सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में बड़े कारोबारी घरानों को दिए गए 500 करोड़ रुपये से अधिक के ऋण के लिए मंज़ूरी नीति की निगरानी को लेकर एक विशेष समिति गठित करने के बारे में भी निर्देश देने की मांग की गई है. अमेरिकी निवेश अनुसंधान फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर केंद्र को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि उद्योगपति गौतम अडानी के नेतृत्व वाले कारोबारी समूह पर हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों के संबंध में जांच के लिए शीर्ष अदालत के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में एक समिति का गठन किया जाए.
अधिवक्ता विशाल तिवारी द्वारा दायर जनहित याचिका में बड़े कारोबारी घरानों को दिए गए 500 करोड़ रुपये से अधिक के ऋण के लिए मंजूरी नीति की निगरानी को लेकर एक विशेष समिति गठित करने के बारे में भी निर्देश देने की मांग की गई है.
पिछले हफ्ते भी शीर्ष अदालत में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें अमेरिका की निवेश शोध कंपनी ‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ के नाथन एंडरसन और भारत और अमेरिका में उनके सहयोगियों के खिलाफ कथित रूप से निर्दोष निवेशकों का शोषण करने और अडानी समूह के शेयर मूल्य में ‘कृत्रिम तरीके’ से गिरावट के लिए मुकदमा चलाने की मांग की गई थी.
‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ द्वारा अडानी समूह पर फर्जी लेनदेन और शेयर की कीमतों में हेरफेर सहित कई गंभीर आरोप लगाए जाने के बाद समूह की कंपनियों के शेयर की कीमतों में भारी गिरावट आई है.
वहीं, अडानी समूह ने कहा है कि वह सभी कानूनों और सूचना प्रकट करने संबंधी आवश्यकताओं का अनुपालन करता है.
तिवारी ने अपनी याचिका में कहा है कि जब विभिन्न कारणों से शेयर बाजार में शेयर में गिरावट की स्थिति उत्पन्न होती है तो लोगों की स्थिति बदहाल हो जाती है.
याचिका में कहा गया है, ‘बहुत से लोग ऐसे शेयर में जीवन भर की जमा पूंजी लगाते हैं, ऐसे शेयरों में गिरावट के कारण उन्हें जोर का झटका लगता है, जिससे बड़ी मात्रा में पैसे गंवा देते हैं.’
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का संदर्भ देते हुए याचिका में कहा गया है कि इससे विभिन्न निवेशकों के लिए बड़ी राशि का नुकसान हुआ है, जिन्होंने ऐसे शेयरों में अपने जीवन की काफी बचत राशि का निवेश किया है.
याचिका में दावा किया गया है कि देश की अर्थव्यवस्था पर ‘बड़े पैमाने पर हमले किए जाने’ के बावजूद इस मुद्दे पर प्राधिकारों द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.
याचिका में कहा गया, ‘यह अंतत: सार्वजनिक धन है, जिसके लिए प्रतिवादी (केंद्र और अन्य) जवाबदेह हैं और ऐसी उच्च हिस्सेदारी वाली ऋण राशि के लिए एक स्पष्ट प्रक्रिया और स्वीकृति नीति के साथ ऐसे ऋणों के जोखिम को कम करने के लिए सख्ती की आवश्यकता है.’
याचिका में केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) तथा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) सहित अन्य को प्रतिवादी बनाने की मांग की गई है.
बार एंड बेंच के मुताबिक, याचिकाकर्ता के अनुसार, भारत के सबसे बड़े वित्तीय संस्थानों में से एक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने उन कंपनियों को कुल 2.6 बिलियन डॉलर का ऋण प्रदान किया है जो अडानी समूह का हिस्सा हैं.
अडानी एंटरप्राइजेज द्वारा रिपोर्ट को ‘दुर्भावनापूर्ण’ कहकर खारिज करने के संबंध में, याचिका में कहा गया है कि इसकी चिंता उन निवेशकों के भाग्य से है, जिन्होंने बिना किसी निवारण के बड़ी मात्रा में धन खो दिया है.
मालूम हो कि अमेरिकी निवेश अनुसंधान फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे, जिसके बाद समूह की कंपनियों के शेयरों में पिछले कुछ दिन में भारी गिरावट आई है. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है.
