द वायर की रिपोर्ट पर इंडिया फाउंडेशन की प्रतिक्रिया बेहद असंतोषजनक है. फाउंडेशन द्वारा न तो रिपोर्ट में उठाये गये और न ही निदेशकों को भेजे गए किसी सवाल का स्पष्ट जवाब दिया गया है.
द वायर द्वारा इंडिया फाउंडेशन पर की गयी रिपोर्ट को आसान तरीके से समझें तो यह रिपोर्ट तीन बिंदुओं पर हितों के टकराव से संबंधित है.
पहला संबंध इसके संस्थापक निदेशक शौर्य डोभाल से है, जो कि एक सऊदी कारोबारी के समर्थन वाली फाइनेंशियल सर्विसेज फर्म के पार्टनर हैं. यह फर्म कई क्षेत्रों में अपने क्लाइंटों को सौदे कराने में मदद करती है. इनमें से कई क्षेत्र ऐसे हैं, जो उन मंत्रियों और अफसरों के अधिकार क्षेत्र के तहत आते हैं, जिन्हें शौर्य डोभाल इंडिया फाउंडेशन की गतिविधियों में सफलतापूर्वक शामिल कर लेते हैं.
दूसरे का ताल्लुक मंत्रियों के इंडिया फाउंडेशन के डायरेक्टर (निदेशक) के तौर पर काम करने की उपयुक्तता से जुड़ा है. इस फाउंडेशन की गतिविधियों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रिश्ता सरकार में उनके कामकाज से है. फाउंडेशन के देशी-विदेशी कॉरपोरेट मदद पर आश्रित होने के कारण यह मसला और भी विचारणीय हो जाता है.
तीसरी धुरी राजनीतिक है: क्या एक राजनीतिक दल से जुड़े थिंक टैंक को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के समर्थन के रूप में और कुछ मामलों में तो मंत्रालयों और सरकारी विभागों की सहायता के रूप में भी, करदाताओं के पैसे से मदद दी जानी चाहिए?
31 अक्टूबर और फिर 1 नवंबर को द वायर ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बेटे, इंडिया फाउंडेशन के निदेशक शौर्य डोभाल को एक ईमेल के जरिये फाउंडेशन की गतिविधियों के संबंध में एक विस्तृत प्रश्नावली भेजी थी. डोभाल ने इससे पहले रिपोर्टर स्वाति चतुर्वेदी द्वारा 30 अक्टूबर को फाउंडेशन के फंड के स्रोत को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में सिर्फ ‘सम्मेलन, विज्ञापन और जर्नल’ (को फंड का स्रोत) कहा था.
एक ऐसे गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ), जिसके बोर्ड में केंद्रीय मंत्रियों की मौजूदगी है, के पैसे के स्रोत को समझना जनहित से जुड़ा मामला है और इसको देखते हुए यह जवाब साफतौर पर नाकाफी था.
वॉट्सऐप के जरिए कई बार ताकीद किए जाने के बावजूद (पहली बार जिसका उन्होंने जवाब दिया था) डोभाल ने इनमें से किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया. इंडिया फाउंडेशन के सह-संस्थापक तथा निदेशक और इसके इंटरनेट डोमेन के मालिक राम माधव ने भी स्वाति चतुर्वेदी से किसी ‘उचित व्यक्ति’ के माध्यम से जवाब देने का वादा करने के बाद चुप्पी साध ली.
1 नवंबर को शौर्य डोभाल को भेजे गए सवाल:
- आपका ट्रस्ट किस अथॉरिटी के तहत रजिस्टर्ड है?
- इसके ट्रस्टी कौन हैं?
- पहली बार इंडिया फाउंडेशन को एफसीआरए (फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट) रजिस्ट्रेशन कब मिला? एफसीआरए की साइट का कहना है कि इसका ‘नवीकरण’ 2017 में हुआ.
- अगर इंडिया फाउंडेशन, 2017 में पहली बार एफसीआरए से रजिस्टर्ड हुआ, तो क्या आपने इससे पहले के सालों में विदेशी योगदानों/चंदों के लिए एफसीआरए की ‘पूर्व अनुमति’ ली थी? अगर, हां, तो क्या आप इसका ब्यौरा मुहैया करा सकते हैं.
