अडानी समूह को लेकर हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट पर मचे विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निवेशकों के हितों को बाज़ार के उतार-चढ़ाव से बचाने की ज़रूरत है. अदालत ने बाज़ार नियामक तंत्र को मज़बूत करने के लिए केंद्र से एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में क्षेत्र के विशेषज्ञों की एक समिति के गठन पर विचार करने के लिए भी कहा है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत तंत्र होना चाहिए कि शेयर बाजार में भारतीय निवेशकों के हितों की रक्षा हो. इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने नियामक तंत्र को मजबूत करने के लिए केंद्र से एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में क्षेत्र के विशेषज्ञों की एक समिति के गठन पर विचार करने के लिए कहा.
न्यायालय ने इसके अलावा अडानी समूह के शेयर मूल्य के ‘कृत्रिम तौर पर गिरने’ और निर्दोष निवेशकों के शोषण का आरोप लगाने वाली जनहित याचिकाओं पर केंद्र और बाजार नियामक सेबी से अपना पक्ष रखने को कहा.
यह देखते हुए कि शेयर बाजार ऐसी जगह नहीं है, जहां सिर्फ बड़े निवेशक निवेश करते हैं, अदालत ने कहा कि बदलते वित्तीय और कर व्यवस्था के साथ निवेश ‘मध्यम वर्ग द्वारा व्यापक रूप से’ किया जा रहा है.
अदालत ने कहा कि कुछ खबरों के अनुसार हाल ही में अडानी के शेयरों में भारी गिरावट के कारण भारतीय निवेशकों को हुआ कुल नुकसान कई लाख करोड़ रुपये का है.
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने आशंका को दूर किया और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के अधिकारियों को यह बताने के लिए कहा कि यह किसी भी संदिग्ध व्यक्ति की तलाश की योजना नहीं बना रहा है.
पीठ में जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला भी शामिल थे. पीठ ने आधुनिक समय में निर्बाध पूंजी प्रवाह वाले बाजार में निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए नियामक तंत्र को मजबूत बनाने सहित विभिन्न मुद्दों पर वित्त मंत्रालय और अन्य से जानकारी मांगी.
पीठ ने कहा, ‘यह सिर्फ एक खुला संवाद है. वे कोर्ट के सामने मामला लेकर आए हैं. चिंता का विषय यह है कि हम भारतीय निवेशकों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित करते हैं? यहां जो हुआ वह शॉर्ट-सेलिंग था. संभवत: इसकी जांच सेबी भी कर रहा है. कृपया अपने अधिकारियों को भी बताएं कि हम किसी संदिग्ध व्यक्ति की तलाश करने की योजना नहीं बना रहे हैं.’
उसने कहा, ‘हम कैसे सुनिश्चित करें कि भविष्य में हमारे पास मजबूत तंत्र है? क्योंकि आज पूंजी भारत से निर्बाध रूप से आ-जा रही है. हम भविष्य में कैसे सुनिश्चित करें कि भारतीय निवेशक सुरक्षित हैं? हर कोई अब बाजार में है.’
न्यायालय ने कहा, ‘हम कैसे सुनिश्चित करेंगे कि वे सुरक्षित हैं? हम कैसे सुनिश्चित करेंगे कि भविष्य में यह नहीं होगा? हम सेबी के लिए किस भूमिका की परिकल्पना करते हैं? उदाहरण के लिए एक अलग संदर्भ में आपके पास सर्किट ब्रेकर हैं.’
पीठ ने निवेशकों की सुरक्षा के लिए मजबूत नियामक तंत्र को लागू करने के अलावा एक विशेषज्ञ समिति का प्रस्ताव रखा जिसमें प्रतिभूति क्षेत्र, अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग क्षेत्र के विशेषज्ञ और एक पूर्व न्यायाधीश के रूप में बुद्धिमान मार्गदर्शक व्यक्ति शामिल हो सकते हैं.
सेबी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि बाजार नियामक और अन्य वैधानिक निकाय आवश्यक कार्रवाई कर रहे हैं.
अदालत ने कहा कि वह ‘सिर्फ विचार कर रही है’ और मामले के गुणदोष पर कोई टिप्पणी नहीं कर रही है, क्योंकि शेयर बाजार आमतौर पर भावनाओं पर चलते हैं.
