अमेरिका स्थित हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह की कंपनियों के ख़िलाफ़ ‘स्टॉक हेरफेर और धोखाधड़ी’ के आरोपों के बाद समूह के शेयरों में गिरावट शुरू होने के बीच अपनी चुप्पी तोड़ते हुए सरकार ने कहा कि एसबीआई और एलआईसी ने बहुत स्पष्ट रूप से कहा है कि उनके द्वारा दिया गया क़र्ज़ अनुमति सीमा के भीतर है.
मुंबई/श्रीनगर: देश के सबसे बड़े बैंक, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने शुक्रवार को कहा कि अडानी समूह की कंपनियों को उसने करीब 27,000 करोड़ रुपये का कर्ज दिया हुआ है, जो कुल वितरित ऋणों का सिर्फ 0.88 प्रतिशत है.
अडानी समूह के शेयरों में गिरावट का दौर जारी रहने से पैदा हुई अनिश्चितता के बीच एसबीआई के चेयरमैन दिनेश खारा ने कहा कि बैंक ने इस समूह को कोई भी कर्ज शेयरों के एवज में नहीं दिया है.
एसबीआई के तिमाही नतीजों की घोषणा के अवसर पर खारा ने संवाददाताओं से कहा कि अडानी समूह की परियोजनाओं को कर्ज देते समय भौतिक संपत्तियों एवं समुचित नकदी प्रवाह को ध्यान में रखा गया है.
उन्होंने कहा, ‘इस समूह की हिस्सेदारी हमारे कुल कर्ज में 0.88 प्रतिशत है. बैंक की ऐसी धारणा नहीं है कि अडानी समूह अपनी कर्ज देनदारियों को पूरा करने में किसी तरह की चुनौती का सामना कर रहा है.’
उन्होंने कहा, ‘हमने शेयरों के एवज में कोई कर्ज नहीं दिया है. हमारा इस तरह का कोई पोर्टफोलियो नहीं है. हमने किसी भी वित्तीय देनदारी या अधिग्रहण के लिए कोई गारंटी नहीं दी है. ये सभी प्रदर्शन-आधारित या वित्तीय गारंटी हैं. हमने ऐसा कुछ नहीं किया है, जो हमें चिंता में डाल सके.’
मौजूदा घटनाक्रम को देखते हुए अडानी समूह के साथ लेन-देन के तरीके में किसी भी तरह के बदलाव की संभावना के बारे में पूछे जाने पर एसबीआई चेयरमैन ने कहा कि बैंक कर्ज की राशि जारी करने के पहले समुचित इक्विटी पर हमेशा जोर देता है.
उन्होंने कहा, ‘जब तक इक्विटी नहीं दिखती है, पैसा नहीं जारी किया जाता है. ऐसा नहीं है कि हम किसी इक्विटी का इंतजार कर रहे हैं. आगे भी किसी प्रस्ताव को उसके गुण-दोष के आधार पर ही परखा जाएगा. इस पर क्रेडिट समितियां निर्णय करती हैं.’
अडानी समूह के शेयरों में आई भारी गिरावट के बीच कर्जदाता संस्थानों पर असर पड़ने की आशंका के बीच एसबीआई प्रमुख ने कहा कि समूह ने कर्ज को पुनर्वित्त करने का कोई अनुरोध नहीं किया है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस समूह का बकाया कर्ज चुकाने का रिकॉर्ड बहुत अच्छा रहा है.
अडानी पर सरकार ने तोड़ी चुप्पी
अमेरिका स्थित हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह की कंपनियों के खिलाफ ‘स्टॉक हेरफेर और धोखाधड़ी’ के आरोपों के बाद समूह के शेयरों में गिरावट शुरू होने के बीच से अपनी चुप्पी तोड़ते हुए सरकार ने शुक्रवार को कहा कि बैंकों और बीमाकर्ताओं का जोखिम ‘अनुमति सीमा’ (Permitted Limits) के भीतर है.