- अगर इंडिया फाउंडेशन, 2017 से पहले से एफसीआरए के तहत रजिस्टर्ड है, तो क्या आप यह बता सकते हैं कि आखिर फाउंडेशन ने हर साल के लिए अनिवार्य एफसी रिटर्न क्यों नहीं भरा है? अगर यह रिटर्न भरा गया है, तो इन्हें सार्वजनिक जांच के लिए खुला होना चाहिए था, मगर आपके इंडिया फाउंडेशन के लिए कुछ भी उपलब्ध नहीं है. अगर आपने (रिटर्न) भरा है और इन्हें एफसीआरए अधिकारियों द्वारा किन्हीं कारणों से अपलोड नहीं किया गया है, तो कृपया इसके बारे में हमें अवगत कराएं.
- क्या हमें उन विदेशी कंपनियों की सूची मिल सकती है, जिन्होंने विज्ञापनों, कार्यक्रमों की स्पॉन्सरशिप आदि के रूप में इंडिया फाउंडेशन को पैसे दिए हैं? साथ ही निजी क्षेत्र की भारतीय कंपनियों के बारे मे भी हमें बताएं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर राजस्व का स्रोत रही हैं.
- क्या विदेशी कंपनियों से भुगतान हासिल करने की स्थिति में इंडिया फाउंडेशन कोई सर्विस कॉन्ट्रैक्ट करती है? अगर ऐसा है, तो इसकी एक सैंपल कॉपी दें.
- राजस्व के मोर्चे पर हम सम्मेलनों/आयोजनों/जर्नल के लिए विज्ञापन और कॉरपोरेट स्पॉन्सरशिप मिलने की बात समझ सकते हैं, लेकन रोजाना का खर्चों, जैसे परिसर का किराया, कर्मचारियों के वेतन आदि के लिए पैसे कहां से आते हैं?
- क्या आप या राम माधव इंडिया फाउंडेशन से कोई वेतन या किसी और रूप में मेहनताना लेते हैं?
- क्या आप यह बात सकते हैं कि इंडिया फाउंडेशन का वार्षिक बजट क्या है? और क्या आप पारदर्शिता के हक में इसके हालिया ऑडिट किए गए वित्तीय विवरण (फाइनेंशियल स्टेटमेंट) को हमसे साझा सकते हैं?
- क्या इंडिया फाउंडेशन को 12एए और 80 जी लाइसेंस हासिल है?
- क्या इंडिया फाउंडेशन की साइट पर दी गई निदेशकों की सूची वर्तमान समय की है या नए निदेशकों ने पद ग्रहण किया है या इनमें से किसी ने अपना पद छोड़ा है?
- अगर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों, मंत्रालयों आदि से कोई चंदा/योगदान मिला है, तो इसे हमारे साथ साझा कीजिए.
बुधवार 1 नवंबर को रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण को भी एक प्रश्नावली, साथ ही उनके मंत्रालय के अधिकारी को इसकी प्रतियां भेजी गईं. इसका भी कोई जवाब नहीं मिला.
रक्षा मंत्री और इंडिया फाउंडेशन की निदेशक निर्मला सीतारमण से पूछे गए सवाल:
- इंडिया फाउंडेशन के राजस्व के स्रोत क्या हैं?
- बोइंग और डीबीएस जैसी विदेशी कंपनियां इंडिया फाउंडेशन के आयोजनों के प्रायोजक रहे हैं और शायद अब भी आयोजनों को प्रायोजित करते हैं. क्या आप यह स्वीकार करेंगी कि आपके एक फाउंडेशन के निदेशक के तौर पर काम करने में हितों के टकराव का मामला बनता है, क्योंकि यह फाउंडेशन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विदेशी कंपनियों से पैसे लेता है. यह बात इसलिए और खास हो जाती है, क्योंकि ये वैसी विदेशी कंपनियां हैं, जिनका सरोकार उन मंत्रालयों से है, जो आपके जिम्मे रहे हैं, जैसे उद्योग एवं वाणिज्य और अब रक्षा.
