मतदाता सूची में नाम न होने से झुग्गी निवासियों को पुनर्वास के अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता: कोर्ट

दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड के अपीलीय बोर्ड ने झुग्गी निवासी एक महिला को पुनर्वास योजना का लाभ देने से इसलिए इनकार कर दिया था कि उनका नाम मतदाता सूची में नहीं था. दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पक्षकारों को पुनर्वास योजना का पात्र माने जाने के लिए राशन कार्ड, स्कूल रिकॉर्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, आधार कार्ड आदि सहित अन्य दस्तावेज़ों को रिकॉर्ड पर रखने की अनुमति है.

(फाइल फोटो: पीटीआई)

दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड के अपीलीय बोर्ड ने झुग्गी निवासी एक महिला को पुनर्वास योजना का लाभ देने से इसलिए इनकार कर दिया था कि उनका नाम मतदाता सूची में नहीं था. दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पक्षकारों को पुनर्वास योजना का पात्र माने जाने के लिए राशन कार्ड, स्कूल रिकॉर्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, आधार कार्ड आदि सहित अन्य दस्तावेज़ों को रिकॉर्ड पर रखने की अनुमति है.

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नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में माना है कि झुग्गी निवासियों को दिल्ली सरकार की पुनर्वास योजना से इस आधार पर अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है कि उनके नाम मतदाता सूची में नहीं हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, जस्टिस प्रतिभा सिंह की एकल पीठ ने 30 जनवरी के अपने फैसले में कहा कि दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) के अपीलीय बोर्ड, जो एक झुग्गी निवासी की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, ने उसे केवल इस आधार पर अयोग्य घोषित कर दिया कि उनका नाम 2009 और 2010 की मतदाता सूची में नहीं है.

जस्टिस सिंह ने हाईकोर्ट की एक खंडपीठ के 2017 के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें अदालत ने कहा था कि पक्षकारों को पुनर्वास योजना का पात्र माने जाने के लिए राशन कार्ड, स्कूल रिकॉर्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, आधार कार्ड आदि सहित अन्य दस्तावेजों को रिकॉर्ड पर रखने की अनुमति है.

जस्टिस सिंह ने इसके बाद कहा, ‘सिर्फ यह तथ्य कि पक्षकार मतदाता सूची में नाम का उल्लेख नहीं कर सकते हैं, झुग्गी झोपड़ी निवासियों को पुनर्वास के लिए अयोग्य ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं होगा.’

हाईकोर्ट ने कहा कि 2017 के हाईकोर्ट के फैसले के आलोक में दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड के अपीलीय बोर्ड को इस निष्कर्ष कि महिला पुनर्वास की हकदार है या नहीं, पर पहुंचने से पहले अन्य सभी दस्तावेजों पर भी विचार करना होगा.

अदालत ने कहा, ‘महिला के मामलों को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि मतदाता पहचान पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया था.’

हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि खंडपीठ का फैसला स्पष्ट है कि अन्य दस्तावेज, जो उक्त झुग्गी में निवास होना स्थापित करते हों, उन पर समग्रता से विचार करना होगा.

पीठ ने कहा कि इन नीतियों का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन को सुनिश्चित करना है. दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड अधिनियम के तहत अपीलीय प्राधिकरण याचिकाकर्ता के मामले में उसके द्वारा प्रस्तुत अन्य सभी दस्तावेजों पर विचार करते हुए नए सिरे से मामले को देखे और 4 महीने के भीतर इस पर निर्णय ले.

हाईकोर्ट ने आगे कहा कि दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड के अपीलीय प्राधिकारी इस बात पर भी गौर कर सकते हैं और पूछताछ कर सकते हैं कि क्या महिला के पति को कोई वैकल्पिक आवास आवंटित किया गया है या नहीं.

हाईकोर्ट ने महिला को 20 फरवरी 2023 को सुबह 11:30 बजे सुनवाई के लिए अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया और इसके अलावा दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड को निर्देश दिया कि वह महिला को उचित सुनवाई का मौका देकर तर्कसंगत आदेश पारित करे.

हाईकोर्ट झुग्गी निवासी बेनी नामक एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जो 2001 से 2010 के बीत अपने पति और बच्चों के साथ गोल मार्केट के जी-पॉइंट स्थित काली बाड़ी मार्ग में एक झुग्गी में रहती थी. उनका मामला यह था कि 2009 में उनके पति ने उन्हें छोड़ दिया और पूरे झुग्गी-झोपड़ी (जेजे) क्लस्टर को 2010 में ध्वस्त कर दिया गया था.

उनका दावा था कि वह दिल्ली सरकार की नीति के अनुसार पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास की हकदार हैं और उन्होंने अन्य झुग्गी निवासियों के साथ 2011 में हाईकोर्ट का रुख किया. अपने अक्टूबर 2011 के आदेश में हाईकोर्ट ने कहा कि ‘दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड की नीति के अनुसार सभी योग्य निवासियों का पुनर्वास किया जाए.’

इसके बाद 2013 में दिल्ली सरकार ने जेएनएनयूआरएम-2013 (जेजे योजना) के तहत झुग्गी-झोपड़ी निवासियों के पुनर्वास के दिशानिर्देश जारी किए.

महिला ने भी योजना के तहत पुनर्वास के लिए आवेदन दिया. पात्रता निर्धारण समिति ने जनवरी 2016 में एक शिविर आयोजित किया, जिसमें 85 झुग्गी निवासियों में से केवल 52 को पुनर्वास का पात्र पाया गया और बेनी को अपात्र घोषित कर दिया गया.

उन्होंने इसे दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड के अपीलीय बोर्ड के समक्ष चुनौती दी, जिसने इस आधार पर उनकी अपील को खारिज कर दिया कि उन्होंने 2009 व 2010 का मतदाता पहचान पत्र प्रस्तुत नहीं किया.

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