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, ‘हमने सॉलिसिटर जनरल को यह सुनिश्चित करने के संबंध में चिंताओं का संकेत दिया है कि देश के भीतर नियामक तंत्र को विधिवत रूप से मजबूत किया जाए, ताकि भारतीय निवेशकों को कुछ अस्थिरता से बचाया जा सके, जैसा कि हाल के दो हफ्तों में देखा गया है.’
पीठ ने कहा कि इसके लिए मौजूदा नियामक ढांचे के उचित मूल्यांकन और निवेशकों के हित में नियामक ढांचे को मजबूत करने तथा प्रतिभूति बाजार के स्थिर संचालन की आवश्यकता होगी.
न्यायालय ने कहा, ‘हमने सॉलिसिटर जनरल को भी सुझाव दिया है कि क्या वे (केंद्र, सेबी और अन्य) समिति के सुझाव को स्वीकार करने के इच्छुक हैं. यदि भारत संघ सुझाव को स्वीकार करने के लिए इच्छुक है, तो समिति के गठन पर आवश्यक प्रतिवेदन मांगे जा सकते हैं.’
पीठ ने शीर्ष विधि अधिकारी को सुनवाई की अगली तारीख 13 फरवरी को विचार-विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए तथ्यात्मक और कानूनी दोनों पहलुओं पर एक संक्षिप्त नोट देने को कहा.
विधि अधिकारी ने आश्वस्त किया कि सेबी स्थिति पर करीबी नजर रख रही है.
पीठ ने कहा, ‘हम स्पष्ट करते हैं कि उपरोक्त का सेबी या किसी वैधानिक प्राधिकरण द्वारा अपने वैधानिक कार्यों के उपयुक्त निर्वहन पर कोई प्रभाव नहीं है.’
न्यायालय ने फिर उन दो जनहित याचिकाओं को 13 फरवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया, जिनमें हिंडनबर्ग रिपोर्ट में जांच समेत कई राहत की मांग की गई है.
वकील विशाल तिवारी द्वारा दायर एक जनहित याचिका में हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट की जांच के लिए शीर्ष अदालत के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में एक समिति गठित करने का केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है. रिपोर्ट में उद्योगपति गौतम अडानी के नेतृत्व वाले समूह की कंपनियों के खिलाफ कई आरोप लगाए गए हैं.
वकील एमएल शर्मा ने एक अन्य याचिका दायर की थी, जिसमें अमेरिका की वित्तीय शोध कंपनी ‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ के नाथन एंडरसन और भारत तथा अमेरिका में उनके सहयोगियों के खिलाफ कथित रूप से निर्दोष निवेशकों का शोषण करने और अडानी समूह के शेयर के मूल्य को ‘कृत्रिम तरीके’ से गिराने के लिए मुकदमा चलाने की मांग की गई थी.
शर्मा ने ‘शॉर्ट सेलिंग’ को निवेशकों के खिलाफ अपराध घोषित करने का निर्देश देने की मांग की, जिसे सेबी अधिनियम के प्रावधानों के साथ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420 (धोखाधड़ी) के तहत अपराध घोषित किया जाए.
‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ द्वारा अडानी समूह पर फर्जी लेन-देन और शेयर की कीमतों में हेरफेर सहित कई गंभीर आरोप लगाए जाने के बाद समूह की कंपनियों के शेयर की कीमतों में भारी गिरावट देखी गई.
अडानी समूह ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि वह सभी कानूनों और सूचना सार्वजनिक करने संबंधी नीतियों को पालन करता है.
मालूम हो कि अमेरिकी निवेश अनुसंधान फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे, जिसके बाद समूह की कंपनियों के शेयरों में पिछले कुछ दिन में भारी गिरावट आई है. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है.
रिपोर्ट सामने आने के बाद अडानी समूह ने बीते 26 जनवरी को कहा था कि वह अपनी प्रमुख कंपनी के शेयर बिक्री को नुकसान पहुंचाने के प्रयास के तहत ‘बिना सोचे-विचारे’ काम करने के लिए हिंडनबर्ग रिसर्च के खिलाफ ‘दंडात्मक कार्रवाई’ को लेकर कानूनी विकल्पों पर गौर कर रहा है.