- आप इंडिया फाउंडेशन की निदेशक हैं, जिसे रजिस्ट्रेशन नंबर 231661683 से एफसीआरए क्लीयरेंस मिली है, जिसका आखिरी नवीकरण 6/06/2017 को हुआ. यह स्पष्ट नहीं है कि क्या इंडिया फाउंडेशन को इससे पहले एफसीआरए रजिस्ट्रेशन मिला हुआ था, क्योंकि अनिवार्य एफएसी रिटर्न का प्रबंधन करनेवाली एफसीआरए वेबसाइट पर पिछले चार वित्तीय वर्षों (यानी 2013-14, 2014-15, 2015-16 और 2016-17) में इसके नाम से कोई रिटर्न भरा हुआ नहीं दिखता. क्या आप हमें बता सकती हैं कि इंडिया फाउंडेशन कब एफसीआरए के तहत रजिस्टर्ड हुआ था?
- अगर इंडिया फाउंडेशन ने हाल ही में पहली बार एफसीआरए रजिस्ट्रेशन हासिल किया है, तो क्या इससे पहले के वर्षों में विदेशी कंपनियों से इसका योगदान प्राप्त करना एफसीआरए के तहत कानूनी था?
- एफसीआरए- विधायिका, सरकारी नौकरों और राजनीतिक पार्टियों के अधिकारियों पर विदेशी योगदान प्राप्त करने से प्रतिबंध लगाता है. हमें जानकारी है कि कम से कम दो विदेशी कंपनियां, जो कि एफसीआरए के दायरे में आती हैं- बोइंग और डीबीएस, ने इंडिया फाउंडेशन द्वारा आयोजित कार्यक्रमों को प्रायोजित किया और उनके द्वारा दिया गया पैसा सीधे तौर पर एफसीआरए के तहत ‘विदेशी योगदान’ की श्रेणी में आएगा. चूंकि आप इंडिया फाउंडेशन की निदेशक भी हैं और एक सांसद और मंत्री भी हैं, ऐसे में क्या आपने एक निदेशक के तौर पर विदेशी योगदान स्वीकार करके, एफसीआरए का उल्लंघन नहीं किया है?
- क्या भविष्य में, जब तक आप एक सांसद/ या एक लोकसेवक हैं, इंडिया फाउंडेशन को विदेशी योगदान एफसीआरए का उल्लंघन नहीं माना जाएगा?
(संक्षिप्तता के लिए कुछ सवालों को संपादित किया गया है)
सुरेश प्रभु, जयंत सिन्हा और एमजे अक़बर को भी ऐसे ही सवालों का एक सेट 1 नवंबर को भेजा गया. इन तीनों में से किसी ने जवाब देना मुनासिब नहीं समझा. 2 नवंबर को एक संक्षिप्त प्रश्नावली प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा को भी भेजी गई.
सभी छह निदेशकों को जवाब देने के लिए पूरा तीन कामकाजी दिन देने के बाद द वायर ने शुक्रवार, 3 नवंबर को 7:30 बजे शाम को इंडिया फाउंडेशन के मामले में हितों के साफ-साफ टकराव पर अपनी यह रिपोर्ट अंग्रेज़ी में प्रकाशित की.
इस रिपोर्ट के लिए पब्लिक डोमेन में मौजूद सूचनाओं, साथ ही इंडिया फाउंडेशन की वेबसाइट और उसके ही ब्राॅशरों (विवरणिकाओं), गृह मंत्रालय द्वारा चलाई जानेवाली एफसीआरए वेबसाइट, शौर्य डोभाल की जेमिनी फाइनेंशियल सर्विसेज की वेबसाइट, 30 अक्टूबर को शौर्य डोभाल द्वारा स्वाति चतुर्वेदी को भेजे गए संक्षिप्त संक्षिप्त जवाबों और उनके द्वारा इकोनॉमिक टाइम्स को दिए गए पहले के एक इंटरव्यू से मिलने वाली सूचनाओं का इस्तेमाल किया गया.
