अडानी एंटरप्राइजेज़ लिमिटेड ने शेयर बाज़ार को बताया कि भारत की सबसे बड़ी बीमा कंपनी एलआईसी ने उसके 20,000 करोड़ के एफपीओ में एंकर निवेशक के तौर पर 300 करोड़ रुपये निवेश करके 9,15,748 शेयर ख़रीदे हैं. विपक्ष के नेता धोखाधड़ी के आरोपों के बीच एलआईसी और एसबीआई के अडानी समूह में निवेश पर सवाल उठा चुके हैं.
नई दिल्ली/मुंबई: भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) अडानी समूह की प्रमुख फर्म में और निवेश कर रही है. फर्जीवाड़े के आरोपों के बाद समूह की कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट के बावजूद बीमा कंपनी फायदे में है. शेयर बाजार के आंकड़ों से यह जानकारी मिली.
अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईएल) ने शेयर बाजार को बताया कि भारत की सबसे बड़ी बीमा कंपनी एलआईसी ने एईएल के हाल ही में जारी 20,000 करोड़ के अनुवर्ती सार्वजनिक निर्गम (एफपीओ) में एंकर निवेशक के तौर पर 300 करोड़ रुपये निवेश करके 9,15,748 शेयर खरीदे हैं.
एलआईसी ने एंकर निवेशकों के लिए आरक्षित शेयरों में से पांच प्रतिशत शेयर खरीदे.
एईएल में एंकर निवेशक के तौर पर 33 संस्थागत निवेशकों ने कुल 5,985 करोड़ रुपये का निवेश किया. एलआईसी की पहले ही एईएल में 4.23 प्रतिशत हिस्सेदारी है.
शेयर बाजार को दी जानकारी के मुताबिक एलआईसी ने पिछले कुछ सालों में अडानी के शेयरों में 28,400 करोड़ रुपये का निवेश किया है. अमेरिकी निवेश कंपनी हिंडनबर्ग रिपोर्ट की रिपोर्ट आने से पहले इन शेयरों की कीमत 72,000 करोड़ रुपये थी.
अडानी समूह की कंपनियों में एलआईसी के मौजूदा शेयरों की कीमत गिरकर 55,700 करोड़ रुपये रह गई है, लेकिन फिर भी वह वास्तविक निवेश से 27,300 करोड़ रुपये ज्यादा है.
एलआईसी के पास अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन में नौ प्रतिशत, अडानी ट्रांसमिशन में 3.7 प्रतिशत, अडानी ग्रीन एनर्जी में 1.3 प्रतिशत और अडानी टोटल गैस लिमिटेड में छह प्रतिशत शेयर हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, एईएल के फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर में एंकर निवेशकों का हिस्सा बनने वाले अन्य निवेशकों में अबू धाबी इनवेस्टमेंट अथॉरिटी और अल-मेहवार कॉमर्शियल इनवेस्टमेंट एलएलसी शामिल हैं.
स्टॉक एक्सचेंज फाइलिंग में एईएल ने कहा कि उसके निदेशक मंडल की एफपीओ समिति ने एंकर निवेशकों को 3,276 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से 1.82 करोड़ शेयरों के आवंटन को अंतिम रूप दिया है, जिसमें से 1,638 रुपये प्रति शेयर का भुगतान अब तक किया जाएगा और बाकी का भुगतान बाद की कॉल में किया जाएगा.
इससे पहले बीते 28 जनवरी को इससे पहले बीते 28 जनवरी को कांग्रेस, शिवसेना और तृणमूल कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों के सदस्यों ने को एलआईसी और भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के अडानी समूह से संपर्क को लेकर चिंता जताई थी और इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाया था.
विपक्षी नेताओं ने सरकार से सवाल किया था कि एलआईसी और एसबीआई अडानी समूह में निवेश क्यों जारी रखे हुए हैं?
मालूम हो कि अमेरिकी निवेश अनुसंधान फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे, जिसके बाद समूह की कंपनियों के शेयरों में पिछले कुछ दिन में भारी गिरावट आई है. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है.
रिपोर्ट सामने आने के बाद अडानी समूह ने बीते 26 जनवरी को कहा था कि वह अपनी प्रमुख कंपनी के शेयर बिक्री को नुकसान पहुंचाने के प्रयास के तहत ‘बिना सोचे-विचारे’ काम करने के लिए हिंडनबर्ग रिसर्च के खिलाफ ‘दंडात्मक कार्रवाई’ को लेकर कानूनी विकल्पों पर गौर कर रहा है.
इसके जवाब में हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा था कि वह अपनी रिपोर्ट पर पूरी तरह कायम है. कंपनी ने यह भी कहा था कि अगर अडानी समूह गंभीर है, तो उसे अमेरिका में भी मुकदमा दायर करना चाहिए जहां हम काम करते हैं. हमारे पास कानूनी प्रक्रिया के दौरान मांगे जाने वाले दस्तावेजों की एक लंबी सूची है.
बीते रविवार (30 जनवरी) को अडानी समूह ने हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों के जवाब में 413 पृष्ठ का ‘स्पष्टीकरण’ जारी किया है. अडानी समूह ने इन आरोपों के जवाब में कहा था कि यह हिंडनबर्ग द्वारा भारत पर सोच-समझकर किया गया हमला है. समूह ने कहा था कि ये आरोप और कुछ नहीं सिर्फ ‘झूठ’ हैं.
समूह ने कहा था, ‘यह केवल किसी विशिष्ट कंपनी पर एक अवांछित हमला नहीं है, बल्कि भारत, भारतीय संस्थाओं की स्वतंत्रता, अखंडता और गुणवत्ता, तथा भारत की विकास गाथा और महत्वाकांक्षाओं पर एक सुनियोजित हमला है.’
