एक सवाल के जवाब में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री रामदास अठावले ने राज्यसभा को सूचित किया कि इन 308 लोगों में से सबसे अधिक 52 मौतें तमिलनाडु में हुईं. इसके बाद उत्तर प्रदेश में 46 और हरियाणा में 40 लोगों की मौत सीवर सफाई के दौरान दर्ज की गई हैं.
नई दिल्ली: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने बुधवार को राज्यसभा को सूचित किया कि 2018 से 2022 के बीच सीवर और सेप्टिक टैंक में 308 लोगों की मौत हुई है. तमिलनाडु में सबसे अधिक 52, इसके बाद उत्तर प्रदेश में 46 और हरियाणा में 40 लोगों की मौत के मामले सामने आए हैं.
सरकार के अनुसार, इसके अलावा महाराष्ट्र में 38, दिल्ली में 33, गुजरात में 23 और कर्नाटक में 23 लोगों की मौत सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हुई है.
सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने एक लिखित उत्तर में राज्यसभा को बताया कि मैन्युअल सफाई के स्थान पर मशीनीकृत सफाई के तरीकों को अपनाने के लिए किए जा रहे उपायों के तहत राष्ट्रीय यंत्रीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी कार्य योजना (नमस्ते) तैयार की गई है.
उनके अनुसार, इस योजना के तहत उद्देश्य सीवर/सेप्टिक टैंक श्रमिकों की पहचान करना, उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने के अलावा पीपीई किट का वितरण करना और सुरक्षा उपकरणों के लिए सहायता प्रदान करना है. इसमें उन्हें आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत स्वास्थ्य बीमा लाभ जैसे कल्याणकारी लाभों से भी जोड़ना शामिल है.
उन्होंने यह भी कहा कि देश के सभी शहरी स्थानीय निकायों में ‘नमस्ते’ का विस्तार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.
मंत्री ने कहा, ‘कार्य योजना सफाई कर्मचारियों को सफाई से संबंधित उपकरणों की खरीद के लिए धन सहायता और सब्सिडी (पूंजी+ब्याज) प्रदान करके मशीनीकरण और उद्यम विकास को बढ़ावा देगी.’
मालूम हो कि बीते एक फरवरी को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा की गई बजट घोषणाओं में मशीन से सीवर सफाई करने की बात कही गई थी. उन्होंने कहा था कि सफाई को ‘मैनहोल टू मशीनहोल’ मोड में लाया जाएगा. साथ ही कहा था कि सीवर में गैस से होने वाली मौतों को रोकने के लिए शहरी स्वच्छता में मशीनों के उपयोग पर ध्यान दिया जाएगा.
देश में पहली बार 1993 में मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था. हालांकि आज भी समाज में मैला ढोने की प्रथा मौजूद है.
मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर किसी विषम परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है. हालांकि इन नियमों के लगातार उल्लंघन के चलते आए दिन सीवर सफाई के दौरान श्रमिकों की जान जाती है.
27 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत सरकार मामले में आदेश दिया था कि साल 1993 से सीवरेज कार्य (मैनहोल, सेप्टिक टैंक) में मरने वाले सभी व्यक्तियों के परिवारों की पहचान करें और उनके आधार पर परिवार के सदस्यों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान किया जाए.