रखा जाए, न कि सिर्फ विवरण में और उन्हें ऑडियो-वीडियो दोनों प्रारूपों में तैयार किया जाए. वहीं, लाइव स्ट्रीमिंग के मामले में प्रकटीकरण पूरी स्ट्रीमिंग के दौरान प्रदर्शित होते रहना चाहिए.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)