भारत जोड़ो यात्रा ने प्रभावी तरीके से ‘पप्पू’ छवि को ध्वस्त किया है

भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस साथ आकर पूरे जी-जान से चुनाव लड़ सकेगी, यह सवाल अब भी बाकी है, मगर जिस बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है, वह यह है कि राहुल गांधी ने ऐसे समय में जब देश में ध्रुवीकरण बढ़ रहा है, एक वैकल्पिक विचार पेश किया- कि देश को एक बार फिर साथ जोड़ने की ज़रूरत है.

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भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कश्मीर में कांग्रेस नेता राहुल गांधी. (फाइल फोटो साभार: bharatjodoyatra.in)

भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस साथ आकर पूरे जी-जान से चुनाव लड़ सकेगी, यह सवाल अब भी बाकी है, मगर जिस बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है, वह यह है कि राहुल गांधी ने ऐसे समय में जब देश में ध्रुवीकरण बढ़ रहा है, एक वैकल्पिक विचार पेश किया- कि देश को एक बार फिर साथ जोड़ने की ज़रूरत है.

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कश्मीर पहुंचे कांग्रेस नेता राहुल गांधी. (फोटो साभार: bharatjodoyatra.in)

भारत जोड़ो यात्रा अपने समापन की ओर बढ़ रही है- 30 जनवरी को यह कश्मीर में समाप्त होगी. उस समय तक राहुल गांधी को पैदल चलते हुए पांच महीने हो चुके होंगे. कन्याकुमारी से शुरू हुऊ और कई राज्यों से गुजरते हुए इस यात्रा ने अपने पूरे सफर में उत्साहित भीड़ को अपनी ओर आकर्षित किया है.

बड़े मीडिया द्वारा नजरअंदाज किए जाने, भाजपा द्वारा मजाक बनाए जाने और राह में आई कई बाधाओं- भीड़ के कारण कोविड-19 संक्रमण का खतरा बढ़ने की चेतावनियों– के बावजूद वे बिना रुके चलते रहे और जैसा की बताया जा रहा है, अक्सर रोज 20 किलोमीटर से ज्यादा पैदल चले. इस दौरान वे हर समय एक सफेद रंग की टी शर्ट पहने रहे, जो अब एक तरह का ट्रेडमार्क बन चुका है. वे मुस्कराते रहे, लोगों से गले मिलते रहे, प्रेस से बात करते रहे और घनी दाढ़ी बढ़ा ली. इस पूरी कवायद की सांकेतिकता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

बड़े मीडिया में ज्यादा कवरेज नहीं मिलने के बावजूद, इसमें बड़ी संख्या में लोगों- नौजवान, संपन्न, गरीब, सेलेब्रिटीज और अन्य- ने शिरकत की. वैकल्पिक मीडिया और ऑनलाइन माध्यमों पर इस पर टिप्पणियों की कोई कमी नहीं थी, जिनमें मीडिया विशेषज्ञ भी शामिल हैं, जिनकी राय थी कि इस कवायद से कांग्रेस की समस्याओं का अंत शायद न हो और न ही इससे चुनावों में जीत मिलनेवाली है.

चुनाव अभी कुछ समय दूर है, लेकिन एक चीज साफ है-  यात्रा ने पूरी तरह से और सदा के लिए पूरे ‘पप्पू’ वाले नैरेटिव को ध्वस्त कर दिया है. वर्षों से एक पूरी इंडस्ट्री सिर्फ गांधी परिवार के चश्मो-चिराग को चीजों की जानकारी न रखने वाले मूर्ख, जिसकी एकमात्र योग्यता गांधी परिवार का वारिस होना है, के तौर पर स्थापित करने के लिए काम कर रही थी.

उनके द्वारा कही जाने वाली हर बात का मजाक बनाया जाता था, इस बात की परवाह किए बगैर कि ये बातें अक्सर काफी समझदारी भरी होती थीं- इसका एक अच्छा उदाहरण जनवरी, 2020 में उनके द्वारा कोविड-19 के दस्तक को लेकर दी गई चेतावनी और और इसके प्रसार को रोकने के लिए प्रभावशाली कदम उठाने  को लेकर दी गई उनकी सलाह है.

लेकिन यह वह समय था, जब डोनाल्ड ट्रंप भारत आने वाले थे और सरकार निश्चिंत मुद्रा में दिख रही थी. यह अलग बात है कि अचानक नींद से जागते हुए बगैर किसी पूर्व सूचना के इसने देशव्यापी लॉकडाउन लगा दिया, जिसने देश के करोड़ों लोगों को भीषण संकट में झोंक दिया.

राहुल गांधी सिर्फ उन लोगों का मनपसंद निशाना नहीं हैं, जो उनकी पार्टी के खिलाफ हैं, बल्कि वे उन स्वयंघोषित, मुख्यतौर पर शहरी ‘तटस्थों’ के भी पसंदीदा निशाना हैं, जिनका कहना है कि वे भाजपा के समर्थक नहीं हैं, लेकिन उन्हें कांग्रेस में भाजपा का विकल्प नहीं दिखता.

इसमें काफी हद तक सच्चाई भी है, क्योंकि कांग्रेस अपने ही घर को संभालकर रख पाने और जीत हासिल करने की कोई कारगर रणनीति ईजाद कर पाने और अपने विधायकों को संभाल कर रख पाने में समर्थ नहीं दिख रही है. लेकिन सबसे बढ़कर उनको लेकर बनाई गई ‘पप्पू’ की छवि थी, जो इतने गहरे तक धंस गई कि लोगों को यह लगने लगा कि उनसे कुछ भी उम्मीद लगाना बेमानी है.

