न्यायपालिका से टकराव के लिए जानबूझकर हमले किए जा रहे हैं, इसके ख़िलाफ़ खड़े होने की ज़रूरत: खड़गे

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया कि आज हमें सबसे ज़्यादा ज़रूरत संविधान के बुनियादी सिद्धांतों को सुरक्षित करने की है क्योंकि कुछ लोग हैं, जिन्होंने भारतीय संविधान पर कभी यक़ीन नहीं किया, कभी इसका सम्मान नहीं किया. आज वही लोग हर एक संवैधानिक संस्थान को कमज़ोर करने में जुटे हुए हैं.

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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे. (फाइल फोटो: पीटीआई)

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया कि आज हमें सबसे ज़्यादा ज़रूरत संविधान के बुनियादी सिद्धांतों को सुरक्षित करने की है क्योंकि कुछ लोग हैं, जिन्होंने भारतीय संविधान पर कभी यक़ीन नहीं किया, कभी इसका सम्मान नहीं किया. आज वही लोग हर एक संवैधानिक संस्थान को कमज़ोर करने में जुटे हुए हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बुधवार को आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी सरकार में जानबूझकर न्यायपालिका से टकराव के लिए (उस पर) हमले किए जा रहे हैं जिसके खिलाफ लोगों को खड़े होने की जरूरत है.

खड़गे ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जारी एक संदेश में यह टिप्पणी की. खड़गे की यह टिप्पणी तब आई है जब केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सोमवार (23 जनवरी) को तीस हजारी अदालत में आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह में कहा था कि न्यायाधीश निर्वाचित नहीं होते हैं, इसलिए उन्हें सार्वजनिक जांच का सामना नहीं करना पड़ता है.

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘हमारा संविधान ही हमारे देश की आत्मा है. संविधान निर्माताओं ने न्याय, समानता, आज़ादी, परस्पर भाईचारा, धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद की मूल भावनाओं को आधार बनाकर इस देश के नागरिकों को समान अवसर एवं समान सुरक्षा प्रदान की. यही हमारे लोकतंत्र की नींव है.’

उन्होंने कहा, ‘आज हमें सबसे ज़्यादा ज़रूरत संविधान के इन्हीं बुनियादी सिद्धांतों को सुरक्षित करने की है क्योंकि कुछ लोग हैं, जिन्होंने भारतीय संविधान पर कभी यक़ीन नहीं किया, कभी इसका सम्मान नहीं किया.’

कांग्रेस अध्यक्ष ने दावा किया, ‘इन लोगों ने संविधान के विरुद्ध ही बात की और काम किए. आज वही लोग हर एक संवैधानिक संस्थान को कमज़ोर करने में जुटे हुए हैं. पिछले दरवाज़े से चुनी हुई सरकारों को गिराते हैं. संस्थाओं का दुरुपयोग कर विपक्ष को डराते-धमकाते हैं, झूठे मुक़दमों में फंसाते हैं.’

उन्होंने यह आरोप भी लगाया, ‘ये लोग अपने अरबपति मित्रों को देश की संपत्ति बेचते है और उन्हीं की मदद से मीडिया को अपने चंगुल में करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे सरकार की सच्चाई लोगों के सामने उजागर ना हो पाए. जानबूझकर न्यायपालिका से टकराव करने के लिए हमले करते हैं. विश्वविद्यालयों में छात्रों के बीच नफ़रत का बीज बोया जा रहा है.’

खड़गे ने यह दावा भी किया कि हर उस संस्थान को जो स्वतंत्र रूप से संविधान के अनुरूप चल रहा था, उसमें अपने लोगों को बैठाकर (सरकार द्वारा) उसे अपने वश में करने का षड्यंत्र जारी है.

उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि महंगाई, बेरोज़गारी और आर्थिक असमानता के आंकड़े मोदी सरकार की विफलताओं की कहानी स्पष्ट शब्दों में बयान कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज को कमजोर करने की सोची समझी साज़िश चल रही है. ग़रीबों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है. भाई को भाई से, एक धर्म के लोगों को दूसरे धर्म के लोगों से, एक जाति के लोगों को दूसरी जाति के लोगों से, एक समुदाय के लोगों को दूसरे समुदाय से लड़ाने का काम लगातार चल रहा है और प्रधानमंत्री और उनकी सरकार को भाषण, प्रचार और चुनाव के अलावा किसी बात से मतलब नहीं है.’

खड़गे ने लोगों का आह्वान किया, ‘आइए, हम सब मिलकर अपने संविधान और संवैधानिक संस्थानों को मज़बूत बनाएं. न्यायपालिका पर हो रहे आक्रमण के विरोध में खड़े हों. ग़रीबों और वंचितों के अधिकारों को सुनिश्चित करें और भारत को एक सुनहरे भविष्य की ओर ले जाएं.’

उल्लेखनीय है कि जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली बीते कुछ समय से केंद्र और न्यायपालिका के बीच गतिरोध का विषय बनी हुई है, जहां कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू कई बार विभिन्न प्रकार की टिप्पणियां कर चुके हैं.

दिसंबर 2022 में संपन्न हुए संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान रिजिजू सुप्रीम कोर्ट से जमानत अर्जियां और ‘दुर्भावनापूर्ण’ जनहित याचिकाएं न सुनने को कह चुके हैं, इसके बाद उन्होंने अदालत की छुट्टियों पर टिप्पणी करने के साथ कोर्ट में लंबित मामलों को जजों की नियुक्ति से जोड़ते हुए कॉलेजियम के स्थान पर नई प्रणाली लाने की बात दोहराई थी.

इससे पहले भी रिजिजू कुछ समय से न्यायपालिका, सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम प्रणाली को लेकर आलोचनात्मक बयान देते रहे हैं.

नवंबर 2022 में किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम व्यवस्था को ‘अपारदर्शी और एलियन’ बताया था. उनकी टिप्पणी को लेकर शीर्ष अदालत ने नाराजगी भी जाहिर की थी.

सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम की विभिन्न सिफारिशों पर सरकार के ‘बैठे रहने’ संबंधी आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए रिजिजू ने कहा था कि ऐसा कभी नहीं कहा जाना चाहिए कि सरकार फाइलों पर बैठी हुई है.

नवंबर 2022 में ही सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि सरकार का कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नाम रोके रखना अस्वीकार्य है. कॉलेजियम प्रणाली के बचाव में इसके बाद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि संवैधानिक लोकतंत्र में कोई भी संस्था परफेक्ट नहीं है.

इसके बाद दिसंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली इस देश का कानून है और इसके खिलाफ टिप्पणी करना ठीक नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसके द्वारा घोषित कोई भी कानून सभी हितधारकों के लिए ‘बाध्यकारी’ है और कॉलेजियम प्रणाली का पालन होना चाहिए.

वहीं, इसी महीने की शुरुआत में रिजिजू ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखते हुए कहा था कि केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को हाईकोर्ट के कॉलेजियम में जगह दी जानी चाहिए. विपक्ष ने इस मांग की व्यापक तौर पर निंदा की थी.

बीते 22 जनवरी को ही रिजिजू ने दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आरएस सोढ़ी के एक साक्षात्कार का वीडियो साझा करते हुए उनके विचारों का समर्थन किया था. सोढ़ी ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने खुद न्यायाधीशों की नियुक्ति का फैसला कर संविधान का ‘अपहरण’ (Hijack) किया है.

सोढ़ी ने यह भी कहा था कि कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है. इसे लेकर कानून मंत्री का कहना था, ‘वास्तव में अधिकांश लोगों के इसी तरह के समझदारीपूर्ण विचार हैं. केवल कुछ लोग हैं, जो संविधान के प्रावधानों और जनादेश की अवहेलना करते हैं और उन्हें लगता है कि वे भारत के संविधान से ऊपर हैं.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)