इसके जवाब में हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा था कि वह अपनी रिपोर्ट पर पूरी तरह कायम है. कंपनी ने यह भी कहा था कि अगर अडानी समूह गंभीर है, तो उसे अमेरिका में भी मुकदमा दायर करना चाहिए, जहां हम काम करते हैं. हमारे पास कानूनी प्रक्रिया के दौरान मांगे जाने वाले दस्तावेजों की एक लंबी सूची है.
इसके बाद बीते 30 जनवरी को अडानी समूह ने हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों के जवाब में 413 पृष्ठ का ‘स्पष्टीकरण’ जारी किया था. अडानी समूह ने इन आरोपों के जवाब में कहा था कि यह हिंडनबर्ग द्वारा भारत पर सोच-समझकर किया गया हमला है. समूह ने कहा था कि ये आरोप और कुछ नहीं सिर्फ ‘झूठ’ हैं.
समूह ने कहा था, ‘यह केवल किसी विशिष्ट कंपनी पर एक अवांछित हमला नहीं है, बल्कि भारत, भारतीय संस्थाओं की स्वतंत्रता, अखंडता और गुणवत्ता, तथा भारत की विकास गाथा और महत्वाकांक्षाओं पर एक सुनियोजित हमला है.’
अडानी समूह के इस जवाब पर पलटवार करते हुए हिंडनबर्ग समूह की ओर से बीते 31 जनवरी को कहा गया था कि धोखाधड़ी को ‘राष्ट्रवाद’ या ‘कुछ बढ़ा-चढ़ाकर प्रतिक्रिया’ से ढका नहीं जा सकता. भारत एक जीवंत लोकतंत्र और उभरती महाशक्ति है. अडानी समूह ‘व्यवस्थित लूट’ से भारत के भविष्य को रोक रहा है.
हिंडनबर्ग की ओर से कहा गया था, ‘हम असहमत हैं. स्पष्ट होने के लिए हम मानते हैं कि भारत एक जीवंत लोकतंत्र है और एक रोमांचक भविष्य के साथ एक उभरती हुई महाशक्ति है. हम यह भी मानते हैं कि भारत का भविष्य अडानी समूह द्वारा रोका जा रहा है, जिसने देश को व्यवस्थित रूप से लूटते हुए खुद को राष्ट्रवाद के आवरण में लपेट लिया है.’
हिंडनबर्ग रिसर्च ने प्रतिक्रिया में कहा कि धोखाधड़ी, धोखाधड़ी ही होती है चाहे इसे दुनिया के सबसे अमीर आदमी ने अंजाम क्यों न दिया हो.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अरबपति गौतम अडानी द्वारा नियंत्रित समूह की प्रमुख सूचीबद्ध कंपनियों के पास ‘पर्याप्त ऋण’ था, जिसने पूरे समूह को ‘अनिश्चित वित्तीय स्थिति’ में डाल दिया है.
साथ ही दावा किया गया था कि उसके दो साल के शोध के बाद पता चला है कि 17,800 अरब रुपये मूल्य वाले अडानी समूह के नियंत्रण वाली मुखौटा कंपनियां कैरेबियाई और मॉरीशस से लेकर यूएई तक में हैं, जिनका इस्तेमाल भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और कर चोरी को अंजाम देने के लिए किया गया.
इसके बाद बीते 1 फरवरी को अडानी एंटरप्राइजेज ने अपने 20 हजार करोड़ रुपये के फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) को वापस लेने और निवेशकों का पैसा लौटाने की घोषणा की थी. समूह द्वारा एफपीओ लाए जाने के दौरान ही हिंडनबर्ग की ओर से रिपोर्ट जारी की गई थी.
एफपीओ एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक कंपनी, जो पहले से ही एक एक्सचेंज में सूचीबद्ध है, निवेशकों या मौजूदा शेयरधारकों, आमतौर पर प्रमोटरों को नए शेयर जारी करती है. एफपीओ का उपयोग कंपनियां अपने इक्विटी आधार में विविधता लाने के लिए करती हैं.
एक कंपनी आईपीओ की प्रक्रिया से गुजरने के बाद एफपीओ लाती है, और इसके जरिये कंपनी जनता के लिए अपने अधिक शेयर उपलब्ध कराने या किसी ऋण का भुगतान करने या अपने लिए पूंजी जुटाने के लिए करती है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)