बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में छह राज्यों के 14 ज़िलों में एक अध्ययन किया गया, जिसमें देश भर के 34 शोध संस्थानों के 88 वैज्ञानिक शामिल थे. इसमें पाया गया कि भारतीय आबादी के बड़े हिस्से में कोविड-19 के लक्षण नहीं थे और 26-35 आयु वर्ग में ऐसे बिना लक्षण वाले लोगों की संख्या सर्वाधिक थी.
वाराणसी: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन में दावा किया गया है कि भारत में कोविड-19 संक्रमण (रिपोर्ट न किए गए और गैर-लक्षण वाले [Asymptomatic] मामलों समेत) के वास्तविक मामलों की संख्या 4.5 करोड़ के आधिकारिक आंकड़े से 17 गुना अधिक हो सकती है.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, अध्ययन में देश के कई अन्य संस्थानों के वैज्ञानिक भी शामिल थे. इसका प्रकाशन प्रख्यात विज्ञान पत्रिका (साइंस जर्नल) ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इफेक्शियस डिजीज (आईजेआईडी)’ में हुआ है.
अध्ययन का नेतृत्व बीएचयू के विज्ञान संस्थान के जूलॉजी विभाग के अनुवांशिकी वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने किया. इसमें देश भर के 34 शोध संस्थानों के 88 वैज्ञानिक भी शामिल थे.
वैज्ञानिकों की इस टीम ने सितंबर से दिसंबर 2020 के बीच 6 राज्यों के 14 जिलों के शहरी क्षेत्रों में 2,301 लोगों के बीच सीरो सर्वे (एंटीबॉडी टेस्टिंग) किया.
प्रोफेसर चौबे ने कहा कि इस अध्ययन का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह था कि भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा कोविड-19 से लक्षणहीन था और 26-35 आयु वर्ग में ऐसे लक्षणहीन लोगों की संख्या सबसे अधिक थी.
शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया कि किसी भी कोविड लहर के बाद लोगों में एंटीबॉडी टेस्ट संक्रमण की वास्तविक स्थिति का सटीक आकलन कर सकता है. इसलिए, इसी प्रक्रिया को अपनाते हुए टीम ने 14 जिलों के शहरी क्षेत्र में रहने वाले अधिक लोगों (स्ट्रीट वेंडर्स) के बीच शोध किया, जिनमें कोरोना वायरस संक्रमण होने के अधिक जोखिम वाले लोग शामिल थे.
प्रोफेसर चौबे के अनुसार, ‘सैंपल केवल उन लोगों के लिए गए जिन्होंने खुद से बताया था कि उन्हें कभी कोई कोविड-19 के लक्षण नहीं थे या उनका आरटीपीसीआर टेस्ट पॉजीटिव नहीं आया था. एंटीबॉडी पॉजीटिव लोगों का सबसे कम अनुपात छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले (2 प्रतिशत) में पाया गया, जबकि सबसे अधिक अनुपात उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले (47 प्रतिशत) में पाया गया.
रिपोर्ट कहती है कि संक्रमण की आधिकारिक संख्या और वास्तविक संभावित संक्रमण के बीच अंतर बड़ी संख्या में उन लक्षणहीन मामलों के कारण हो सकता है जो कि कभी रिपोर्ट ही नहीं हुए. अध्ययन इस आकलन तक गणितीय मॉडल अपनाकर पहुंचा.