और इसके साथ ही द वायर ने इंडिया फाउंडेशन के निदेशक के तौर पर मंत्रियों के काम करने में हितों के टकराव को लेकर एक पूर्व रक्षा सचिव और एक पूर्व कैबिनेट सचिव के विचारों को भी इसमें जोड़ा.
4 नवंबर को यानी द वायर की रिपोर्ट के प्रकाशित होने के पूरे 24 घंटों के बाद, इंडिया फाउंडेशन ने अपने होमपेज पर ‘द वायर की रिपोर्ट का जवाब’ पोस्ट किया. यह थोड़ा अजीब है कि न ही डोभाल और न ही इंडिया फाउंडेशन ने इस ‘जवाब’ के बारे में द वायर या स्वाति चतुर्वेदी को कुछ बताया.
शौर्य डोभाल के नाम से लिखा गया यह पूरा जवाब यह है:
फाउंडेशन और इसके निदेशकों के बीच हितों के टकराव की ओर इशारा करने वाला ‘द वायर’ में प्रकाशित स्वाति चतुर्वेदी का लेख बेबुनियाद है.
यह रिपोर्ट अनुमान पर आधारित है और साफ तौर पर इसका इरादा एक ऐसी जगह पर कुछ गलत काम किए जाने का आभास देना है, जहां ऐसा कुछ नहीं है. इसका स्वर नुकसान पहुंचाने की दुर्भावना से भरा हुआ है और अटकलबाजी के अलावा इसका कोई आधार नहीं है. इंडिया फाउंडेशन इन अटकलबाजियों और परोक्ष उक्तियों की निंदा करता है, जिसका इस्तेमाल इसकी विरासत, प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता पर हमला करने के लिए किया गया है.
इंडिया फाउंडेशन एक शीर्ष संस्थान है, जिसका ट्रैक रिकॉर्ड 2009 से राष्ट्र निर्माण और देश की क्षमताओं को लेकर सांस्कृतिक और सामाजिक जागरूता के निर्माण के क्षेत्र में सतत रूप से काम करने का रहा है. संबंधित निदेशक, मंत्री या यहां तक कि संसद सदस्य बनने से भी काफी पहले से इंडिया फाउंडेशन से जुड़े रहे हैं.
एक लोकतंत्र में विचारों के आदान प्रदान और विकास के लिए मंच मुहैया करानेवाले थिंक टैंक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. इंडिया फाउंडेशन पहले यह स्पष्ट कर चुका है कि लॉबीइंग इसके एजेंडे का न हिस्सा है, न कभी था. लॉबीइंग, जो इस देश के लिए अभिशाप रहा है, अंधेरे और चोर दरवाजों के भीतर की जानेवाली चीज है, न कि सार्वजनिक मंचों पर.
यह स्पष्टीकरण दिया जाता है और फिर से दोहराया जाता है कि:
- फाउंडेशन ने कभी भी किसी से ओवरसीज़ निजी कॉर्पोरेशन या व्यक्ति से कोई विदेशी फंडिंग प्राप्त नहीं की है.
- फाउंडेशन और इसके निदेशकों ने किसी देशी या विदेशी कंपनी के व्यावसायिक या निजी हितों को आगे नहीं बढ़ाया है. इसकी बैठकों का एजेंडा संस्कृति, भू-राजनीति और मैक्रो-इकोनॉमिक्स के विषयों, जैसे भारत में निवेश का माहौल और उत्तर-पूर्व का विकास, से संबंधित होता है.
- फाउंडेशन सारी कानूनी योग्यताओं को पूरा करता है और फाउंडेशन की गतिविधियां, जो कि पूरी तरह से सार्वजनिक और पारदर्शी हैं, अपने चार्टर का निष्ठापूर्वक पालन करती हैं.
शौर्य डोभाल
निदेशक, इंडिया फाउंडेशन
जिन्होंने भी द वायर की मूल रिपोर्ट पढ़ी है, उन्हें यह सहज ही दिखेगा कि शौर्य डोभाल की प्रतिक्रिया, जितने जवाब देती, उससे ज्यादा सवाल खड़े करती है.
