अडानी समूह ने ट्रक यूनियनों से विवाद पर दो सीमेंट संयंत्र बंद किए, कम भाड़ा देने का प्रस्ताव

15 दिसंबर 2022 को अडानी समूह ने हिमाचल प्रदेश में अपने दो सीमेंट संयंत्रों को ट्रक ड्राइवरों के साथ मतभेदों के कारण बंद कर दिया था, जिससे 20,000 से अधिक परिवार प्रभावित हुए हैं. अब सरकार को एक पत्र भेजकर अडानी समूह ने संयंत्र वापस शुरू करने की अपने शर्तें बताई हैं, जिनमें ट्रक ऑपरेटर्स को कम भाड़ा देने और अधिक दूरी तय करने का प्रस्ताव रखा गया है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक)

15 दिसंबर 2022 को अडानी समूह ने हिमाचल प्रदेश में अपने दो सीमेंट संयंत्रों को ट्रक ड्राइवरों के साथ मतभेदों के कारण बंद कर दिया था, जिससे 20,000 से अधिक परिवार प्रभावित हुए हैं. अब सरकार को एक पत्र भेजकर अडानी समूह ने संयंत्र वापस शुरू करने की अपने शर्तें बताई हैं, जिनमें ट्रक ऑपरेटर्स को कम भाड़ा देने और अधिक दूरी तय करने का प्रस्ताव रखा गया है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक)

शिमला: कांग्रेस के सुखविंदर सिंह सुक्खू के मुख्यमंत्री बनने के तीन दिन बाद 15 दिसंबर 2022 को अडानी समूह ने हिमाचल प्रदेश में अपने दो सीमेंट संयंत्रों को ट्रक ड्राइवरों के साथ मतभेदों के कारण बंद कर दिया था. अडानी समूह ने उच्च परिवहन लागत को प्लांट बंद करने के लिए जिम्मेदार माना है.

अब समूह ने कहा है कि उत्पादन फिर से शुरू करने के लिए यूनियनों को एक साल में 50,000 किलोमीटर ट्रक चलाने, वाहनों की संख्या 550 (मौजूदा 3,311 का छठा हिस्सा) करने और सभी परिचालन निर्णय कंपनी पर छोड़ने के लिए सहमत होना होगा.

प्रदेश के बिलासपुर और दाड़लाघाट में कंपनी द्वारा एसीसी और अंबुजा सीमेंट के प्लांट बंद किए गए हैं. सुक्खू के मुख्यमंत्री पद संभालने के कुछ महीने पहले ही समूह ने एसीसी और अंबुजा सीमेंट का अधिग्रहण किया था.

एसीसी ने अपने आधिकारिक फेसबुक पेज पर सितंबर 2022 में जानकारी दी थी कि अंबुजा सीमेंट और एसीसी अब अडानी समूह का हिस्सा हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, 19 जनवरी को हिमाचल प्रदेश की स्थायी समिति के अध्यक्ष को और राज्य के मुख्य सचिव को भेजे गए पत्र में अडानी सीमेंट (एससीसी और अंबुजा सीमेंट) के सीईओ अजय कपूर ने लिखा, ‘यह बहुत ही चिंता वाली स्थिति है, क्योंकि यूनियनें प्रभावी तौर पर परिवहन संबंधी सभी परिचालन निर्णय ले रही हैं, जो कि कंपनी के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. चूंकि माल-भाड़ा यूनियनों द्वारा नियंत्रित किया जाता है, इसलिए उन्होंने कृत्रिम रूप से इसे बहुत उच्च स्तर पर रखा है.’

माल-भाड़ा दरों के मूल्यांकन पर निर्णय लेने के लिए राज्य सरकार द्वारा 2005 में स्थायी समिति का गठन किया गया था.

दोनों पक्ष एक महीने से अधिक समय से एक-दूसरे से बात कर रहे हैं. हालिया बैठक बीते शुक्रवार (20 जनवरी) को हुई थी, जिसमें हिमाचल के उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने भी भाग लिया, लेकिन इसमें कोई निर्णय नहीं हो सका.

राज्य में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के लिए यह पहली बड़ी परीक्षा है, क्योंकि दो सीमेंट संयंत्रों के बंद होने से 20,000 से अधिक परिवार प्रभावित हुए हैं.

विवाद के केंद्र में प्रति टन प्रति किमी की लागत या अडानी समूह द्वारा प्रस्तावित माल ढुलाई दर है. राज्य सरकार के अधिकारियों ने कहा कि परिवहन लागत में कर, बीमा, ह्रास मूल्य, मरम्मत और मजदूरी समेत 11 कारकों को ध्यान में रखा जाता है. इसे ट्रक द्वारा किलोमीटर में तय की गई दूरी और टन में वहन किए जाने वाले वजन से विभाजित करने पर प्रति किमी प्रति टन औसत लागत प्राप्त होती है.