रिपोर्ट सामने आने के बाद अडानी समूह ने बीते 26 जनवरी को कहा था कि वह अपनी प्रमुख कंपनी के शेयर बिक्री को नुकसान पहुंचाने के प्रयास के तहत ‘बिना सोचे-विचारे’ काम करने के लिए हिंडनबर्ग रिसर्च के खिलाफ ‘दंडात्मक कार्रवाई’ को लेकर कानूनी विकल्पों पर गौर कर रहा है.
इसके जवाब में हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा था कि वह अपनी रिपोर्ट पर पूरी तरह कायम है. कंपनी ने यह भी कहा था कि अगर अडानी समूह गंभीर है, तो उसे अमेरिका में भी मुकदमा दायर करना चाहिए, जहां हम काम करते हैं. हमारे पास कानूनी प्रक्रिया के दौरान मांगे जाने वाले दस्तावेजों की एक लंबी सूची है.
बीते 30 जनवरी को अडानी समूह ने हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों के जवाब में 413 पृष्ठ का ‘स्पष्टीकरण’ जारी किया है. अडानी समूह ने इन आरोपों के जवाब में कहा था कि यह हिंडनबर्ग द्वारा भारत पर सोच-समझकर किया गया हमला है. समूह ने कहा था कि ये आरोप और कुछ नहीं सिर्फ ‘झूठ’ हैं.
समूह ने कहा था, ‘यह केवल किसी विशिष्ट कंपनी पर एक अवांछित हमला नहीं है, बल्कि भारत, भारतीय संस्थाओं की स्वतंत्रता, अखंडता और गुणवत्ता, तथा भारत की विकास गाथा और महत्वाकांक्षाओं पर एक सुनियोजित हमला है.’
अडानी समूह के इस जवाब पर पलटवार करते हुए हिंडनबर्ग समूह की ओर से बीते 31 जनवरी को कहा गया था कि धोखाधड़ी को ‘राष्ट्रवाद’ या ‘कुछ बढ़ा-चढ़ाकर प्रतिक्रिया’ से ढका नहीं जा सकता. भारत एक जीवंत लोकतंत्र और उभरती महाशक्ति है. अडानी समूह ‘व्यवस्थित लूट’ से भारत के भविष्य को रोक रहा है.
हिंडनबर्ग की ओर से कहा गया था, ‘हम असहमत हैं. स्पष्ट होने के लिए हम मानते हैं कि भारत एक जीवंत लोकतंत्र है और एक रोमांचक भविष्य के साथ एक उभरती हुई महाशक्ति है. हम यह भी मानते हैं कि भारत का भविष्य अडानी समूह द्वारा रोका जा रहा है, जिसने देश को व्यवस्थित रूप से लूटते हुए खुद को राष्ट्रवाद के आवरण में लपेट लिया है.’
हिंडनबर्ग रिसर्च ने प्रतिक्रिया में कहा कि धोखाधड़ी, धोखाधड़ी ही होती है चाहे इसे दुनिया के सबसे अमीर आदमी ने अंजाम क्यों न दिया हो.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अरबपति गौतम अडानी द्वारा नियंत्रित समूह की प्रमुख सूचीबद्ध कंपनियों के पास ‘पर्याप्त ऋण’ था, जिसने पूरे समूह को ‘अनिश्चित वित्तीय स्थिति’ में डाल दिया है.
साथ ही दावा किया गया था कि उसके दो साल के शोध के बाद पता चला है कि 17,800 अरब रुपये मूल्य वाले अडानी समूह के नियंत्रण वाली मुखौटा कंपनियां कैरेबियाई और मॉरीशस से लेकर यूएई तक में हैं, जिनका इस्तेमाल भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और कर चोरी को अंजाम देने के लिए किया गया.
इसके बाद बीते 1 फरवरी को अडानी एंटरप्राइजेज ने अपने 20 हजार करोड़ रुपये के फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) को वापस लेने और निवेशकों का पैसा लौटाने की घोषणा की थी.
एफपीओ एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक कंपनी, जो पहले से ही एक एक्सचेंज में सूचीबद्ध है, निवेशकों या मौजूदा शेयरधारकों, आमतौर पर प्रमोटरों को नए शेयर जारी करती है. एफपीओ का उपयोग कंपनियां अपने इक्विटी आधार में विविधता लाने के लिए करती हैं.
एक कंपनी आईपीओ की प्रक्रिया से गुजरने के बाद एफपीओ लाती है, और इसके जरिये कंपनी जनता के लिए अपने अधिक शेयर उपलब्ध कराने या किसी ऋण का भुगतान करने या अपने लिए पूंजी जुटाने के लिए करती है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)