ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के छोटे भाई लॉर्ड जो जॉनसन जून 2022 में लंदन स्थित ‘एलारा कैपिटल’ नामक इनवेस्टमेंट बैंक के निदेशक पद पर नियुक्त हुए थे. हिंडनबर्ग रिसर्च ने आरोप लगाया है कि अडानी समूह के सूचीबद्ध व्यवसायों में एक प्रमुख निवेशक एलारा ने उनके शेयरों के अंतिम स्वामित्व को छिपाने के लिए मॉरीशस स्थित फंड का इस्तेमाल किया था.
लंदन: ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के छोटे भाई लॉर्ड जो जॉनसन ने अडानी एंटरप्राइजेज से संबंधित ब्रिटेन की निवेश कंपनी के गैर-कार्यकारी निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया है.
समाचार पत्र ‘द फाइनेंशियल टाइम्स’ ने कंपनीज हाउस के रिकॉर्ड के हवाले से बताया है कि 51 वर्षीय लॉर्ड जो जॉनसन पिछले साल जून में लंदन स्थित एलारा कैपिटल नामक इनवेस्टमेंट बैंक के निदेशक पद पर नियुक्त हुए थे और बुधवार (1 फरवरी) को उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
इसी दिन अडानी एंटरप्राइजेज ने अपने 20 हजार करोड़ रुपये के फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) को वापस लेने और निवेशकों का पैसा लौटाने की घोषणा की थी.
एलारा खुद को पूंजी बाजार की कंपनी बताती है, जो भारतीय कंपनियों के लिए धन जुटाने का करने का काम करती है. एफपीओ की बुकरनर में यह कंपनी भी शामिल थी.
समाचार पत्र के अनुसार, अमेरिकी निवेश अनुसंधान फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह की कंपनियों पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए जाने के बाद एलारा का परिसंपत्ति प्रबंधन कारोबार चर्चा में आया था.
रिपोर्ट के अनुसार, हिंडनबर्ग रिसर्च ने आरोप लगाया है कि अडानी के सूचीबद्ध व्यवसायों में एक प्रमुख निवेशक लंदन स्थित एलारा ने अडानी के शेयरों के अंतिम स्वामित्व को छिपाने के लिए मॉरीशस स्थित फंड का इस्तेमाल किया था.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, इस संबंध में एलारा कैपिटल के मुख्य कार्यकारी और संस्थापक राज भट्ट ने टिप्पणी के लिए फाइनेंशियल टाइम्स अखबार के अनुरोध को इसके अनुपालन अधिकारी को भेजा है, जिन्होंने अभी तक जवाब नहीं दिया है.
जॉनसन ने जोर देकर कहा कि उन्हें कपनी की अच्छी स्थिति के बारे में आश्वासन दिया गया था और उन्होंने निदेशक पद से इस्तीफा ‘इस क्षेत्र में कम जानकारी होने के कारण दिया.’
जो जॉनसन ने कहा, ‘मैं ब्रिटेन-भारत व्यापार और निवेश संबंधों में योगदान करने की आशा में पिछले जून में एक स्वतंत्र गैर-कार्यकारी निदेशक के रूप में लंदन में स्थित एक भारत-केंद्रित निवेश फर्म एलारा कैपिटल के बोर्ड में शामिल हुआ, जिसका मैंने लंबे समय से समर्थन किया है और इसके बारे में एक किताब का सह-लेखन भी किया है. मुझे एलारा कैपिटल से लगातार आश्वासन मिला है कि यह अपने कानूनी दायित्वों का पालन कर रहा है और नियामक निकायों के साथ अच्छी स्थिति में है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘साथ ही अब मैं यह मानता हूं कि यह एक ऐसी भूमिका है जिसके लिए वित्तीय विनियमन के विशेष क्षेत्रों में मेरी अपेक्षा से अधिक डोमेन विशेषज्ञता की आवश्यकता है और इसलिए मैंने बोर्ड से इस्तीफा दे दिया है.’
