बीते 29 जनवरी को लखनऊ में सांकेतिक विरोध प्रदर्शन के दौरान रामचरितमानस की फोटोकॉपी जलाने के मामले में सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य के अलावा 10 लोगों को आरोपी बनाया गया है. इस संबंध में दर्ज एफ़आईआर में आरोप लगाया गया है कि रामचरितमानस के पन्नों की छायाप्रतियां जलाने से शांति एवं सद्भाव को ख़तरा है.
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के ‘वृंदावन योजना’ सेक्टर में सांकेतिक विरोध प्रदर्शन के दौरान रामचरितमानस की छायाप्रतियां (फोटोकॉपी) जलाने के आरोप में जेल में बंद दो लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) लगाया गया है. अधिकारियों ने सोमवार को यह जानकारी दी.
उन्होंने बताया कि 29 जनवरी को यहां पीजीआई पुलिस थाने में दर्ज मामले के संबंध में जिलाधिकारी ने जेल में बंद मोहम्मद सलीम और सत्येंद्र कुशवाहा के खिलाफ रासुका लगाया है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि सलीम और सत्येंद्र के खिलाफ रासुका (एनएसए) लगाने का आदेश जेल में दिया जा चुका है. गिरफ्तारी के बाद से दोनों लखनऊ जिला जेल में बंद हैं. सहायक पुलिस आयुक्त (लखनऊ छावनी) अनूप कुमार सिंह ने कहा कि रासुका जिला मजिस्ट्रेट द्वारा लगाया गया है.
पुलिस के मुताबिक, 29 जनवरी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 142, 143, 153 ए, 295, 295 ए, 298, 504, 505, 506 और 120बी के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी.
पुलिस ने बताया था कि सतनाम सिंह लवी नामक व्यक्ति की शिकायत पर पीजीआई थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी. इसमें आरोप लगाया गया है कि रामचरितमानस के पन्नों की छायाप्रतियां जलाने से शांति एवं सद्भाव को खतरा है.
एफआईआर में समाजवादी पार्टी (सपा) नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के अलावा देवेंद्र प्रताप यादव, यशपाल सिंह लोधी, सत्येंद्र कुशवाहा, महेंद्र प्रताप यादव, सुजीत यादव, नरेश सिंह, सुरेश सिंह यादव, एसएस यादव, संतोष वर्मा और मोहम्मद सलीम को आरोपी बनाया गया है.
आरोपियों में से पांच – सत्येंद्र कुशवाहा, यशपाल सिंह लोधी, देवेंद्र प्रताप यादव, सुरेश सिंह और मोहम्मद सलीम को 30 जनवरी को गिरफ्तार किया गया था.
उल्लेखनीय है कि सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थन में अखिल भारतीय ओबीसी महासभा के कार्यकर्ताओं ने बीते 29 जनवरी को कथित तौर पर ‘महिलाओं और दलितों पर आपत्तिजनक टिप्पणियों’ के उल्लेख वाले रामचरितमानस के पन्ने की फोटोकॉपी जलाई थी.
महासभा के पदाधिकारी देवेंद्र प्रताप यादव ने कहा था, ‘जैसा कि मीडिया के एक वर्ग में बताया गया है कि हमने रामचरितमानस की प्रतियां जलाई हैं, यह कहना गलत है. ‘शूद्रों’ (दलितों) और महिलाओं के खिलाफ इस पुस्तक की आपत्तिजनक टिप्पणियों वाले पन्ने की फोटोकॉपी को सांकेतिक विरोध के तौर पर जलाया गया.’
यह पूछे जाने पर कि उन्हें ऐसा विरोध दर्ज कराने के लिए किसने प्रेरित किया, इस पर यादव ने कहा था, ‘स्वामी प्रसाद मौर्य ने पहले ही मांग की थी कि रामचरितमानस में उल्लिखित आपत्तिजनक टिप्पणियों को हटा दिया जाना चाहिए या उन पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए. सरकार ने इस संबंध में कोई कदम नहीं उठाया. स्वामी प्रसाद मौर्य को हमारा समर्थन है और अखिल भारतीय ओबीसी महासभा उनके साथ खड़ी है.’
गौरतलब है कि अन्य पिछड़ा वर्गों के प्रमुख नेताओं में शुमार किए जाने वाले सपा के विधान परिषद सदस्य तथा उत्तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने इसी महीने में यह आरोप लगाकर एक विवाद खड़ा कर दिया था कि रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों में जाति के आधार पर समाज के एक बड़े वर्ग का ‘अपमान’ किया गया है. उन्होंने मांग की कि इन पर प्रतिबंध लगाया जाए.
मौर्य ने बीते 22 जनवरी को रामचरितमानस की एक चौपाई का जिक्र करते हुए कहा था कि उसमें पिछड़ों, दलितों और महिलाओं के बारे में आपत्तिजनक बातें लिखी हैं, जिससे करोड़ों लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचती है. लिहाजा इस पर पाबंदी लगा दी जानी चाहिए.
समाचार चैनल यूपी तक को दिए एक साक्षात्कार में स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था, ‘धर्म कोई भी हो हम, सबका सम्मान करते हैं, लेकिन धर्म के नाम पर अगर वर्ग विशेष, जाति विशेष को अपमानित करने के लिए कुछ कहा जाता है तो यह सार्वजनिक रूप से आपत्तिजनक है.’
मौर्य की इस टिप्पणी को लेकर काफी विवाद उत्पन्न हो गया था. साधु-संतों तथा भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने उनकी कड़ी आलोचना की थी. उनके खिलाफ बीते 24 जनवरी को लखनऊ के हजरतगंज थाने में भी एक मुकदमा दर्ज किया गया था.
मौर्य राज्य में पिछली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार में कैबिनेट मंत्री थे. लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले उन्होंने इस्तीफा देकर सपा का दामन थाम लिया था. उन्होंने कुशीनगर जिले की फाजिलनगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे. बाद में सपा ने उन्हें विधान परिषद का सदस्य बना दिया.
बता दें कि इससे पहले बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने बीते 11 जनवरी को नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में ‘रामचरितमानस को समाज में नफरत फैलाने वाला ग्रंथ बताया था.’ उनके इस बयान पर काफी विवाद हुआ था.
उन्होंने कहा था कि मनुस्मृति और रामचरितमानस जैसे हिंदू ग्रंथ दलितों, अन्य पिछड़ा वर्गों और शिक्षा प्राप्त करने वाली महिलाओं के खिलाफ हैं.
चंद्रशेखर ने कहा था कि मनुस्मृति, रामचरितमानस और भगवा विचारक गुरु गोलवलकर की किताब ‘बंच ऑफ थॉट्स’ नफरत फैलाते हैं. नफरत नहीं प्यार देश को महान बनाता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)