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने समाचार चैनल ‘नेटवर्क18’ को दिए एक इंटरव्यू में कहा, ‘एसबीआई और एलआईसी दोनों ने विस्तृत बयान जारी किए हैं. उनके अध्यक्ष और सीएमडी खुद सामने आए हैं. उन्होंने बहुत स्पष्ट रूप से कहा है कि उनके द्वारा दिया गया कर्ज अनुमति सीमा के भीतर है और वे अभी भी – मूल्यांकन में गिरावट के साथ – लाभ में हैं.’
शेयर बाजारों में आए उतार-चढ़ाव के बारे में पूछे जाने पर सीतारमण ने कहा कि वे उच्च स्तर पर बने रहेंगे. उन्होंने कहा, ‘बजट का बाजार पर तत्काल प्रभाव और उसके बाद मान लीजिए कि किसी भी कारण से यह पिछड़ गया तो मुझे लगता है कि अगले कुछ दिनों में बजट का प्रभाव बाजारों को ऊंचा बनाए रखेगा.’
वित्त मंत्री के अनुसार, ट्विन बैलेंस शीट समस्या से गुजरने के बाद बैंकिंग क्षेत्र की स्थिति अभी ‘सहज’ है. भारतीय बैंकिंग क्षेत्र आज एक आरामदायक स्तर पर है. उनका एनपीए बिल्कुल निचले स्तर पर आ गया है. (कर्ज की) वसूली हो रही है. उनकी स्थिति बहुत अच्छी है, जो इस तथ्य से परिलक्षित होती है कि जब वे बाजार में पैसा जुटाने जाते हैं, तो वे पूरी तरह से सहज होते हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अडानी समूह अभी तक ‘टू बिग टू फेल’ श्रेणी में नहीं आया है. हालांकि, अधिकारी ने कहा कि अडानी समूह की कंपनियों के शेयरों में उथल-पुथल और इसके प्रमुख अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड के 20,000 करोड़ रुपये के फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) की प्रगति को देखते हुए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) को हस्तक्षेप करना चाहिए था.
हालांकि, अधिकारी ने कहा कि वित्त मंत्रालय ने नियामकों को एक या दूसरे तरीके से कार्य करने के लिए कहने की आवश्यकता महसूस नहीं की. अधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, ‘पहले यह एक कंपनी, एक समूह के बारे में है. कोई प्रणालीगत जोखिम नहीं था और यह नियामकों के लिए है कि वे अपने दम पर कार्रवाई करें.’
अधिकारी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘एलआईसी का अडानी समूह के प्रति कर्ज लगभग 1 प्रतिशत है, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए भी 1 प्रतिशत से कम है. इसलिए, समूह को ‘टू बिग टू फेल’ नहीं कहा जा सकता है, फिर भी आईएल एंड एफएस (सरकारी वित्त पोषित बुनियादी ढांचा विकास और वित्त कंपनी) के विपरीत यह मुद्दा सत्यम की घटना के समान अधिक प्रतीत होता है, क्योंकि अंतर्निहित परिसंपत्तियां अभी भी राजस्व-अर्जक परिसंपत्तियां हैं. अब हाल की घटनाओं के साथ नियामक इस तरह के मुद्दे पर अधिक सतर्क होंगे. सेबी जैसे नियामकों को पहले कदम उठाना चाहिए था.’
रिजर्व बैंक ने कहा- बैंकिंग क्षेत्र मजबूत और स्थिर
संकट में फंसे अडानी समूह को बैंकों के कर्ज को लेकर चिंता के बीच भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को कहा कि भारत का बैंकिंग क्षेत्र मजबूत और स्थिर है.
केंद्रीय बैंक ने साथ ही यह भी कहा कि वह ऋणदाताओं पर लगातार नजर बनाए हुए है.
आरबीआई ने बयान में कहा कि एक ‘व्यावसायिक समूह’ को भारतीय बैंकों के कर्ज के बारे में चिंता जताने वाली मीडिया रिपोर्टों को संज्ञान में लेते हुए वह लगातार बैंकिंग क्षेत्र की निगरानी कर रहा है. हालांकि, आरबीआई ने अडानी समूह का नाम नहीं लिया.