मालूम हो कि हिंडनबर्ग रिसर्च की एक रिपोर्ट में गंभीर आरोप लगाए जाने के बाद अडानी समूह की सभी कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आई है. समूह की शीर्ष कंपनी अडानी एंटरप्राइजेज के शेयर का मूल्य करीब 60 प्रतिशत तक गिर चुका है.
हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे, जिसके बाद समूह की कंपनियों के शेयरों में पिछले कुछ दिन में भारी गिरावट आई है. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है.
रिपोर्ट सामने आने के बाद अडानी समूह ने बीते 26 जनवरी को कहा था कि वह अपनी प्रमुख कंपनी के शेयर बिक्री को नुकसान पहुंचाने के प्रयास के तहत ‘बिना सोचे-विचारे’ काम करने के लिए हिंडनबर्ग रिसर्च के खिलाफ ‘दंडात्मक कार्रवाई’ को लेकर कानूनी विकल्पों पर गौर कर रहा है.
इसके जवाब में हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा था कि वह अपनी रिपोर्ट पर पूरी तरह कायम है. कंपनी ने यह भी कहा था कि अगर अडानी समूह गंभीर है, तो उसे अमेरिका में भी मुकदमा दायर करना चाहिए, जहां हम काम करते हैं. हमारे पास कानूनी प्रक्रिया के दौरान मांगे जाने वाले दस्तावेजों की एक लंबी सूची है.
बीते 30 जनवरी को अडानी समूह ने हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों के जवाब में 413 पृष्ठ का ‘स्पष्टीकरण’ जारी किया है. अडानी समूह ने इन आरोपों के जवाब में कहा था कि यह हिंडनबर्ग द्वारा भारत पर सोच-समझकर किया गया हमला है. समूह ने कहा था कि ये आरोप और कुछ नहीं सिर्फ ‘झूठ’ हैं.
समूह ने कहा था, ‘यह केवल किसी विशिष्ट कंपनी पर एक अवांछित हमला नहीं है, बल्कि भारत, भारतीय संस्थाओं की स्वतंत्रता, अखंडता और गुणवत्ता, तथा भारत की विकास गाथा और महत्वाकांक्षाओं पर एक सुनियोजित हमला है.’
अडानी समूह के इस जवाब पर पलटवार करते हुए हिंडनबर्ग समूह की ओर से बीते 31 जनवरी को कहा गया था कि धोखाधड़ी को ‘राष्ट्रवाद’ या ‘कुछ बढ़ा-चढ़ाकर प्रतिक्रिया’ से ढका नहीं जा सकता. भारत एक जीवंत लोकतंत्र और उभरती महाशक्ति है. अडानी समूह ‘व्यवस्थित लूट’ से भारत के भविष्य को रोक रहा है.
हिंडनबर्ग की ओर से कहा गया था, ‘हम असहमत हैं. स्पष्ट होने के लिए हम मानते हैं कि भारत एक जीवंत लोकतंत्र है और एक रोमांचक भविष्य के साथ एक उभरती हुई महाशक्ति है. हम यह भी मानते हैं कि भारत का भविष्य अडानी समूह द्वारा रोका जा रहा है, जिसने देश को व्यवस्थित रूप से लूटते हुए खुद को राष्ट्रवाद के आवरण में लपेट लिया है.’
हिंडनबर्ग रिसर्च ने प्रतिक्रिया में कहा कि धोखाधड़ी, धोखाधड़ी ही होती है चाहे इसे दुनिया के सबसे अमीर आदमी ने अंजाम क्यों न दिया हो.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अरबपति गौतम अडानी द्वारा नियंत्रित समूह की प्रमुख सूचीबद्ध कंपनियों के पास ‘पर्याप्त ऋण’ था, जिसने पूरे समूह को ‘अनिश्चित वित्तीय स्थिति’ में डाल दिया है.
साथ ही दावा किया गया था कि उसके दो साल के शोध के बाद पता चला है कि 17,800 अरब रुपये मूल्य वाले अडानी समूह के नियंत्रण वाली मुखौटा कंपनियां कैरेबियाई और मॉरीशस से लेकर यूएई तक में हैं, जिनका इस्तेमाल भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और कर चोरी को अंजाम देने के लिए किया गया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)