अडानी समूह के इस जवाब पर पलटवार करते हुए हिंडनबर्ग समूह की ओर से सोमवार को कहा गया कि धोखाधड़ी को ‘राष्ट्रवाद’ या ‘कुछ बढ़ा-चढ़ाकर प्रतिक्रिया’ से ढंका नहीं जा सकता. भारत एक जीवंत लोकतंत्र और उभरती महाशक्ति है. अडानी समूह ‘व्यवस्थित लूट’ से भारत के भविष्य को रोक रहा है.
हिंडनबर्ग की ओर से कहा गया, ‘हम असहमत हैं. स्पष्ट होने के लिए हम मानते हैं कि भारत एक जीवंत लोकतंत्र है और एक रोमांचक भविष्य के साथ एक उभरती हुई महाशक्ति है. हम यह भी मानते हैं कि भारत का भविष्य अडानी समूह द्वारा रोका जा रहा है, जिसने देश को व्यवस्थित रूप से लूटते हुए खुद को राष्ट्रवाद के आवरण में लपेट लिया है.’
हिंडनबर्ग रिसर्च ने प्रतिक्रिया में कहा कि धोखाधड़ी, धोखाधड़ी ही होती है चाहे इसे दुनिया के सबसे अमीर आदमी ने अंजाम क्यों न दिया हो.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अरबपति गौतम अडानी द्वारा नियंत्रित समूह की प्रमुख सूचीबद्ध कंपनियों के पास ‘पर्याप्त ऋण’ था, जिसने पूरे समूह को ‘अनिश्चित वित्तीय स्थिति’ में डाल दिया है.
साथ ही, हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में दावा किया गया कि उसके दो साल के शोध के बाद पता चला है कि 17,800 अरब रुपये मूल्य वाले अडानी समूह के नियंत्रण वाली मुखौटा कंपनियां कैरेबियाई और मॉरीशस से लेकर यूएई तक में हैं, जिनका इस्तेमाल भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और कर चोरी को अंजाम देने के लिए किया गया.
महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख ने एलआईसी के अडानी समूह में निवेशों पर सवाल उठाए
कांग्रेस की महाराष्ट्र इकाई के प्रमुख नाना पटोले ने आरोप लगाया कि एलआईसी और अन्य सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) का धन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इशारे पर अडानी समूह में निवेश किया गया.
पटोले ने इसे ‘बड़े स्तर की अनियमितताएं’ करार दिया और विशेष जांच दल (एसआईटी) से जांच कराए जाने की मांग की. उन्होंने महाराष्ट्र सरकार से मुंबई की धारावी पुनर्विकास परियोजना अडानी समूह से वापस लेने की मांग की.
पटोले ने शनिवार को जारी एक बयान में कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उद्योगपति गौतम अडानी के करीबी संबंध जगजाहिर हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय स्टेट बैंक, एलआईसी और अन्य पीएसयू का धन बिना कोई सोच विचार और प्रक्रिया के अडानी समूह में निवेश किया था.’
उन्होंने दावा किया कि अडानी समूह के हक में इस तरह के ‘पक्षपात’ के कारण (समूह के शेयर के दाम शेयर बाजार में गिरने की पृष्ठभूमि में) इस पैसे के डूबने का डर पैदा हो गया है.
कांग्रेस नेता ने कहा, ‘बड़े पैमाने पर अनियमितताएं हुई हैं और इसकी जांच के लिए एक एसआईटी गठित होनी चाहिए.’
पटोले ने आरोप लगाया कि अडानी के साथ नरेंद्र मोदी की निकटता उनके (2014 में) प्रधानमंत्री बनने से पहले से जगजाहिर हैं.
उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने विशेष कृपादृष्टि की और एसबीआई से ऋण दिलाकर समूह की मदद की. एलआईसी ने इसमें लगभग 74,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है. अडानी केवल मोदी के आशीर्वाद के कारण इतनी जल्दी दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों में शुमार हो सके.’
पटोले ने कहा, ‘अच्छा प्रदर्शन कर रहे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को भी अडानी समूह को संचालन के लिए दे दिया गया. बुलबुला फूट गया और अडानी को सहारा समूह के सुब्रत रॉय की तरह जेल जाना पड़ सकता है.’
उन्होंने कहा कि यह एक ‘जगजाहिर रहस्य’ है कि मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के संचालन को अडानी समूह को सौंपने के वास्ते एक कंपनी को मजबूर करने के लिए विभिन्न जांच एजेंसी का इस्तेमाल किया गया था.
पटोले ने कहा, ‘महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी राज्य वितरण उपक्रम का संचालन अडानी समूह को सौंपने की योजना बनाई है, लेकिन इसके यूनियन के कड़े विरोध के कारण यह अमल में नहीं आ सका.’
उन्होंने दावा किया कि दुबई स्थित एक रियल एस्टेट डेवलपमेंट कंपनी ने मुंबई में धारावी झुग्गी पुनर्वास परियोजना के लिए सबसे अधिक बोली लगाई थी, लेकिन इसका अनुबंध अडानी समूह को दिया गया.
इस बीच मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने अडानी समूह पर हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए अनियमितताओं के आरोपों की उच्चस्तरीय जांच कराए जाने की रविवार को मांग की थी. वाम दल के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा था कि जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट द्वारा की जानी चाहिए.
इससे पहले कांग्रेस ने अडानी समूह पर लगाए गए आरोपों की जांच भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (सेबी) को करनी चाहिए क्योंकि भारत की वित्तीय प्रणाली की स्थिरता और सुरक्षा इन संस्थानों की जिम्मेदारी है.