हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव: तकनीक बनाम परपंरा की जंग

ग्राउंड रिपोर्ट: भाजपा जहां सत्ता विरोधी भावना को भुनाने के लिए तकनीक का भरपूर इस्तेमाल कर रही है, वहीं कांग्रेस वीरभद्र सिंह को आगे कर परंपरागत तरीके से प्रचार करके ये चुनावी बाज़ी जीतने की कोशिश में है.

//

ग्राउंड रिपोर्ट: भाजपा जहां सत्ता विरोधी भावना को भुनाने के लिए तकनीक का भरपूर इस्तेमाल कर रही है, वहीं कांग्रेस वीरभद्र सिंह को आगे कर परंपरागत तरीके से प्रचार करके ये चुनावी बाज़ी जीतने की कोशिश में है.

himachal (1)
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फोटो: पीटीआई)

शिमला: हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस दोनों पार्टियां बिल्कुल जुदा अंदाज में चुनावी मैदान में हैं. कांग्रेस का चुनावी प्रचार जहां मुख्यमंत्री और राजा वीरभद्र के नेतृत्व में परंपरागत तरीके से किया जा रहा है.

वहीं भाजपा के चुनावी प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की जोड़ी बनाकर हाईटेक तरीके से प्रचार पर जोर है.

गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव 68 सदस्यों वाले हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने 36 सीटें जीती थीं. वहीं भाजपा के खाते में 26 और छह सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी.

इस बार सत्ता पर किसी भी तरीके से काबिज होने के लिए भाजपा ने अपने चुनावी प्रचार में तकनीक पर जोर दिया है. भाजपा ने प्रदेश में उन विधानसभा सीटों को चिह्नित किया है जिस पर उनकी आंतरिक रिपोर्ट के मुताबिक अगर मेहनत की गई तो पार्टी को चुनाव में जीत मिल सकती है.

इन विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी ने बाकायदा वॉररूम बनाया है जो चुनाव प्रचार के बेहतर समन्वय के साथ-साथ सोशल मीडिया के लिए ऐसे संदेश तैयार कर रहा है, जिसमें प्रदेश सरकार की खामियों और केंद्र सरकार के नीतियों की प्रशंसा की गई होती है.

कसौली विधानसभा के धर्मपुरा में बने भाजपा के एक ऐसे वॉररूम का दौरा द वायर  ने किया. वहां हमारी मुलाकात एक कंप्यूटर सेंटर के मालिक राजेंद्र सिंह से हुई जो पिछले दो दशकों से भाजपा से जुड़े हैं.

राजेंद्र सिंह यहां प्रत्याशी कार्यालय का कार्यभार संभाल रहे थे. उन्होंने अपने कंप्यूटर सेंटर के एक हिस्से को केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से भेजे गए कंप्यूटर एक्सपर्ट की टीम को वॉररूम बनाने के लिए दे रखा है. उनके मुताबिक वॉररूम बनने के बाद से चुनाव प्रचार में उन्हें बहुत फायदा मिल रहा है.

उन्होंने बताया, ‘एक्सपर्ट की यह टीम पार्टी के सभी मोर्चों जैसे महिला, युवा, दलित, व्यापार और बूथ लेवल कार्यकर्ताओं के बीच बेहतर समन्वय बना रही है. यह टीम ऐसे कार्यकर्ताओं की लिस्ट भी तैयार करती है जो अभी चुनाव के वक्त बेहतर काम नहीं कर रही है. इस टीम ने बड़ी संख्या में वॉट्सऐप ग्रुप बना रखा है जिससे सभी बूथ लेवल के प्रभारियों को जोड़ा गया है. इसमें केंद्र सरकार की नीतियों की जानकारी प्रभारियों को मुहैया कराई जाती है ताकि वे मतदाताओं को इसकी जानकारी दे सकें.’