आरबीआई ने कहा कि वर्तमान मूल्यांकन के अनुसार, ‘बैंकिंग क्षेत्र जुझारू और स्थिर बना हुआ है. पूंजी पर्याप्तता, संपत्ति की गुणवत्ता, नकदी, प्रावधान प्रसार और लाभप्रदता से संबंधित विभिन्न मानदंड अच्छी स्थिति में हैं.’
केंद्रीय बैंक ने कहा, ‘नियामक और पर्यवेक्षक के रूप में आबीआई वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए बैंकिंग क्षेत्र और प्रत्येक बैंक की लगातार निगरानी करता है. आरबीआई के पास बड़े ऋणों से संबंधित सूचनाओं का केंद्रीय संग्रह (सीआरआईएलसी) डेटाबेस प्रणाली है, जहां बैंक अपने पांच करोड़ और इससे अधिक के कर्ज की जानकारी देते हैं. इस जानकारी का इस्तेमाल निगरानी के लिए किया जाता है.’
बयान में कहा गया कि केंद्रीय बैंक सतर्क रहता है और लगातार भारतीय बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता की निगरानी करता है. बैंक बड़े कर्ज के ढांचे (एलईएफ) के दिशानिर्देशों का अनुपालन कर रहे हैं.
अडानी समूह को कर्ज दो साल में घटा, गुणवत्ता पर चिंता नहींः बैंक ऑफ बड़ौदा
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ऑफ बड़ौदा ने शुक्रवार को कहा कि उसने संकट में घिरे अडानी समूह की कंपनियों को कर्ज में पिछले दो साल में कटौती की है और बकाया कर्ज की गुणवत्ता को लेकर उसे कोई चिंता नहीं है.
बैंक ऑफ बड़ौदा के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यपालक अधिकारी संजीव चड्ढा ने संवाददाताओं से कहा कि अडानी समूह की इकाइयों को दिया गया कर्ज एलईएफ के तहत स्वीकृत सीमा का एक चौथाई ही है. हालांकि उन्होंने अडानी समूह को बैंक की तरफ से दिए गए कर्ज की राशि नहीं बताई.
भारतीय रिजर्व बैंक कहता है कि बड़े कर्जों के लिए निर्धारित रूपरेखा (एलईएफ) के तहत किसी एक समूह से जुड़ीं कंपनियों को दिया गया कुल कर्ज किसी बैंक के पास उपलब्ध पात्र पूंजीगत आधार के 25 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता है.
चड्ढा ने कहा कि बैंक ऑफ बड़ौदा की तरफ से अडानी समूह को दिए गए कर्जों का एक-तिहाई हिस्सा या तो सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के साथ गठित संयुक्त उद्यमों का है या फिर कर्ज को सरकारी स्वामित्व वाली इकाइयों से गारंटी मिली है.
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पिछले दो वर्षों में बैंक के कुल कर्ज बहीखाते में अडानी समूह की प्रतिशत हिस्सेदारी घटी है.
अडानी समूह के शेयरों में भारी गिरावट होने से उसे दिए गए कर्जों की गुणवत्ता को लेकर किसी तरह की चिंता से साफ इनकार करते हुए चड्ढा ने कहा, ‘अडानी समूह की तरफ से बकाया कर्ज को पुनर्वित्त करने का कोई भी अनुरोध नहीं आया है.’
इसके साथ ही चड्ढा ने कहा कि बैंक किसी भी कंपनी को शेयर कीमतों के आधार पर कर्ज नहीं देते हैं, इसके लिए वे कंपनी के वास्तविक मूल्य और परिसंपत्तियों को जमानत के तौर पर देखते हैं.
उन्होंने कहा कि कंपनियों को दिया जाने वाला अधिकांश कर्ज सुरक्षित होता है और कार्यशील पूंजी कर्ज को नकद प्रवाह से सुरक्षित किया जाता है.
