2002 दंगों पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ब्लॉक करने की सरकार की सेंसरशिप अस्वीकार्य: एन. राम

द हिंदू के पूर्व संपादक एन. राम ने मोदी सरकार द्वारा बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को सोशल मीडिया पर ब्लॉक करने को लेकर कहा कि उन्होंने दुनिया को यह संदेश दिया है कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था इतनी नाज़ुक है कि उसे एक ऐसी डॉक्यूमेंट्री से ख़तरा है जो देश में प्रसारित नहीं हुई है और यूट्यूब/ट्विटर तक पहुंच रखने वाली बहुत कम आबादी द्वारा देखी गई है.

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करण थापर और एन. राम. (फोटो: द वायर)

द हिंदू के पूर्व संपादक एन. राम ने मोदी सरकार द्वारा बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को सोशल मीडिया पर ब्लॉक करने को लेकर कहा कि उन्होंने दुनिया को यह संदेश दिया है कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था इतनी नाज़ुक है कि उसे एक ऐसी डॉक्यूमेंट्री से ख़तरा है जो देश में प्रसारित नहीं हुई है और यूट्यूब/ट्विटर तक पहुंच रखने वाली बहुत कम आबादी द्वारा देखी गई है.

करण थापर और एन. राम. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: देश के प्रतिष्ठित पत्रकारों में से एक और द हिंदू के पूर्व संपादक एन. राम ने नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ को यूट्यूब और ट्विटर पर ब्लॉक करने के प्रयास न केवल अस्वीकार्य सेंसरशिप के समान है बल्कि अति निंदनीय हैं.

राम ने कहा कि सरकार ‘बौखला गई है’ और इसने अपने आप ही मुसीबत मोल ली है. उन्होंने  कहा, ‘कोई परिपक्व सरकार होती तो उसने कोई टिप्पणी नहीं की होती या बस इससे असहमति जता दी होती.’

द वायर  के लिए करण थापर के साथ 26 मिनट के एक साक्षात्कार में राम से सबसे पहले बीबीसी  डॉक्यूमेंट्री के बारे में उनकी राय पूछी गई थी, जिसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘यह सावधानीपूर्वक, मेहनत से किए गए शोध का अच्छी तरह से प्रस्तुत किया गया खोजी पत्रकारिता का नमूना है.’

राम ने कहा कि डॉक्यूमेंट्री ने ‘हर नियम का पालन किया है.’ उन्होंने बताया कि बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ने ‘सरकार को प्रतिक्रिया देने का अधिकार’ दिया था, लेकिन सरकार ने इससे इनकार कर दिया.

बातचीत के दौरान राम ने डॉक्यूमेंट्री की मुख्य आलोचनाओं- पहले विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची और फिर उन अज्ञात वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा, जिनके द्वारा लिखा गया एक पत्र कई अख़बारों और मीडिया में आया था- के बारे में भी बात की.

बागची, जिन्होंने डॉक्यूमेंट्री को देखे बिना इसे ‘प्रोपगैंडा’ कहा और ‘पूर्वाग्रह और निष्पक्षता की कमी’ का आरोप लगाया, के बारे में राम ने कहा कि उन्होंने खुद को ‘मजाक का पात्र’ बना लिया है. राम ने कहा कि जाहिर तौर पर उनके इस रुख के लिए सरकार द्वारा दबाव डाला गया है.

डॉक्यूमेंट्री को लेकर बागची के ‘औपनिवेशिक मानसिकता’ वाले दावे पर राम ने कहा कि उनकी यह टिप्पणी समझ से बाहर है.

अज्ञात अधिकारियों द्वारा रविवार के कई समाचार पत्रों में की गई टिप्पणियों कि यह डॉक्यूमेंट्री ‘भारत के सुप्रीम कोर्ट के अधिकार और विश्वसनीयता पर आक्षेप लगाने का प्रयास है’ के बारे में राम ने कहा कि सच ‘इससे बहुत दूर’ है.

उन्होंने कहा कि डॉक्यूमेंट्री में ‘सुप्रीम कोर्ट पर कोई हमला नहीं किया गया है.’ राम ने कहा कि वास्तव डॉक्यूमेंट्री में ही कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने मोदी को बरी करने वाली एसआईटी की रिपोर्ट को स्वीकार किया है और इस तथ्य को छिपाया नहीं है. हालांकि, राम ने यह भी कहा कि ‘अगर वे (बीबीसी) ऐसा करते भी हैं, तो सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करने में कुछ भी गलत नहीं है.’

डॉक्यूमेंट्री के देश की संप्रभुता और अखंडता को प्रभावित करने के दावों को नकारते हुए राम ने कहा कि डॉक्यूमेंट्री से इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

राम से यूट्यूब और ट्विटर पर डॉक्यूमेंट्री को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा’ बताने के आधार पर ब्लॉक करने के सरकार के फैसले के बारे में पूछा गया, जिस पर राम ने कहा कि यह ‘न केवल अस्वीकार्य सेंसरशिप के समान है बल्कि अति की जा रही है.’

उन्होंने कहा कि सरकार ‘बौखला गई’ है. उन्होंने कहा कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसा करते हुए दुनिया को यह संदेश दिया गया है कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था इतनी नाजुक है कि उन्हें एक ऐसी डॉक्यूमेंट्री से खतरा है जो देश में प्रसारित भी नहीं हुई है और देश की केवल उस छोटी-सी आबादी द्वारा देखी गई है, जिनकी यूट्यूब और ट्विटर तक पहुंच है.

राम ने यह भी कहा कि सेंसरशिप का यह कदम मोदी सरकार के इस गर्व भरे दावे की हवा निकाल देता है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. इससे भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान होगा.

यह पूरी बातचीत नीचे दिए गए लिंक पर देखी जा सकती है.

(अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)