केंद्र युवाओं को अलग-थलग कर लद्दाख में उग्रवाद के बीज बो रहा है: सोनम वांगचुक

लद्दाख के शिक्षा सुधारक और जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने क्षेत्र में छठी अनुसूची की मांग को दोहराते हुए कहा कि डर यह नहीं है कि लोग भारत के ख़िलाफ़ हो जाएंगे, डर यह है कि भारत के लिए प्यार कम हो जाएगा और ऐसा होना उस देश के लिए ख़तरनाक है जो चीन का सामना कर रहा है. 

बीते दिनों ख़त्म हुए अपने 'क्लाइमेट फास्ट' के दौरान सोनम वांगचुक. (फोटो साभार: ट्विटर/@Wangchuk66)

लद्दाख के शिक्षा सुधारक और जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने क्षेत्र में छठी अनुसूची की मांग को दोहराते हुए कहा कि डर यह नहीं है कि लोग भारत के ख़िलाफ़ हो जाएंगे, डर यह है कि भारत के लिए प्यार कम हो जाएगा और ऐसा होना उस देश के लिए ख़तरनाक है जो चीन का सामना कर रहा है.

बीते दिनों ख़त्म हुए अपने ‘क्लाइमेट फास्ट’ के दौरान सोनम वांगचुक. (फोटो साभार: ट्विटर/@Wangchuk66)

नई दिल्ली: लद्दाख में संविधान की छठी अनुसूची के तहत भूमि, संस्कृति और नौकरियों की सुरक्षा की मांग बढ़ रही है और इसके लिए पिछले दिनों शिक्षा सुधारक और इंजीनियर सोनम वांगचुक ने भी आवाज़ भी उठाई थी.

वांगचुक ने गुरुवार को द हिंदू से बात करते हुए कहा कि केंद्र की नीति युवाओं को अलग-थलग करते हुए उग्रवाद के बीज बो रही है.

उन्होंने कहा, ‘डर यह नहीं है कि लोग भारत के खिलाफ हो जाएंगे, डर यह है कि भारत के लिए प्यार कम हो जाएगा और ऐसा होना उस देश के लिए खतरनाक है जो चीन का सामना कर रहा है. मुंबई और दिल्ली के लोगों के विपरीत यहां के लोगों ने युद्ध के दौरान सेना के लिए कुलियों का काम करके और भोजन पहुंचाकर उनकी मदद की है.’

उन्होंने कहा कि बेरोजगारी और नागरिकों के खिलाफ ‘छठी अनुसूची’ की बात सावजनिक तौर पर बोल भर देने को लेकर हुई अंधाधुंध पुलिस कार्रवाई ने इस भावना को बढ़ाया है और हर तरफ से एफआईआर दर्ज हो रही हैं.

उन्होंने कहा, ‘जब मैं खारदुंग ला में उपवास करना चाह रहा था, तो मुझे घर में नजरबंद कर दिया गया. चार दिन पहले लद्दाख के लेफ्टिनेंट गवर्नर (एलजी)लेह के एक स्टेडियम में आइस हॉकी प्रतियोगिता के समापन पर पुरस्कार वितरण समारोह के लिए आए थे. उन्हें देखते ही बच्चे छठी अनुसूची के नारे लगाने लगे. उन्हें थाने ले जाया गया. क्या अब सार्वजनिक रूप से छठी अनुसूची कहना अपराध हो गया है?’

सोनम ने जोड़ा की 12000 नौकरियों का वादा किया गया था, लेकिन सिर्फ 800 पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई. उन्होंने यह दावा भी किया कि छठी अनुसूची के पक्ष में मैसेज पोस्ट करने को लेकर एक पत्रकार के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है.

पेशे से इंजीनियर वांगचुक एक जलवायु कार्यकर्ता भी हैं और उन्होंने लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और संविधान की छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की मांग को लेकर बीते सप्ताह अपना पांच दिवसीय उपवास समाप्त किया है. उनके आंदोलन को खत्म करने के लिए लेह में लगभग 2,000 लोगों ने रैली में भाग लिया था.

ज्ञात हो कि 5 अगस्त, 2019 को मोदी सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू और कश्मीर के पूर्व राज्य की विशेष स्थिति को रद्द  करते हुए राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों – जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में विभाजित किया गया था, जहां लद्दाख को विधानसभा नहीं दी गई थी.