पता चला है कि अडानी समूह ने अंबुजा सीमेंट के लिए 10.58 रुपये प्रति टन प्रति किमी (पीटीपीके) और एसीसी के लिए 11.41 रुपये पीटीपीके की मौजूदा दर के मुकाबले 6 रुपये पीटीपीके की पेशकश की है.

ट्रक संचालकों ने इसे मानने से इनकार कर दिया, जिसके बाद समूह ने दाड़लाघाट में अंबुजा संयंत्र और बिलासपुर में एसीसी संयंत्र को बंद कर दिया.

उचित परिश्रम और हस्तक्षेप की जरूरत का हवाला देते हुए अडानी सीमेंट ने माल ढुलाई दरों को तय करने के लिए अपना ढांचा आगे रखा है.

पत्र में सीईओ कपूर ने कहा कि माल ढुलाई की गणना के लिए प्रति वर्ष 50,000 किमी अनुकूल होगा. इस बदलाव को तीन साल की समयावधि में सुचारू ढंग से लाने के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि इसे फिलहाल 40,000 किमी प्रति वर्ष कर दिया जाए और वार्षिक तौर पर अगले दो साल तक 5,000 किलोमीटर प्रति वर्ष बढ़ाया जाए.

उन्होंने अतिरिक्त वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का भी प्रस्ताव रखा.

पत्र में उन्होंने प्रस्ताव रखा, ‘जैसा कि 12 जनवरी 2023 के हमारे पहले के पत्र में उल्लेख किया गया था, अंबुजा और एसीसी दोनों की आवश्यकता 3,311 की वर्तमान तैनाती के मुकाबले 550 ट्रक है. इसलिए, अगले तीन वर्षों की समय सीमा में अतिरिक्त ट्रकों को चरणबद्ध तरीके से हटाना प्रस्तावित किया जाता है.’

साथ ही, उन्होंने किसी भी नए ट्रकों को जोड़ने पर तत्काल रोक लगाने के लिए भी कहा.

स्थायी समिति के अध्यक्ष को लिखे पत्र में कहा गया है, ‘परिवहन के संबंध में सभी परिचालन निर्णय कंपनियों द्वारा तय किए जाते हैं, जैसा कि अन्य राज्यों में होता है. तैनाती, रूट आदि का फैसला कंपनियों द्वारा बाजार के सिद्धांतों के आधार पर किया जाएगा. क्षमता और ट्रकों का प्रकार कंपनियों द्वारा उनकी परिवहन जरूरतों के अनुसार तय किया जाता है.’

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, राज्य सरकार ने इस मुद्दे को हल करने के लिए एक उप-समिति का भी गठन किया है और हाईकोर्ट द्वारा प्रस्तावित एक सूत्र के आधार पर भाड़ा दरों की गणना करने के लिए राज्य के स्वामित्व वाली एजेंसी हिमकॉन को काम सौंपा है.

हिमकॉन रिपोर्ट की सिफारिशें अभी ज्ञात नहीं हैं. अडानी सीमेंट द्वारा दो संयंत्रों को बंद करने के एक सप्ताह बाद उप-समिति का गठन किया गया था. इसके अध्यक्ष उद्योग विभाग के प्रधान सचिव आरडी नाजिम हैं.

सोलन में ट्रकर्स एसोसिएशन के प्रमुख जय देव कौंडल ने कहा, ‘कंपनी 50,000 किलोमीटर को आधार बता रही है, जो हमारे हितों के खिलाफ है, क्योंकि हर कोई जानता है कि ट्रक इतनी दूरी तय नहीं करते हैं. औसत 21,000 किमी प्रति वर्ष है. प्रति वर्ष दूरी की अधिक सीमा के कारण लागत कम होगी. हमें कंपनी के तर्क का आधार नहीं पता, लेकिन यह स्वीकार्य नहीं है. हम हिमकॉन की रिपोर्ट को स्वीकार करेंगे.’

अडानी समूह द्वारा अतिरिक्त वाहनों के दावों पर कौंडल का कहना है कि मांग के अनुसार ट्रकों की संख्या की आपूर्ति की जाती है. 2010 में संयंत्रों ने और वाहनों की मांग की थी और इसलिए उन्हें दे दिए गए. सभी उम्मीदें अब सरकार की रिपोर्ट पर टिकी हैं.

शुक्रवार को बैठक के बाद उद्योग मंत्री चौहान ने कहा, ‘हम संबंधित पक्षों से बातचीत कर रहे हैं और उठाए गए मुद्दों पर गौर करने के लिए एक उप-समिति का गठन किया गया है. दरें तय करने के लिए हिमकॉन को भी शामिल किया गया है. संयंत्रों को बिना सूचना के बंद कर दिया गया और कारोबार बाधित हो गया. हम इसे जल्द से जल्द सुलझाना चाहते हैं.’