Himachal BJP Office Photo By Amit Singh
हिमाचल प्रदेश के धर्मपुरा में भाजपा प्रत्याशी का चुनाव कार्यालय. (फोटो: अमित सिंह/द वायर)

कंप्यूटर सेंटर में बने वॉररूम में दो लड़कियां सिर्फ डाटा अपडेट करने के काम में लगी हुई थी. वे फोन पर बूथ लेवल प्रभारियों, मोर्चा प्रभारियों और कार्यकर्ताओं से उनके हर दिन का कार्यक्रम पूछती हैं और उन घरों की जानकारी लेती हैं जहां पर ये चुनाव प्रचार के लिए गए हुए होते हैं.

इसके बाद मतदाताओं को फोनकर तथ्यों की जांच भी की जाती है कि हमारे कार्यकर्ता आपके पास आए थे. उन्होंने आपको क्या-क्या जानकारी दी. वे इस चुनावी कैंपेन के फीडबैक के एक्सेल शीट पर अपलोड करती हैं, जहां से इसकी निगरानी शिमला और दिल्ली स्थित ऑफिसों में होती है.

इसके चलते पार्टी के स्थानीय बूथों और कार्यकर्ताओं की निगरानी और उनके प्रदर्शन का दिनवार मूल्यांकन हो जाता है. जहां पर कोई समस्या आती है केंद्रीय नेतृत्व के तरफ से भेजे गए पर्यवेक्षक वहां हस्तक्षेप करता है.

भाजपा ने इस तरह के हाईटेक चुनाव प्रचार को 2014 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद प्रमुख विधानसभा चुनावों में आजमाया है. इसका फायदा भी उन्हें मिला है.

वॉररूम की टीम में शामिल एक युवक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘इससे पहले हमने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कानपुर में काम किया था. वहां हमें ऐसी सीटों पर बढ़िया रिजल्ट मिले जहांं किसी को उम्मीद नहीं थी.’

उन्होंने बताया, ‘इस तरह के चुनाव प्रचार का सबसे बड़ा फायदा यह है कि हम बड़ी संख्या में ऐसे कार्यकर्ताओं की पहचान कर लेते हैं जो बेहतरीन काम करते हैं और स्थानीय स्तर पर उनको पहचान नहीं मिल पाती है. ऐसे लोगों का डाटा जब हम इस बार भेज देंगे तो आगामी लोकसभा चुनाव में वो पार्टी के लिए फायदेमंद रहेंगे. इसके अलावा ऐसे कार्यकर्ताओं की भी पहचान हो जाती है जो बढ़िया काम नहीं कर रहे होते हैं.’

उन्होंने आगे बताया, ‘इस वॉररूम के जरिये हम कार्यकर्ताओं को शिक्षित करने का काम करते हैं. हम उन्हें केंद्र सरकार की नीतियों की जानकारी आॅनलाइन मुहैया कराते हैं ताकि वे मतदाताओं को इसकी जानकारी दे सकें. साथ ही जीएसटी, नोटबंदी या दूसरी नीतियों के बारे जो भ्रम हैं उसे दूर करने में मदद करते हैं. इसके अलावा प्रदेश सरकार की किन नीतियों पर चोट करनी है इसकी भी जानकारी देते हैं.’

वहीं धर्मपुरा में भाजपा के कार्यालय से ही चंद कदम दूरी पर कांग्रेस का कार्यालय है, जहां चुनाव प्रचार का नजारा दूसरी तरह का है.

कांग्रेस कार्यालय का प्रभार संभाल रहे हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व कोषाध्यक्ष नरेश कुमार गुप्ता कहते हैं कि पार्टी का पूरा प्रचार परपंरागत तरीके से किया जा रहा है. हम डोर टू डोर कैंपेन, नुक्कड़ सभा, छोटी-बड़ी रैलियां कर रहे हैं. हमारा पूरा फोकस लोगों से मिलने का है.

गुप्ता आगे बताते हैं, ‘कांग्रेस के चुनाव प्रचार की कमान मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने संभाल रखी है. वह इस विधानसभा क्षेत्र में भी चुनाव प्रचार के लिए रैली कर चुके हैं. केंद्रीय स्तर पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के अलावा ऐसा कोई चेहरा अभी पार्टी के पास नहीं है जो हिमाचल में लोगों को अपील कर सके. इसलिए सारा दारोमदार मुख्यमंत्री के कंधों पर है.’