पूर्ण राज्य की मांग

भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद धारा 370 को समाप्त करने और और तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित करने के बाद लद्दाख क्षेत्र के दो जिलों के लोग भारत के अन्य आदिवासी क्षेत्रों को संविधान की छठी अनुसूची के तहत प्रदान किए गए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे हैं, जिससे उनकी जनसांख्यिकी, नौकरी और भूमि की रक्षा हो.

5 अगस्त 2019 से पहले ये सुरक्षा उपाय लद्दाख के लोगों के लिए उपलब्ध थे, जो तब संविधान के अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए के तहत जम्मू-कश्मीर का हिस्सा था. लद्दाखी अब चीन और पाकिस्तान की सीमा से लगे क्षेत्र के लिए भी राज्य का दर्जा मांग रहे हैं.

लेह अपेक्स बॉडी और लेह तथा करगिल जिलों में राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक समूहों का एक संयुक्त संगठन करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस इन मांगों को लेकर आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं.

बीते 15 जनवरी को दोनों संगठनों ने लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और क्षेत्र को संविधान की छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा प्रदान करने सहित अपनी चार मांगों को लेकर एक अभियान के तहत जम्मू शहर में विरोध प्रदर्शन भी किया था.

इस महीने की शुरुआत में दोनों समूहों ने केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय की अध्यक्षता में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा गठित एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति की किसी भी बैठक में भाग न लेने का फैसला किया था और तर्क दिया था कि इसके एजेंडा में उनकी राज्य के दर्जे व छठी अनुसूची की मांगें शामिल नहीं हैं.

ख़बरों के मुताबिक, भाजपा को छोड़कर लेह और करगिल दोनों जिलों में लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दल, सामाजिक और धार्मिक समूह और छात्र संगठन मांगों के समर्थन में आ गए हैं.

इसी मांग को दोहराते हुए वांगचुक ने कहा कि अनुच्छेद 370 बेहतर था, जिसने यह सुनिश्चित किया था कि उद्योग संसाधनों का दोहन करने में सक्षम नहीं होंगे.

उन्होंने कहा, ‘पहले विधानसभा (जम्मू और कश्मीर) में हमारे चार विधायक थे, अब हमारे पास जीरो प्रतिनिधित्व है. एलजी, जो एक बाहरी व्यक्ति  हैं, को हम पर शासन करने के लिए भेजा जाता है. एक आदमी सब कुछ तय करता है. लद्दाख को आवंटित 6,000 करोड़ रुपये का 90% एक गैर-निर्वाचित व्यक्ति के फैसले पर है. वह दबाव या आर्थिक लाभ के चलते कोई भी फैसला ले सकते हैं. जब तक वह मुद्दों को समझेंगे, तब तक उनके जाने का समय हो जाएगा. हम पूर्ण राज्य की मांग कर रहे हैं ताकि हमारी आवाज सुनी जा सके.’

उन्होंने जोड़ा कि छठी अनुसूची 2019 के आम चुनावों के दौरान और 2020 में हिल काउंसिल चुनावों के दौरान भी भारतीय जनता पार्टी के घोषणापत्र का हिस्सा थी और जब जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने का आश्वासन दिया जा सकता है, तो लद्दाख के लिए क्यों नहीं.

बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची आदिवासी आबादी की रक्षा करती है, साथ ही स्वायत्त विकास परिषदों, जो भूमि, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि पर कानून बना सकती हैं, के माध्यम से समुदायों को स्वायत्तता प्रदान करती है. अभी तक असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में 10 स्वायत्त परिषदें मौजूद हैं.

सोनम ने कहा कि वह उद्योगों को सोलर पैनल लगाने के लिए सरकार द्वारा जमीन आवंटित करने के खिलाफ नहीं हैं. वांगचुक ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि सौर ऊर्जा भारत के उपयोग में आए लेकिन जमीन हमारी होनी चाहिए, इसका उपयोग चरवाहों द्वारा किया जाना चाहिए, अगर वे हमारी जमीन लेते हैं और चरवाहों को निकाल देते हैं, तो इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता.’

संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची आदिवासी आबादी की रक्षा करती है और आदिवासी क्षेत्रों में स्वायत्त प्रशासनिक जिला परिषदों के गठन का प्रावधान करती है. ये परिषदें भूमि, जंगल, जल, कृषि, स्वास्थ्य, स्वच्छता, विरासत, विवाह एवं तलाक, खनन और अन्य को नियंत्रित करने वाले नियम और कानून बना सकती हैं. अभी तक देश में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में 10 स्वायत्त परिषदें मौजूद हैं.

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