कर्नाटक: स्कूली बच्चों को यूनिफॉर्म न दे पाने को लेकर कोर्ट ने सरकार को फटकारा, कहा- शर्म की बात

कर्नाटक हाईकोर्ट शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत राज्य सरकार द्वारा सरकारी प्राथमिक विद्यालय के विद्यार्थियों को यूनिफॉर्म और जूते-मोज़े न देने की शिकायत पर सुनवाई कर रही थी. अदालत ने कहा कि इस तरह की चूक होना सरकार के लिए शर्म की बात है.

कर्नाटक हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

कर्नाटक हाईकोर्ट शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत राज्य सरकार द्वारा सरकारी प्राथमिक विद्यालय के विद्यार्थियों को यूनिफॉर्म और जूते-मोज़े न देने की शिकायत पर सुनवाई कर रही थी. अदालत ने कहा कि इस तरह की चूक होना सरकार के लिए शर्म की बात है.

कर्नाटक हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को सरकारी प्राथमिक विद्यालय के छात्रों को निशुल्क दो सेट स्कूल यूनिफॉर्म, जूते और मोज़े देने के अदालत के 2019 के निर्देशों का पालन करने में असफल रहने को लेकर कड़ी फटकार लगाई है.

बार एंड बेंच के मुताबिक, जस्टिस बी. वीरप्पा और केएस हेमलेखा की पीठ ने कहा कि इस तरह की चूक होना सरकार के लिए शर्म की बात है.

पीठ उच्च न्यायालय के 2019 के आदेश, जिसमें कहा गया था कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत दो सेट यूनिफॉर्म दिए जाने चाहिए, के पालन में सरकार के विफल रहने के खिलाफ दायर एक अवमानना ​​याचिका सुन रही थी.

सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, ‘बच्चों के साथ ऐसा करना अदालत के साथ खेलने के समान है… गैर-जरूरी चीजों पर करोड़ों-करोड़ खर्च किए जा रहे हैं. शिक्षा आपका बुनियादी फर्ज है. बच्चों का हाल… शिक्षा… हम ये सब बर्दाश्त नहीं करेंगे… क्या यह सरकार के लिए शर्म की बात नहीं है?… यह दुर्भाग्यपूर्ण है.

अदालत ने निजी स्कूलों में जा सकने वाले छात्रों की तुलना में सरकारी स्कूल के छात्रों के साथ होने वाले सौतेले बर्ताव को लेकर भी नाराज़गी जताई.

जस्टिस वीरप्पा नेकहा, ‘अगर ऊपर बैठे लोगों में मानवता नहीं है, तो यह समस्या है. उनमें इंसानियत होनी चाहिए. उनके बच्चे कभी सरकारी स्कूल में नहीं जाते हैं… हम बच्चों के प्रति इस तरह की सौतेला रवैया बर्दाश्त नहीं करेंगे.’

अदालत ने इस बात पर भी गौर किया कि जून 2021 में पारित एक आदेश में सरकार ने केवल सरकारी स्कूल के बच्चों को महज एक सेट यूनिफॉर्म देने का प्रावधान किया था.

सरकार की तरफ से जवाबी हलफनामे में कहा गया कि यूनिफॉर्म, जूते-मोज़े खरीदने के लिए संबंधित स्कूलों के हेडमास्टरों को धनराशि भेजी जा चुकी है. कोर्ट ने इस बात को अपने आदेश में दर्ज  किया, हालांकि यह भी जोड़ा कि इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि ऐसे फंड इसके असली लाभार्थियों- यानी विद्यार्थियों के पास पहुंच जाएंगे.

सुनवाई के दौरान पीठ ने पूछा कि क्या इस मामले की निगरानी के लिए किसी प्राधिकरण को नामित किया गया है. अपने आदेश में अदालत ने कहा कि उक्त हलफनामे में कोई स्पष्टता नहीं है कि राज्य ने उच्च न्यायालय के पहले के निर्देशों का सख्ती से पालन किया है या नहीं.

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अब समय आ गया है कि सरकार अपनी आंखें खोले और 6 से 14 वर्ष की आयु के सरकारी स्कूल के छात्रों को स्कूल यूनिफॉर्म देकर अपने मौलिक कर्तव्य का पालन करें. कोर्ट ने कहा कि यह कर्तव्य आरटीई अधिनियम की धारा 3 और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21ए और 45 (6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा से संबंधित) में तय किए गए हैं.