भारतीय कुश्ती महासंघ यौन उत्पीड़न मामले में न्याय मिलने की कितनी उम्मीद है?

भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर पहलवानों के प्रदर्शन के बाद सरकार और भारतीय ओलंपिक संघ ने अपनी-अपनी समितियां गठित की हैं. हालांकि, यह समितियां भी सवालों के घेरे में हैं.

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दिल्ली के जंतर मंतर पर पहलवानों द्वारा कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के खिलाफ किए जा रहे प्रदर्शन के दौरान पहलवान बजरंग पुनिया और साथी पहलवान विनेश फोगाट. (फोटो: पीटीआई)

भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर पहलवानों के प्रदर्शन के बाद सरकार और भारतीय ओलंपिक संघ ने अपनी-अपनी समितियां गठित की हैं. हालांकि, यह समितियां भी सवालों के घेरे में हैं.

दिल्ली के जंतर मंतर पर पहलवानों द्वारा कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के खिलाफ किए जा रहे प्रदर्शन के दौरान पहलवान बजरंग पुनिया और साथी पहलवान विनेश फोगाट. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: मैट और मेडल का दंगल छोड़ देश के प्रतिष्ठित पहलवान- बजरंग पुनिया, विनेश फोगाट, अंशु मलिक, साक्षी मलिक और सरिता मोर 18 जनवरी को जंतर-मंतर पहुंचे और भारतीय कुश्ती संघ (डब्ल्यूएफआई) के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ तानाशाही और यौन उत्पीड़न का आरोप लगाए.

जनता मामले को समझने का प्रयास कर ही रही थी कि प्रदर्शन के तीसरे दिन खेल मंत्रालय ने मामले को संज्ञान में लेते हुए एक समिति गठित कर दी और साथ ही भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) ने भी एक समिति का गठन किया. इन दोनों समितियों की अध्यक्षता ओलिंपियन मुक्केबाज़ और राज्यसभा की पूर्व सांसद मैरी कॉम कर रही हैं.

और इन सब के बीच सोशल मीडिया पर इस मामले को लेकर राजनीतिक क़यास लगने शुरू हो गए. बृजभूषण शरण सिंह ख़ुद इस प्रदर्शन को राजनीतिक बताया. लेकिन विरोध, आरोपों और जांच के इर्द-गिर्द मच रहे शोर से इतर कुछ ज़रूरी सवाल हैं- जैसे मामले को राजनीतिक कहना किस हद तक ठीक है? इस मामले पर अखाड़ों की क्या प्रतिक्रिया है? इस पूरे मामले की जांच में खेल को लेकर क़ानून की कितनी भूमिका है? जांच किस तरह से किस दिशा में जाएगी?

क़ानून क्या कहता है?

जहां कुश्ती के अखाड़े इस मुद्दे पर विभाजित लगे वहीं इस मामले में खेल से जुड़े क़ानून की भूमिका अहम हो जाती है. भारत में खेल से जुड़ा कोई विस्तृत क़ानून तो नहीं है लेकिन राष्ट्रीय खेल संहिता 2011 के अनुसार कार्रवाई होती है.

भारतीय खेल के सुधारकार्य से जुड़े अनुभवी वकील राहुल मेहरा कहते हैं, ‘प्राथमिक तौर पर खिलाड़ी पुलिस में शिकायत कर सकते थे या फिर महिला आयोग में जा सकते थे. लेकिन चूंकि यह आरोप एक नेता जिसका पीछे क्रिमिनल रिकॉर्ड भी है तो प्रशासनिक कार्रवाई पर भरोसा करना मुश्किल हो जाता है.’

वो आगे कहते हैं, ‘अगर आरोप किसी कोच या खिलाड़ी पर होते तो जो डब्ल्यूएफआई की आंतरिक शिकायत समिति है उसकी जांच काफी होती. लेकिन जब आरोप उस नेशनल फेडरेशन के अध्यक्ष पर ही लगे हैं तो फेडरेशन की आंतरिक शिकायत समिति की जांच की पारदर्शिता पर सवाल उठते. और सबसे ज़रूरी बात तो यह है कि डब्ल्यूएफआई की यौन शोषण को लेकर जो आंतरिक शिकायत समिति बनी है वह विशाखा गाइडलाइन की अवहेलना करती है. ऐसे में भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) और आईओए का हस्तक्षेप ज़रूरी है.’

कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न के मामलों के लिए निर्मित विशाखा गाइडलाइन (जो यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 का आधार भी बनी) के मुताबिक़:

● इस कमेटी की अध्यक्ष महिला ही होगी,
● कमेटी की आधी से ज्यादा सदस्य भी महिलाएं होंगी.
● इसके अलावा यौन शोषण के मुद्दे पर काम कर रहे एनजीओ की एक महिला प्रतिनिधि को भी कमेटी में शामिल करना जरूरी है.