उन्होंने कहा कि बैंक का कंपनियों को आवंटित कर्ज का बहीखाता काफी अच्छी स्थिति में है और दिसंबर तिमाही में इसमें सिर्फ 13 करोड़ रुपये ऐसे कर्ज हैं, जो फंसा है, जो पहले हजारों करोड़ रुपये था.
अडानी समूह को दिया हमारा कर्ज सुरक्षित: जम्मू-कश्मीर बैंक
जम्मू एंड कश्मीर (जेके) बैंक ने शुक्रवार को कहा है कि अडानी समूह को दिया गया, उसका कर्ज सुरक्षित है और बैंक के निवेशकों को चिंता करने की जरूरत नहीं है.
बैंक के उप-महाप्रबंधक निशिकांत शर्मा ने से कहा, ‘अडानी समूह को दिया गया हमारा ऋण बैंक द्वारा वित्तपोषित परियोजनाओं के प्रति सुरक्षित है.’
शर्मा ने कहा कि जेके बैंक ने महाराष्ट्र और गुजरात के मुंद्रा में दो तापीय बिजली संयंत्रों के लिए अडानी समूह को 400 करोड़ रुपये कर्ज दिया है.
उन्होंने कहा, ‘हमने 10 साल पहले दोनों परियोजनाओं के लिए 400 करोड़ रुपये का कर्ज दिया था, जो अब 240 से 250 करोड़ रुपये रह गया है. भुगतान नियमित रूप से हो रहे हैं और दोनों संयंत्र बिजली खरीद समझौतों के साथ संचालित हैं. अडानी के खाते से एक पैसा भी बकाया नहीं है.’
उल्लेखनीय है कि अमेरिकी निवेश शोध फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की एक रिपोर्ट में गंभीर आरोप लगाए जाने के बाद अडानी समूह की सभी कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आई है. समूह की शीर्ष कंपनी अडानी एंटरप्राइजेज के शेयर का मूल्य करीब 60 प्रतिशत तक गिर चुका है.
शेयरों में जारी भारी गिरावट के बीच अडानी एंटरप्राइजेज समेत अडानी समूह की तीन कंपनियां शेयर बाजारों बीएसई और एनएसई के अल्पकालिक अतिरिक्त निगरानी व्यवस्था (एएसएम) के दायरे में आ गई हैं. इस बीच, एसएंडपी डाउ जोन्स ने कहा है कि अडानी समूह की कंपनी अडानी एंटरप्राइजेज को वह सात फरवरी से अपने ‘स्थिरता सूचकांक’ से हटा देगा.
बीते दो फरवरी को अडानी एंटरप्राइजेज ने अपने 20 हजार करोड़ रुपये के फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) को वापस लेने और निवेशकों का पैसा लौटाने की घोषणा की थी.
एफपीओ एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक कंपनी, जो पहले से ही एक एक्सचेंज में सूचीबद्ध है, निवेशकों या मौजूदा शेयरधारकों, आमतौर पर प्रमोटरों को नए शेयर जारी करती है. एफपीओ का उपयोग कंपनियां अपने इक्विटी आधार में विविधता लाने के लिए करती हैं.
एक कंपनी आईपीओ की प्रक्रिया से गुजरने के बाद एफपीओ लाती है, और इसके जरिये कंपनी जनता के लिए अपने अधिक शेयर उपलब्ध कराने या किसी ऋण का भुगतान करने या अपने लिए पूंजी जुटाने के लिए करती है.
इस विवाद के बीच बीते एक फरवरी को अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड के अध्यक्ष गौतम अडानी ने एक बयान में कहा था, ‘असाधारण परिस्थितियों के मद्देनजर कंपनी के निदेशक मंडल ने फैसला किया है कि एफपीओ पर आगे बढ़ना नैतिक रूप से ठीक नहीं होगा. निवेशकों का हित हमारे लिए सर्वोपरि है और उन्हें किसी तरह के संभावित नुकसान से बचाने के लिए निदेशक मंडल ने एफपीओ को वापस लेने का फैसला किया है.’