‘अदृश्य’ प्रायोजक
इंडिया फाउंडेशन की अपनी प्रचार सामग्री की तस्वीरों में साफतौर पर बोइंग और डीबीएस को हिंद महासागर वाले आयोजन के प्रायोजक के तौर पर दिखाया गया है. जबकि मागल को स्मार्ट बॉर्डर मैनेजमेंट वाले आयोजन के प्रायोजक के तौर पर दिखाया गया है. डोभाल द्वारा दिए जानेवाले संभावित बचाव का अनुमान लगाते हुए, स्वाति चतुर्वेदी की मूल रिपोर्ट में उन फोटोग्राफों को पुनर्प्रस्तुत कर दिया गया था, जिनमें मंच पर उनके नाम लिखे दिख रहे थे और यह जोड़ा गया था कि ‘‘हालांकि इस स्पॉन्सरशिप की प्रकृति- यानी कितना पैसा दिया गया और किसे दिया गया, इंडिया फाउंडेशन या किसी ‘पार्टनर’ को- इसकी जानकारी नहीं है.’’
अगर डोभाल के इस बयान को कि ‘फाउंडेशन द्वारा किसी विदेशी निजी कॉर्पोरेशन या व्यक्ति से कभी कोई विदेशी फंडिंग हासिल नहीं की गई है,’ को सच माना जाए, तो इसका अर्थ यह हुआ कि बोइंग, डीबीएस और मागल का नाम भले ‘प्रायोजकों’ के तौर पर दिखाया गया हो, लेकिन वास्तव में उन्होंने कोई स्पॉन्सरशिप नहीं दी थी, या उनके द्वारा की गई विदेशी फंडिंग को इंडिया फाउंडेशन ने नहीं बल्कि किसी पार्टनर संस्थान ने प्राप्त किया था. दोनों ही परिस्थितियों में फाउंडेशन को यह स्पष्टीकरण देने की जरूरत है कि इसने किस रूप में स्पॉन्सरशिप ली.
चूंकि गृह मंत्रालय और सीबीआई ने फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (एफसीआरए) के कथित उल्लंघन के आरोपों को लेकर मोदी सरकार के आलोचकों द्वारा चलाए जानेवाले गैर सरकारी संगठनों की जांच की है, इसलिए न्यायपूर्ण और उचित यही होता कि इंडिया फाउंडेशन के खातों, खासकर इसके आयोजनों की जांच कराई जाए. सिर्फ जांच के द्वारा ही, आदर्श रूप में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में, यह स्थापित किया जा सकता है कि यह पूरी तरह से कानूनी है या नहीं!
एफसीआरए का रहस्य
डोभाल का जवाब इस तथ्य से बचकर निकल जाता है कि इंडिया फाउंडेशन ने जून, 2017 में गृह मंत्रालय में एफसीआरए सर्टिफिकेट (नं. 231661683) के लिए आवेदन किया और इसी महीने उसे यह सर्टिफिकेट हासिल हुआ. चूंकि कोई एनजीओ विदेशी निजी कॉर्पोरेशनों, व्यक्तियों और सरकारों और संस्थानों से विदेशी चंदा प्राप्त करने के लिए एफसीआरए सर्टिफिकेट के लिए आवेदन करता है, इसलिए यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि भले, जैसा कि डोभाल का दावा है, फाउंडेशन ने आज तक विदेशी चंदा प्राप्त न किया हो, लेकिन भविष्य में इसका ऐसा करने का इरादा जरूर है.
इसलिए डोभाल का खंडन, एक मंत्रियों के निदेशकों के तौर पर काम करने से जुड़े हितों के टकराव के मामले को और तीखे रूप में सामने लाता है, क्योंकि वे एक ऐसे फाउंडेशन के निदेशक हैं, जिसने विदेशी कॉर्पोरेशनों और दूसरी इकाइयों से चंदा लेने की तैयारी की है, जिनके बारे में पूरी संभावना है कि भारत सरकार के साथ उनका लेन-देन है.
हितों के इस वास्तविक टकराव पर डोभाल का जवाब बस इतना है: ‘संबंधित निदेशक, मंत्री या यहां तक कि संसद सदस्य बनने से भी काफी पहले से इंडिया फाउंडेशन से जुड़े रहे हैं.’