यही नहीं राष्ट्रीय खेल संहिता 2011 भी इसको लागू करने के लिए बाध्य है.

लेकिन डब्ल्यूएफआई की यौन उत्पीड़न समिति को देखें तो उसकी अध्यक्षता वीएन प्रसूद करते हैं जो पुरुष है और ख़ुद डब्ल्यूएफआई के जनरल सेक्रेटेरी भी हैं. इस समिति में सिवाय साक्षी मलिक के अलावा कोई और महिला सदस्य नहीं है.

(साभार: डब्ल्यूएफआई वेबसाइट)

राहुल मेहरा साई और आईओए द्वारा निर्मित दोनों जांच समितियों पर भी सवाल उठाते हैं, ‘हालांकि इन समितियों ने विशाखा गाइडलाइन का पालन किया, फिर भी जब मुद्दा इतना संगीन है कि आरोपी सत्तारूढ़ पार्टी का है तो समिति की अध्यक्षता किसी सेवानिवृत्त जज या ऐसे रिटायर्ड खिलाड़ी से करवानी चाहिए जो निष्पक्ष हो और उसका कोई राजनीतिक इतिहास न हो. यहां मैरी कॉम राज्यसभा की पूर्व सांसद रही हैं. आईओए फिर थोड़ी स्वतंत्रता रखती है तो उसकी भूमिका अहम है.’

आगे वह यह भी जोड़ते हैं, ‘मुझे समझ नहीं आता कि अब तक बृजभूषण शरण सिंह को सस्पेंड क्यों नहीं किया गया. उनको ‘स्टेप असाइड’ किया गया है, भला इसका मतलब क्या होता है? क्या यह लोग उसको सम्मानपूर्वक हटाना चाहते हैं? बृजभूषण का कार्यकाल वैसे भी इसी साल मार्च में ख़त्म होने जा रहा है.’

राष्ट्रीय खेल संहिता 2011 के अनुसार, नेशनल फेडरेशन के अध्यक्ष पद के लिए व्यक्ति अपने कार्यकाल के 12 साल पूरे होने पर (लगातार चुने जाने या बीच में अंतराल के बाद चुने जाने, दोनों ही स्थिति में) और 70 साल की उम्र होने के बाद चुनाव नहीं लड़ सकता. डब्ल्यूएफआई में एक बार का कार्यकाल 4 साल का होता है और बृजभूषण शरण सिंह का इस नियम के अनुसार यह तीसरा और आख़िरी कार्यकाल है.

अब तक खेल मंत्रालय ने डब्ल्यूएफआई के असिस्टेंट सेक्रेटेरी रहे विनोद तोमर को सस्पेंड किया है, जिन्हें साई ने ही नियुक्त किया था.

आईओए द्वारा गठित समिति में यह निम्नलिखित सदस्य हैं:

साई की ओवर-साइट कमिटी में यह सदस्य हैं:

विनेश फोगाट ने ट्वीट कर साई द्वारा गठित समिति पर आपत्ति जताई थी:

राहुल मेहरा की राय में ‘यह पूरा मामला सिस्टम के बारे में एक चीज़ दर्शाता है कि खिलाड़ियों को सिस्टम पर भरोसा नहीं लगता है. हमें फेडरेशन में चल रही सामंती मानसिकता से निकलना होगा, तभी खेल की दुनिया में अहम सुधार होंगे और भारत प्रतिभा को और खोजकर निखारने में क़ामयाब होगा’

साई और आईओए की समितियां गठित होने के 4 हफ्तों में जांचकर मामले पर फैसला करेंगी.

अखाड़ों में किस तरह की प्रतिक्रिया है

कुश्ती की असल जान अखाड़ों में बसती है. विवाद को लेकर चल रही अटकलें और जांच से अखाड़ों की दिनचर्या पर तो कोई असर नहीं पड़ा है मगर सुबह 4 बजे उठकर व्यायाम करने के बाद सभी पहलवानों के बीच इसी विवाद, इससे जुड़ी अटकलें और जांच को लेकर चर्चा होना शुरू हो जाती है.

हनुमान अखाड़े के विकास पहलवान यह बताते हैं, ‘इन पहलवानों ने खिलाड़ियों के हित में यह प्रदर्शन किया. मुझे इसमें कोई राजनीति नहीं दिखती. कुश्ती से जुड़ा हुआ हर पहलवान, कोच यह जनता है कि बृजभूषण सिंह फेडरेशन को तानाशाह की तरह चलाता है. खिलाड़ियों को छोड़ों, वो तो कोच और रेफरी को डांट देता है.’

