बीते वर्ष उत्तराखंड के पौड़ी ज़िले के एक रिज़ॉर्ट में काम करने वाली 19 वर्षीय अंकिता भंडारी का शव ऋषिकेश के पास एक नहर से मिला था. आरोप है कि रिज़ॉर्ट के मालिक और स्थानीय भाजपा नेता के बेटे ने अंकिता पर वीआईपी मेहमान को ‘विशेष सेवाएं’ देने का दबाव बनाया था, जिससे मना करने पर उनकी हत्या कर दी गई.
नई दिल्ली: महिला अधिकार संगठनों की एक फैक्ट-फाइंडिंग टीम ने उत्तराखंड के अंकिता भंडारी हत्याकांड में पुलिस की जांच पर संदेह जताया है.
बता दें कि 19 वर्षीय अंकिता भंडारी ऋषिकेश के पास एक रिजॉर्ट में काम करती थीं और उनकी कथित तौर पर इसलिए हत्या कर दी गई थी क्योंकि उन्होंने वीआईपी मेहमान को ‘विशेष सेवाएं’ (सेक्स वर्क के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द) देने से इनकार कर दिया था.
अंकिता की कथित तौर पर रिसॉर्ट के मालिक पुलकित आर्य और उसके दो सहयोगियों ने हत्या कर दी थी. यह अंकिता की पहली ही नौकरी थी और वह वहां सिर्फ एक पखवाड़े से ही काम कर रही थीं. उसका शव 24 सितंबर, 2022 को रिसॉर्ट के पास एक नहर से बरामद किया गया था. पुलकित भाजपा नेता विनोद आर्य का बेटा है. यह आरोप लगने के बाद विनोद को पार्टी से निकाल दिया गया था.
रिपोर्ट के अनुसार, फैक्ट-फाइंडिंग टीम का नेतृत्व उत्तराखंड महिला मंच द्वारा किया गया था और इसमें उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक के महिला समूहों, जन संगठनों और महिला मोर्चा, मानवाधिकार संगठनों, वकीलों और पर्यटन विशेषज्ञों के 30 प्रतिनिधि शामिल थे.
टीम ने अपराध स्थल का दौरा किया और 27-28 अक्टूबर 2022 को संबंधित लोगों से पूछताछ की और 7 फरवरी 2023 को रिपोर्ट जारी की.
रिपोर्ट में दावा किया गया कि आपराधिक न्याय प्रणाली पूरी तरह से चरमरा गई है. इसमें कहा गया है, ‘अंकिता की हत्या की कहानी सबसे प्राथमिक स्तर पर आपराधिक न्याय प्रणाली का पूर्ण रूप से विफल होना दिखाती है. (19 सितंबर को) जब पुलकित ने झूठी सूचना दी कि अंकिता लापता हो गई है, तब से दुर्भावनापूर्ण इरादे से कई अनियमितताएं की गईं.’
रिपोर्ट कहती है कि इसकी शुरुआत राजस्व पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज करने में देरी के साथ हुई, जो अंकिता की मौत के 48 घंटे बाद 20 सितंबर को दर्ज की गई. ‘और फिर अगले 48 घंटे तक कुछ नहीं हुआ और फिर चौथे दिन 22 सितंबर को मामला लक्ष्मण झूला की नियमित पुलिस को स्थानांतरित किया गया.’
कार्यकर्ताओं ने यह भी कहा कि अंकिता के पिता दो दिनों तक दर-दर भटकने के बाद ही रिपोर्ट दर्ज करा सके. उन्होंने यह भी जोड़ा कि विभिन्न स्तरों पर अधिकारियों ने शिकायत लेने से इनकार कर दिया था.
अभियुक्तों की गिरफ्तारी में देरी के कारणों पर सवाल उठाते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, ‘गिरफ्तारी पांचवें दिन (23 सितंबर) को हुई और नहर से अंकिता का शव उनकी हत्या के छठे दिन बरामद किया गया.’
रिपोर्ट में कहा गया है, आज के समय में इस तरह के अत्यावश्यक प्रकृति के मामलो में ऐसी ‘असाधारण देरी’ कर्तव्यों से जी चुराने का घृणित चेहरा दिखाती है.
जिस रिसॉर्ट में अंकिता की कथित तौर पर हत्या की गई थी, उसे भाजपा विधायक रेणु बिष्ट द्वारा बुलडोजर से आंशिक रूप से गिरा दिया था. टीम ने सवाल किए कि किसके इशारे पर रिजॉर्ट को तोड़ा गया, इसकी अनुमति किसने दी, और पुलिस ने हत्या के तुरंत बाद अपराध स्थल को सील क्यों नहीं किया.
पुलकित आर्य के अलावा अन्य दो आरोपियों में रिसॉर्ट मैनेजर सौरभ भास्कर और असिस्टेंट मैनेजर अंकित गुप्ता शामिल हैं. उन पर आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 365 (गुप्त रूप से और गलत तरीके से व्यक्ति को कैद करने के इरादे से अपहरण) और 201 (अपराध के साक्ष्य को गायब करना) के तहत मामला दर्ज किया गया है.
रिपोर्ट में यह भी सवाल उठाया गया है कि पुलिस ने उस ‘वीआईपी’ का नाम क्यों नहीं लिया, जिसे ‘विशेष सेवाएं’ देने का दबाव अंकिता पर डाला गया था.
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी वीआईपी अतिथि की पहचान उजागर करने की मांग को लेकर धरना दिया था.
टीम ने अनुरोध किया है कि मामले के मुख्य गवाहों- रिजॉर्ट के कर्मचारी और अंकिता के एक दोस्त- को पुलिस द्वारा चौबीसों घंटें सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए. रिपोर्ट राज्य महिला आयोग और पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाती है.
उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अंकिता के परिवार की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है. परिवार ने पुलिस के विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा की जा रही जांच पर भरोसा नहीं जताया था. हालांकि, कोर्ट ने एसआईटी की जांच को संतोषजनक पाया.