न्यायपालिका को प्रधानमंत्री कार्यालय का हिस्सा बनाने की कोशिश की जा रही है: कांग्रेस

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने केंद्र सरकार पर  निशाना साधते हुए कहा कि संविधान की अनदेखी की जा रही है, संवैधानिक निकायों को कमज़ोर किया जा रहा है और न्यायपालिका को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है.

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कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश. (फाइल फोटो: पीटीआई)

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने केंद्र सरकार पर  निशाना साधते हुए कहा कि संविधान की अनदेखी की जा रही है, संवैधानिक निकायों को कमज़ोर किया जा रहा है और न्यायपालिका को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है.

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश. (फोटो: पीटीआई)

खानबल: कांग्रेस ने सरकार पर निशाना साधते हुए शुक्रवार को आरोप लगाया कि देश में ‘अघोषित आपातकाल’ है और ‘न्यायपालिका को प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) का हिस्सा बनाने’ का प्रयास किया जा रहा है.

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का उद्देश्य देश के सामने ऐसे ‘खतरों’ को उजागर करना है.

रमेश ने यहां संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि यात्रा का उद्देश्य बढ़ती आर्थिक विषमता को उजागर करना, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर चुनावी लाभ के लिए कथित रूप से सामाजिक ध्रुवीकरण करने और देश में व्याप्त ‘राजनीतिक तानाशाही’ को चिह्नित करना है.

रमेश ने भारत और चीन के बीच सीमा गतिरोध का जिक्र करते हुए कहा, ‘देश में अघोषित आपातकाल है. एक व्यक्ति का शासन है, संसद की अनदेखी की जा रही है, संसद में बहस नहीं होती है. हमारी सीमाओं पर खतरा इस बात का उदाहरण है, जिस पर ढाई साल बीत जाने के बावजूद चर्चा नहीं हो पाई है.’

उन्होंने आरोप लगाया, ‘संविधान की अनदेखी की जा रही है, संवैधानिक निकायों को कमजोर किया जा रहा है और न्यायपालिका को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है. हर दिन टिप्पणियां की जा रही हैं, न्यायपालिका को पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) का हिस्सा बनाने का प्रयास किया जा रहा है.’

उनकी टिप्पणी उच्चतर न्यायपालिका में नियुक्तियों के मुद्दे पर चल रही बहस की पृष्ठभूमि में आई है, जिसमें सरकार वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठा रही है और उच्चतम न्यायालय इसका बचाव कर रहा है.

रमेश ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘तो सवाल यह है कि जब देश को कोई तोड़ नहीं रहा, तो कांग्रेस भारत को एकजुट करने के लिए क्यों निकली है, हम कह रहे हैं कि देश विभाजित हो रहा है, खतरे हैं और अगर हम कदम नहीं उठाते, तो खतरे बढ़ेंगे, इसलिए हम आर्थिक विषमताओं, सामाजिक ध्रुवीकरण और राजनीतिक तानाशाही के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. चुनावी रणनीति का यात्रा से कोई लेना-देना नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘दो रास्ते हैं- एक रास्ता आरएसएस-भाजपा का है और अपने रास्ते के मुताबिक वे ‘एक व्यक्ति, एक व्यवस्था’ का इस्तेमाल कर रहे हैं और दूसरा रास्ता सद्भाव का है, जो कांग्रेस का तरीका है, महात्मा गांधी का तरीका है, राहुल गांधी का तरीका है, जहां लोकतंत्र की धुन बजाई जा रही है.. ये दो रास्ते हैं, जो हमारे देश के सामने हैं.’

मालूम हो कि राहुल गांधी के नेतृत्व में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ सात सितंबर को तमिलनाडु के कन्याकुमारी से शुरू हुई. इसका समापन राहुल गांधी द्वारा श्रीनगर स्थित पार्टी मुख्यालय में राष्ट्रीय ध्वज फहराने और 30 जनवरी को शेर-ए-कश्मीर क्रिकेट स्टेडियम में एक बड़ी रैली को संबोधित करने के साथ होगा.

रमेश से पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बुधवार (25 जनवरी) को आरोप लगाया था कि नरेंद्र मोदी सरकार में जानबूझकर न्यायपालिका से टकराव के लिए (उस पर) हमले किए जा रहे हैं जिसके खिलाफ लोगों को खड़े होने की जरूरत है.

खड़गे ने यह दावा भी किया था कि हर उस संस्थान को जो स्वतंत्र रूप से संविधान के अनुरूप चल रहा था, उसमें अपने लोगों को बैठाकर (सरकार द्वारा) उसे अपने वश में करने का षड्यंत्र जारी है.

उल्लेखनीय है कि जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली बीते कुछ समय से केंद्र और न्यायपालिका के बीच गतिरोध का विषय बनी हुई है, जहां कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू कई बार विभिन्न प्रकार की टिप्पणियां कर चुके हैं.

दिसंबर 2022 में संपन्न हुए संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान रिजिजू सुप्रीम कोर्ट से जमानत अर्जियां और ‘दुर्भावनापूर्ण’ जनहित याचिकाएं न सुनने को कह चुके हैं, इसके बाद उन्होंने अदालत की छुट्टियों पर टिप्पणी करने के साथ कोर्ट में लंबित मामलों को जजों की नियुक्ति से जोड़ते हुए कॉलेजियम के स्थान पर नई प्रणाली लाने की बात दोहराई थी.

इससे पहले भी रिजिजू कुछ समय से न्यायपालिका, सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम प्रणाली को लेकर आलोचनात्मक बयान देते रहे हैं.

नवंबर 2022 में किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम व्यवस्था को ‘अपारदर्शी और एलियन’ बताया था. उनकी टिप्पणी को लेकर शीर्ष अदालत ने नाराजगी भी जाहिर की थी.

सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम की विभिन्न सिफारिशों पर सरकार के ‘बैठे रहने’ संबंधी आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए रिजिजू ने कहा था कि ऐसा कभी नहीं कहा जाना चाहिए कि सरकार फाइलों पर बैठी हुई है.

नवंबर 2022 में ही सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि सरकार का कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नाम रोके रखना अस्वीकार्य है. कॉलेजियम प्रणाली के बचाव में इसके बाद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि संवैधानिक लोकतंत्र में कोई भी संस्था परफेक्ट नहीं है.

इसके बाद दिसंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली इस देश का कानून है और इसके खिलाफ टिप्पणी करना ठीक नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसके द्वारा घोषित कोई भी कानून सभी हितधारकों के लिए ‘बाध्यकारी’ है और कॉलेजियम प्रणाली का पालन होना चाहिए.

वहीं, इसी महीने की शुरुआत में रिजिजू ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखते हुए कहा था कि केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को हाईकोर्ट के कॉलेजियम में जगह दी जानी चाहिए. विपक्ष ने इस मांग की व्यापक तौर पर निंदा की थी.

बीते 22 जनवरी को ही रिजिजू ने दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आरएस सोढ़ी के एक साक्षात्कार का वीडियो साझा करते हुए उनके विचारों का समर्थन किया था. सोढ़ी ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने खुद न्यायाधीशों की नियुक्ति का फैसला कर संविधान का ‘अपहरण’ (Hijack) किया है.

सोढ़ी ने यह भी कहा था कि कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है. इसे लेकर कानून मंत्री का कहना था, ‘वास्तव में अधिकांश लोगों के इसी तरह के समझदारीपूर्ण विचार हैं. केवल कुछ लोग हैं, जो संविधान के प्रावधानों और जनादेश की अवहेलना करते हैं और उन्हें लगता है कि वे भारत के संविधान से ऊपर हैं.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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