हालांकि विकास जोड़ते हैं कि उन्होंने कभी बृजभूषण शरण के खिलाफ यौन उत्पीड़न से जुड़ा कोई मामला नहीं सुना.

दूसरे पहलवान कुलजीत ने एक घटना का ज़िक्र करते हुए बताया कि साल 2022 में बृजभूषण शरण सिंह ने विनेश फोगाट को बुल्गारिया में लगे एक ट्रेनिंग कैंप में जाने से रोक दिया था. जबकि उस ट्रेनिंग कैंप में जाने के लिए उनको भारतीय खेल प्राधिकरण ने टॉप्स स्कीम के तहत अनुमति दी थी. वहीं बजरंग पुनिया को न्यूयॉर्क में आयोजित हुई एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में जाने की अनुमति दे दी थी.

जहां विकास और कुलजीत ने इस मुद्दे पर अपने विचार रखें, वहीं और खिलाड़ी टिप्पणी करने से बच रहे थे.

चांगदिराम अखाड़े में एक कुश्ती के कोच ने अपनी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर बताया, ‘बृजभूषण शरण सिंह एक आपराधिक छवि का नेता है, इस बात से तो सब वाक़िफ हैं. बल्कि मैं तो कहूंगा वह नेता कम और गुंडे ज्यादा हैं. मैंने यौन उत्पीड़न का एक मामला तो उनके खिलाफ सुना है लेकिन जब तक पूरी तरह से जांच नहीं हो जाती, हम ऐसे ही किसी पर आरोप नहीं लगा सकते. बृजभूषण पर क़रीब 48 संगीन आपराधिक मामले हैं और अगर आप कभी गोंडा जाओगे, तो देखना लोग उससे कितना डरते हैं. इसके खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए पता नहीं पहलवानों ने कैसे हिम्मत दिखाई.’

हालांकि जसराम अखाड़े में कोच और कुश्ती के खिलाड़ियों के विचार अलग नज़र आए. वहां सब बृजभूषण शरण सिंह के समर्थन में बोलते नज़र आए और बल्कि उनको कुश्ती का सुधारक बताया.

‘यह सब खेल की राजनीति है. जब बृजभूषण पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा रहे हैं तो यह लोग बृजभूषण का केवल इस्तीफा क्यों मांग रहे हैं, जेल भेजने की मांग क्यों नहीं कर रहे ? बृजभूषण का कार्यकाल 2 महीनों में ख़त्म होने वाला है और यह लोग अपना आदमी बृजभूषण की जगह लाना चाहते हैं. बृजभूषण अपने बेटे को अगला अध्यक्ष बनवाना चाहता है.’

फिलहाल बृजभूषण शरण सिंह के बेटे करणभूषण सिंह डब्ल्यूएफआई के उपाध्यक्ष है. डब्ल्यूएफआई की कार्यकारी समिति में एक अध्यक्ष, 6 उपाध्यक्ष, एक वरिष्ठ उपाध्यक्ष, महासचिव, कोषाध्यक्ष, 4 जॉइंट सेक्रेटरी और 9 कार्यकारी सदस्य हैं.

वह आगे बताते हैं, ‘उनके कार्यकाल में ही तो जूनियर चैम्पियनशिप के आयोजन में सुधार हुआ- U-17, कैडेट चैंपियनशिप, U-23, बल्कि उन्होंने तो उन खिलाड़ियों के लिए ओपन नेशनल भी आयोजित किए जो नेशनल में क्वालिफाई नहीं कर पाते.’

यहां यह बताना ज़रूरी है कि साल 2011 में साई ने खेल संहिता 2011 के अनुसार सभी नेशनल फेडरेशन के लिए जूनियर टूर्नामेंट को करवाना अनिवार्य कर दिया था. बृजभूषण शरण सिंह का भारतीय  कुश्ती  संघ में कार्यकाल भी उसी साल शुरू हुआ था. साल 2011 से लेकर अब तक निर्विरोध अध्यक्ष का चुनाव जीतते आ रहे हैं. साल 2019 से लेकर 2023, उनकी अध्यक्षता का तीसरा कार्यकाल है.

भाजपा सांसद बृज भूषण शरण सिंह. (फोटो साभार: फेसबुक/@brijbhushansharan)

जसराम अखाड़े के लोग आगे साझा करते हैं कि क़रीब 10 साल से उनका अखाड़ा आधुनिक कुश्ती के अभ्यास के लिए साई से मैट मांग रहा था लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी. बाद में बृजभूषण शरण सिंह ने उनके अखाड़े के लिए मैट की मांग को पूरा करवाया था और 4 लाख का प्रोफेशनल मैट दिलवाया.