वह छवि अब छूमंतर हो गई है. यह स्पष्ट है कि राहुल गांधी खाली घड़ा नहीं हैं. इस यात्रा ने उनकी छवि का कायापलट एक ऐसे व्यक्ति में कर दिया है, जिसके पास देने के लिए कुछ अलग है- सौहार्द के इर्द-गिर्द केंद्रित दृष्टिकोण. एक ऐसे देश में जो नफरत और आपसी रंजिश से जख्मी है.

उन्होंने जो एक काम और किया है वह है यह बताना कि उन पर हर तरफ से निशाना साधना निरर्थक है. उन्होंने प्रेस से कहा, ‘मैंने राहुल गांधी को मार दिया है. उसका वजूद सिर्फ आपके और भाजपा के दिमाग में है.’ उन्होंने उनसे राहुल गांधी की मनोग्रंथि से बाहर निकल आने के लिए कहा.

इसलिए उनसे चुनावों में चमत्कार कर दिखाने की उम्मीद करना गलत होगा. उन्होंने यह बात बार-बार कही कि वे कांग्रेस के अध्यक्ष पद में दिलचस्पी नहीं है और वे उसकी रेस से बाहर रहे. ऐसे में चुनाव की जिम्मेदारी उनके कंधे पर नहीं है.

यह भी तय है कि राहुल गांधी का मजाक बनाने का सिलसिला नहीं थमेगा. इसमें यह बात अंतर्निहित है कि उनकी तुलना नरेंद्र मोदी से नहीं हो सकती है, जो एक निर्णय लेने वाले, बुद्धिमान, दूरदृष्टि वाले नेता है और जिनका भाषण कौशल जबरदस्त है. साथ में यह भी कि उन्होंने पार्टी को दो आम चुनावों में बड़ी जीत दिलाई है.

मोदी के अनुयायियों द्वारा उनके साथ जोड़ी जाने वाली कई विशेषताएं गंभीर जांच की कसौटी पर खरी नहीं उतरती हैं, लेकिन जब भारत का पूरा मीडिया ही आपका चियर लीडर बना हो, तब कुछ और कहने के लिए कोई गुंजाइश कहां बचती है?

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने काफी मुखर तरीके से एक ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण किया है, जो मोदी की शख्सियत का मुकाबला कई तरह से करता है. एक साधारण, सफेद, हाफ टी शर्ट, जिसे वे कंपकपाती ठंड में भी पहने रहते हैं, ने मोदी के अतिशय परिधान प्रेम- डिजाइन कपड़े, ब्रांडेड एक्सेसरीज आदि- को सबके सामने ला दिया.

वे लगातार चलते रहते हैं, मिलने आने वाले लोगों, उनकी सामाजिक हैसियत चाहे जो भी हो, से गले मिलते हैं, और इस तरह से नागरिकों के साथ अंतरंग, सहानुभूतिपूर्ण रिश्ता कायम करते हैं- यह एक ऐसी चीज है, जो नरेंद्र मोदी ने कभी नहीं किया है. उनके आलिंगन विश्व नेताओं और वैश्विक कारोबारियों के लिए आरक्षित हैं.

राहुल गांधी प्रेस से बिना किसी रोक-टोक के संवाद करते हैं, जो नरेंद्र मोदी से उनके बीच एक और अंतर को दिखाता है, जिन्होंने लगभग नौ सालों में एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं किया है. इसके साथ उनकी उम्र और उनकी ऊर्जा को जोड़ दीजिए, जो एक नौजवान देश के साथ एक रिश्ता कायम कर लेती है.

लेकिन एक बड़ा सवाल अभी भी बना हुआ है- क्या इसने (भारत जोड़ो यात्रा) ने कांग्रेस में फिर से इतना जीवन का संचार कर दिया है कि यह अपनी पूरी जी-जान और पूरी क्षमता से एक साथ आकर चुनावों के दंगल में उतर सके? कर्नाटक में प्रतिद्वंद्वी नेताओं ने यात्रा में भाग लिया- क्या इसका मतलब यह है कि वे अपने मतभेदों को इस साल होने वाले चुनाव के समय भुला देंगे?

संभावना यह है कि वे ऐसा नहीं करेंगे और कांग्रेस में रातोंरात कोई बदलाव नहीं होने वाला है. इसकी समस्याएं बहुत गहरी हैं. दूसरी तरफ राहुल गांधी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले लोगों के उत्साह का मंजर पार्टी को एकजुट होकर एक इकाई की तरह लड़ने के लिए और अपने विधायकों को बचाए रखने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है. हमें इसके बारे में जल्दी ही पता चलेगा.

जिस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, वह यह है कि राहुल गांधी ने एक ऐसे समय में जब देश में ध्रुवीकरण बढ़ रहा है, एक वैकल्पिक विचार पेश किया है- कि देश को एक बार फिर से एक साथ जोड़ने की जरूरत है.

यह जोड़ो और तोड़ो की लड़ाई है, जिसका जिक्र उन्होंने बार-बार किया है. यह उनके द्वारा दिया गया एक आशा और उम्मीद से भरा हुआ और बाकी सारी चीजों से आगे निकल जाने वाला विचार है, जिसका स्वागत लाखों भारतीयों ने किया और सहज बोध से उनके संदेश और मिशन को समझा.

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