नैतिकता की कसौटी पर फेल
ऐसे में जब हितों का टकराव बिल्कुल प्रकट हो, पहले से जुड़ाव को किसी भी तरह से मामले को कमजोर करने वाली स्थिति नहीं कहा जा सकता है. एक तथ्य यह है कि खुद सरकार और कुछ संबंधित मंत्री इस विवाद से वाकिफ थे.
आउटलुक पत्रिका में 24 नवंबर, 2014 की एक रिपोर्ट से यह स्पष्ट है, जिसमें यह कहा गया था कि ‘इन अटकलों के बीच कि फाउंडेशन में निदेशक का पद एक लाभ का पद हो सकता है, मंत्री पद संभालने के बाद निर्मला सीतारमण ने निदेशक मंडल से इस्तीफा दे दिया है.’
आउटलुक ने या तो जल्दबाजी कर दी या सीतारमण ने अपना इरादा बदल दिया; बहरहाल मामला जो भी रहा हो, मंत्रियों का एक ऐसे थिंक टैंक में बतौर निदेशक काम करने को किसी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता, जो ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करता है, जिनमें सरकारी नीतियों पर कॉरपोरेट प्रायोजकों के साथ विचार-विमर्श होता है- भले ये प्रायोजक विदेशी होने की जगह भारतीय ही हों.
(हम एक बार फिर शौर्य डोभाल की बात को ही सच मान लेते हैं). औचित्य का तकाजा यही है कि निदेशकों को मंत्री बनने के साथ ही निदेशक पद से इस्तीफा दे देना चाहिए था.
डोभाल की यह बात सही है कि थिंक टैंक किसी लोकतंत्र में अहम भूमिका निभाते हैं. इंडिया फाउंडेशन को भी ऐसी भूमिका निभाने का हक है. लेकिन, मंत्रियों की इसमें बतौर निदेशक उपस्थिति, खुद उनकी एक बड़ी फाइनेंशियल फर्म में बतौर पार्टनर भूमिका (जिनके क्लाइंटों को भी शायद ‘विचारों के आदान-प्रदान और विकास के मंच’ को करीब से देखने का मौका मिलता हो), जिसे वे साथ-साथ चलाते हैं और थिंक-टैंक के हिसाब-किताब में पारदर्शिता की भारी कमी को देखते हुए, शौर्य डोभाल को यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि मीडिया इससे जुड़े हितों के टकराव के विषय पर आंखें मूंदे रहेगा.
यह विचार की इंडिया फाउंडेशन किसी अन्य थिंक टैंक के समान है, का खंडन और किसी ने नहीं राम माधव ने किया था, जब उन्होंने 2015 में दिल्ली के एक आयोजन में गर्व के साथ कहा था कि ‘यह मत समझिए कि यह (इंडिया फाउंडेशन का कार्यक्रम) कोई पर्दे के पीछे की कोशिश या ट्रैक-2 है. ये मेलजोल सरकारी मुलाकातों की तरह की महत्वपूर्ण है और सरकार इसे काफी गंभीरता के साथ लेती है.’
शौर्य डोभाल कम से कम, 2014 के बाद से इंडिया फाउंडेशन के राजस्व और खर्च की पूरी घोषणा के साथ एक शुरुआत कर सकते हैं और इस बात का स्पष्टीकरण दे सकते हैं कि अगर फाउंडेशन की विदेशी फंडिंग में कोई दिलचस्पी नहीं है तो आखिर क्यों उन्होंने एफसीआरए के लिए आवेदन किया और उसे हासिल भी किया.
इकोनॉमिक टाइम्स के अपने इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, ‘हम स्पॉन्सरशिप उगाहते हैं और कई स्रोतों से चंदा हासिल करते हैं.’ कुछ नहीं, तो उन्हें कम से कम और खासकर मंत्रियों की बतौर निदेशक उपस्थिति के मद्देनजर, ये उजागर करना चाहिए कि चंदा देनेवाले और स्पॉन्सरशिप देनेवाले कौन हैं और उनके द्वारा दी जानेवाली सहयोग की राशि आखिर कितनी है?
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