जब इस मामले पर साई के एक अधिकारी से पूछा कि साई ने इस मांग की नज़रअंदाज़ी क्यों की तो उस पर प्रतिक्रिया मिली, ‘किसी भी खेल से जुड़ी मूलभूत सुविधाओं के लिए खेलो इंडिया और स्पोर्ट्स डेवेलपमेंट फंड को सीधे ख़त लिखना होता है या तो फेडरेशन के द्वारा भेजना होता है. इस नियम के प्रति जागरूकता की कमी है.’

वहीं पूर्वी दिल्ली में स्थित महिलाओं के अखाड़े- प्रेमनाथ अखाड़े में पहुंचे तो वहां महिला कुश्ती खिलाड़ियों से जांच होने तक बात करने से इनकार कर दिया था.

अखाड़ों के बाद जब छत्रसाल स्टेडियम पहुंचे तो वहां भवानी पहलवान ने कहा, ‘फरवरी में क्रोएशा में एक बेहद महत्वपूर्ण अंतरष्ट्रीय प्रतियोगिता होने वाली है, उसके बाद एशियन चैंपियनशिप दिल्ली में आयोजित होगी. भला कुश्ती के खिलाड़ी अपनी ट्रेनिंग को किसी राजनीति के लिए रिस्क पर क्यों रखेंगे?’

27 जनवरी को साई ने क्रोएशा में 1 फरवरी से होनी जा रही ज़बरेब ओपन के लिए खिलाड़ियों के नाम घोषित किए जिसमें बजरंग पुनिया, विनेश फोगाट, अंशु मलिक, सरिता मोर, संगीता का नाम भी रहा. हालांकि इन सभी खिलाड़ियों ने इन हालात के बीच ज़बरेब ओपन में जाने से इनकार कर दिया है. उन्होंने कहा कि वे फिट महसूस नहीं कर रहे.

बजरंग पुनिया के क़रीबी, बिंदा पहलवान, जो प्रदर्शन के तीनों दिन मौजूद थे, का कहना है, ‘बृजभूषण के खिलाफ सबूत तो है, अब बस समिति ईमानदारी से अपनी जांच करें. इस आंदोलन को अगर राजनीतिक बनाना होता तो हमारे पास वृंदा करात, स्वाति मालिवाल और विजेंदर सिंह आए थे, लेकिन हमने मंच पर उनको जगह नहीं दी.’

जंतर-मंतर पर हुआ प्रदर्शन. (फोटो: पीटीआई)

वहीं बृजभूषण शरण सिंह से जब संपर्क किया तो उनके ऑफिस ने कहा, ‘नेता जी दिल्ली आएंगे तो मीडिया वालों से बात करेंगे. फिलहाल इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया अब नहीं देना चाहते.’

उल्लेखनीय है कि साल 2014 में हिसार में लगे एक कैंप में पांच नाबालिग लड़कियों ने अपने कुश्ती के कोच सतबीर पंघल पर ‘विश्व किस दिवस’ की आड़ में ज़बरदस्ती चूमने और छेड़खानी का आरोप लगाया था. पुलिस में शिकायत भी की लेकिन गांव की पंचायत के हस्तक्षेप के बाद शिकायत वापस ले ली थी.

फिर तीन साल बाद साई की एक समिति ने जांच कर पाया कि कोच पर लगे आरोप सच थे लेकिन तब तक कोच रिटायर हो चुका था. तो सज़ा के तौर पर उसकी पेंशन से एक साल तक 10% की कटौती की गई थी.

1990 में एक टेनिस खिलाड़ी रुचिक गिरहोत्रा ने टेनिस फेडरेशन के अध्यक्ष रहे एसपीएस राठौड़ (हरियाणा के आईजी) के खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत दिखाई थी. लेकिन उसकी आवाज़ को राजनीतिक षड्यंत्र के शोर और जाति के विवादों ने दबा दिया था. बाद में वे और उनका पूरा परिवार पुलिस द्वारा परेशान किया गया जिसके बाद पर उसने आत्महत्या कर ली थी.

तो वहीं साल 2010 में महिला हॉकी के राष्ट्रीय कोच रहे एम के कौशिक पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था लेकिन जांच के बाद वह आरोप बेबुनियाद निकले थे.

खेल की दुनिया में यौन उत्पीड़न के मामले आते रहे हैं लेकिन कभी उसमें आरोप सही साबित होते तो कभी गलत. अब इस मामले में जो नतीजा निकलेगा वह या तो खेल की दुनिया में क्रांति लाने का सामर्थ्य रखेगा या फिर जांच पर सवाल उठाएगा या फिर मामला राजनीतिक ही निकल जाएगा.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)