एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जून 2012 से मार्च 2021 के बीच देशभर में सरकार द्वारा 518 बार इंटरनेट को बंद किया गया. यह दुनिया में इंटरनेट ब्लॉक करने का सबसे ऊंचा आंकड़ा है. हालांकि, दूरसंचार विभाग और गृह मंत्रालय के पास इन आंकड़ों की पुष्टि का कोई तंत्र नहीं है. उनके पास राज्यों द्वारा इंटरनेट को बंद करने आदेशों का कोई ब्योरा नहीं है.
नई दिल्ली: संसद की एक समिति ने बार-बार इंटरनेट को बंद करने के मामलों पर चिंता जाहिर करते हुए दूरसंचार विभाग की खिंचाई की है. समिति ने कहा है कि दूरसंचार विभाग ने इंटरनेट को बंद करने संबंधी (शटडाउन) मामलों का कोई ब्योरा नहीं रखा और साथ ही उसकी कई सिफारिशों पर कदम नहीं उठाया.
संचार और सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी समिति ने बृहस्पतिवार को लोकसभा में ‘दूरसंचार और इंटरनेट सेवाओं का निलंबन और उसके प्रभाव’ पर रिपोर्ट लोकसभा में रखी.
समिति ने दूरसंचार विभाग से कहा है कि वह गृह मंत्रालय के साथ मिलकर इंटरनेट को बंद करने के बाद उसे हटाने की प्रक्रिया पर काम करे.
समिति ने ‘शटडाउन’ का लेखा-जोखा नहीं रखने पर दूरसंचार विभाग और गृह मंत्रालय के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि वह यह नहीं बोल सकता कि ‘पुलिस और कानून व्यवस्था सरकार के विषय हैं और इंटरनेट का निलंबन अपराध के दायरे में नहीं आता है.
समिति ने कहा कि इंटरनेट शटडाउन के सभी मामलों का केंद्रीयकृत डाटाबेस दूरसंचार विभाग, गृह मंत्रालय के पास उसी तर्ज पर रखा जाना चाहिए, जैसे गृह मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) अपराधों पर नियमित आधार पर सूचना जुटाता है. इनमें सांप्रदायिक दंगे भी शामिल हैं.
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जून 2012 से मार्च 2021 के बीच देशभर में सरकार द्वारा 518 बार इंटरनेट को बंद किया गया. यह दुनिया में इंटरनेट को ब्लॉक करने का सबसे ऊंचा आंकड़ा है.
हालांकि, दूरसंचार विभाग और गृह मंत्रालय के पास इन आंकड़ों की पुष्टि का कोई तंत्र नहीं है. उनके पास राज्यों द्वारा इंटरनेट को बंद करने आदेशों का कोई ब्योरा नहीं है.
समिति ने दूरसंचार विभाग और गृह मंत्रालय को जल्द से जल्द देशभर में इंटरनेट बंद करने के आदेशों के केंद्रीकृत डाटाबेस तैयार करने का निर्देश दिया है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, समिति ने दूरसंचार विभाग को उन समीक्षा समितियों का विस्तार करने की सिफारिश की, जो दूरसंचार निलंबन नियम, 2017 के तहत दूरसंचार सेवाओं के निलंबन के आदेश की समीक्षा करती हैं.
समिति विभाग के जवाब से हैरान है और विषय के इतने महत्वपूर्ण पहलू पर विभाग के उदासीन रवैये की निंदा करती है.
समिति ने कहा, ‘इसलिए, समिति विभाग से दृढ़ता से आग्रह करती है कि भारत सरकार द्वारा एक गहन अध्ययन किया जाए ताकि अर्थव्यवस्था पर इंटरनेट शटडाउन के प्रभाव का आकलन किया जा सके और सार्वजनिक आपातकाल और सार्वजनिक सुरक्षा से निपटने में इसकी प्रभावशीलता का भी पता लगाया जा सके.’
समिति ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि निलंबन नियमों के तहत जारी किए गए इंटरनेट को निलंबित करने के किसी भी आदेश को आनुपातिकता के सिद्धांत (Principle of Proportionality) का पालन करना चाहिए. संशोधित निलंबन नियम, 2017 के अनुसार, इन नियमों के तहत जारी कोई भी आदेश 15 दिनों से अधिक समय तक लागू नहीं रहेगा.
मालूम हो कि अप्रैल 2022 में डिजिटल अधिकार एडवोकेसी समूह ‘एक्सेस ग्रुप’ द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट से पता चला था कि भारत सरकार ने 2021 में कम से कम 106 बार इंटरनेट सेवा को बाधित किया था. इस तरह इंटरनेट शटडाउन को लेकर भारत लगातार चौथे साल दुनिया का सबसे बड़ा उल्लंघनकर्ता बन गया था.
इस रिपोर्ट में इकट्ठा किए गए डेटा से पता चलता है कि दुनियाभर के 34 देशों में लगभग 182 बार इंटरनेट को बाधित किया गया, जो 2020 की तुलना में थोड़ा अधिक है. साल 2020 में 29 देशों में 159 बार इंटरनेट शटडाउन किया गया था.
रिपोर्ट में कहा गया था, ‘भारत के बाद 2021 में म्यांमार ने सबसे अधिक बार इंटरनेट शटडाउन किया. इस दौरान 15 बार इंटरनेट को बंद किया गया. इसके बाद सूडान और ईरान में पांच-पांच बार इंटरनेट को बाधित किया गया. बीते पांच साल में हमारे द्वारा दर्ज दस्तावेज से पता चलता है कि देश की राजनीतिक स्थिति को प्रभावित करने वाले कार्यक्रमों जैसे चुनाव, प्रदर्शन आदि के दौरान इंटरनेट को सबसे अधिक बार बाधित किया गया.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)