सोशल मीडिया और तकनीक के बारे में गुप्ता कहते हैं, ‘हमारे पास सोशल मीडिया पर प्रचार के लिए बहुत सपोर्ट नहीं है. हमारे पास इसके लिए अलग से कोई टीम नहीं है. हालांकि कुछ कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं. फेसबुक पर पेज बना है. वॉट्सऐप ग्रुप हैं लेकिन यह सिर्फ कार्यकर्ताओं के लेवल पर है.’

Himachal Congress Office Photo Amit Singh
हिमाचल प्रदेश के धर्मपुरा में कांग्रेस प्रत्याशी का चुनाव कार्यालय. (फोटो: अमित सिंह/द वायर)

हालांकि कसौली में गुप्ता कांग्रेस की जीत के प्रति आश्वस्त दिखे. उनका कहना है कि कांग्रेस प्रत्याशी विनोद सुल्तानपुरी यहां के छह बार सांसद रहे केडी सुल्तानपुरी के बेटे हैं और पिछली बार मात्र 24 वोट से हारे थे. इस बार हमारी जीत की संभावना से भाजपा घबराई हुई है. वैसे भी 1972 के बाद से हुए 11 विधानसभा चुनावों में इस सीट से कांग्रेस को सात बार जीत मिली है.

वहीं, नैना देवी विधानसभा क्षेत्र में प्रत्याशी कार्यालय में प्रबंधन संभाल रहे कांग्रेस कार्यकर्ता जसराज ने तकनीक के इस्तेमाल किए जाने केे सवाल पर कहा, ‘हमें इसकी ज्यादा जरूरत नहीं है. वीरभद्र सिंह की सरकार ने जनता के लिए काम किया है. हम जनता से सीधे मिल रहे हैं. फेसबुक, ट्विटर, वॉट्सऐप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की जरूरत उन्हें हैं जिन्होंने काम नहीं किया है. जिन्हें जनता से सीधे मिलने में घबराहट होती है. वो इसका इस्तेमाल लोगों को बरगलाने के लिए करते हैं. हम जनता से सीधे मिल रहे हैं. हमारे नेता वीरभद्र सिंह की एक बड़ी रैली भी हमारे विधानसभा क्षेत्र में हो चुकी है.’

कुछ ऐसा ही कहना अर्की विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस की प्रचार गाड़ी पर सवार कार्यकर्ता यशपाल का है. यशपाल कहते हैं, ‘हमारे यहां की जनता को आप सोशल मीडिया से नहीं भरमा सकते हैं. जिसे इसकी जरूरत हो वह इसका इस्तेमाल करें. हमारे लिए यही बहुत है कि मुख्यमंत्री इस विधानसभा से चुनाव लड़ रहे हैं. अब अगर मुख्यमंत्री ही आपके घर, मोहल्ले और बाजार में आकर आपसे मिल रहा है तो फिर सोशल मीडिया की क्या जरूरत है.’

कांग्रेस के अलग-अलग प्रत्याशियों के कार्यालयों पर सोशल मीडिया पर चुनाव प्रचार का तरीका पूछे जाने पर ऐसे ही जवाब मिले. युवा कार्यकर्ता चुनाव प्रचार के लिए तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन भाजपा की तरह इसका कोई संगठनात्मक ढांचा मौजूद नहीं है. हालांकि ज्यादातर प्रत्याशियों के सोशल मीडिया पेज बने हुए हैं.

कुछ नेताओं के फैन पेज भी बने हुए हैं, जहां युवा कार्यकर्ता अपने नेताओं के भाषण या पोस्टर बनाकर पोस्ट कर रहे हैं. मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के फेसबुक पेज से उनकी लगभग हर चुनावी रैली को लाइव किया जाता है जिसे बड़ी संख्या में उनके समर्थक शेयर भी करते हैं. हिमाचल कांग्रेस का फेसबुक पेज भी लगातार अपडेट होता रहता है.