मालूम हो कि अमेरिकी निवेश अनुसंधान फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे, जिसके बाद समूह की कंपनियों के शेयरों में पिछले कुछ दिन में भारी गिरावट आई है. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है.
रिपोर्ट सामने आने के बाद अडानी समूह ने बीते 26 जनवरी को कहा था कि वह अपनी प्रमुख कंपनी के शेयर बिक्री को नुकसान पहुंचाने के प्रयास के तहत ‘बिना सोचे-विचारे’ काम करने के लिए हिंडनबर्ग रिसर्च के खिलाफ ‘दंडात्मक कार्रवाई’ को लेकर कानूनी विकल्पों पर गौर कर रहा है.
इसके जवाब में हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा था कि वह अपनी रिपोर्ट पर पूरी तरह कायम है. कंपनी ने यह भी कहा था कि अगर अडानी समूह गंभीर है, तो उसे अमेरिका में भी मुकदमा दायर करना चाहिए, जहां हम काम करते हैं. हमारे पास कानूनी प्रक्रिया के दौरान मांगे जाने वाले दस्तावेजों की एक लंबी सूची है.
बीते 30 जनवरी को अडानी समूह ने हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों के जवाब में 413 पृष्ठ का ‘स्पष्टीकरण’ जारी किया है. अडानी समूह ने इन आरोपों के जवाब में कहा था कि यह हिंडनबर्ग द्वारा भारत पर सोच-समझकर किया गया हमला है. समूह ने कहा था कि ये आरोप और कुछ नहीं सिर्फ ‘झूठ’ हैं.
समूह ने कहा था, ‘यह केवल किसी विशिष्ट कंपनी पर एक अवांछित हमला नहीं है, बल्कि भारत, भारतीय संस्थाओं की स्वतंत्रता, अखंडता और गुणवत्ता, तथा भारत की विकास गाथा और महत्वाकांक्षाओं पर एक सुनियोजित हमला है.’
अडानी समूह के इस जवाब पर पलटवार करते हुए हिंडनबर्ग समूह की ओर से बीते 31 जनवरी को कहा गया था कि धोखाधड़ी को ‘राष्ट्रवाद’ या ‘कुछ बढ़ा-चढ़ाकर प्रतिक्रिया’ से ढका नहीं जा सकता. भारत एक जीवंत लोकतंत्र और उभरती महाशक्ति है. अडानी समूह ‘व्यवस्थित लूट’ से भारत के भविष्य को रोक रहा है.
हिंडनबर्ग की ओर से कहा गया था, ‘हम असहमत हैं. स्पष्ट होने के लिए हम मानते हैं कि भारत एक जीवंत लोकतंत्र है और एक रोमांचक भविष्य के साथ एक उभरती हुई महाशक्ति है. हम यह भी मानते हैं कि भारत का भविष्य अडानी समूह द्वारा रोका जा रहा है, जिसने देश को व्यवस्थित रूप से लूटते हुए खुद को राष्ट्रवाद के आवरण में लपेट लिया है.’
हिंडनबर्ग रिसर्च ने प्रतिक्रिया में कहा कि धोखाधड़ी, धोखाधड़ी ही होती है चाहे इसे दुनिया के सबसे अमीर आदमी ने अंजाम क्यों न दिया हो.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अरबपति गौतम अडानी द्वारा नियंत्रित समूह की प्रमुख सूचीबद्ध कंपनियों के पास ‘पर्याप्त ऋण’ था, जिसने पूरे समूह को ‘अनिश्चित वित्तीय स्थिति’ में डाल दिया है.
साथ ही दावा किया गया था कि उसके दो साल के शोध के बाद पता चला है कि 17,800 अरब रुपये मूल्य वाले अडानी समूह के नियंत्रण वाली मुखौटा कंपनियां कैरेबियाई और मॉरीशस से लेकर यूएई तक में हैं, जिनका इस्तेमाल भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और कर चोरी को अंजाम देने के लिए किया गया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)