ग्राउंड रिपोर्ट: पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम के भ्रष्टाचार की कहानी भले ही पूरे देश में चर्चा का विषय रही है लेकिन छोटी काशी के नाम से मशहूर मंडी में उनके विरोधी भी उन्हें भ्रष्ट कहने से बचते नज़र आते हैं.
हिमाचल के सियासी नक़्शे में शिमला, मंडी और कांगड़ा तीन प्रमुख ध्रुव है. मंडी में विधानसभा की कुल 10 सीटें हैं. जिले में जब आप किसी से राजनीति पर बात करेंगे तो वह तीन बातें बताते हैं.
पहली बात कि हिमाचल की सत्ता की चाबी हमेशा मंडी के हाथ में रही है. कांग्रेस और भाजपा को सत्ता सुख तभी नसीब हुआ है, जब मंडी के मैदान में उसका प्रदर्शन बेहतर रहा हो.
यह अलग बात है कि राज्य का दूसरा सबसे बड़ा जिला होने के बाद भी मंडी से अभी किसी को मुख्यमंत्री की गद्दी नसीब नहीं हुई है. मुख्यमंत्री पद के लिए कभी उम्मीदवार रहे कर्ण सिंह, सुखराम और कौल सिंह को हमेशा भितरघात का ही सामना करना पड़ा.
दूसरी बात कि मंडी में कुल 81 मंदिर हैं, जिनकी संख्या वाराणसी (80) से 1 अधिक है. यह नगर अपने प्राचीन मंदिरों और उनमें की गई शानदार नक्काशियों के लिए मशहूर है. बताने वाले बताते हैं कि यह शहर बहुत ही खूबसूरत है लेकिन बात जब गाड़ियों के पार्किंग की हो तो कहते हैं कि विधानसभा चुनाव में पार्किंग की समस्या एक बड़ा मुद्दा है. शहर में गाड़ियों की पार्किंग के लिए आपको घंटों इंतजार करना पड़ सकता है.
तीसरी बात यह कि पूरे देश में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम की छवि भ्रष्ट नेता की है लेकिन मंडी के लोगों के लिए वो विकास पुरुष रहे हैं. यह अलग बात है कि 2007 से सुखराम सक्रिय राजनीति से दूर हैं लेकिन आज भी कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों के नेता उनके भ्रष्टाचार वाले एंगल पर खुलकर नहीं बोलते हैं.
इस बार वे अपने बेटे अनिल शर्मा के साथ भाजपा में शामिल हो गए हैं लेकिन सुखराम ने पिछले 20-25 सालों में जिस तरह से पार्टियां बदली है उससे शायद कांग्रेसी नेताओं को उम्मीद है कि वह उनकी पार्टी में वापस लौट सकते हैं. शायद मंडी के कांग्रेसी इसी कारण चुप हैं.
फिलहाल अगर बात मंडी विधानसभा की हो तो 1962 से पहली बार सुखराम ने यहां से जीत हासिल की थी. उसके बाद से सिर्फ दो बार को छोड़ दिया जाये तो सुखराम या फिर उनके बेटे ने इस सीट से जीत हासिल की है. दो बार इस परिवार से किसी ने चुनाव नहीं लड़ा था. मतलब पूरे हिमाचल प्रदेश में मंडी विधानसभा ही एक मात्र ऐसी सीट है, जहां अब तक एक ही परिवार राज करता आया है.
अब यही परिवार भाजपा में शामिल हो गया है. पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री पंडित सुखराम के बेटे अनिल शर्मा ने पिछले एक दशक से मंडी पर कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में कब्जा किया हुआ है. इस बार बस पार्टी बदल गई है. साथ ही बदल गया है भ्रष्टाचार को लेकर सुखराम का स्टैंड.
हाल ही में चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता सुखराम ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि कुछ साल पहले उनके मंडी स्थित आवास पर सीबीआई के छापे में मिला पैसा कांग्रेस के तत्कालीन कोषाध्यक्ष सीताराम केसरी का था, जिसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरभद्र सिंह ने साजिश के तहत उनके घर रखवाया था. उनसे कहा गया था कि यह पैसा सुरक्षा कारणों से उनके घर में रखवाया जा गया था.
उन्होंने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को ‘निरंकुश तानाशाह’ करार देते हुए कहा कि वह अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी की प्रतिष्ठा धूमिल करने के लिए कोई भी तरीका अपना सकते हैं.
सुखराम के भ्रष्टाचार के सवाल पर मंडी जिला कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता आकाश शर्मा कहते हैं, ‘सुखराम एक कद्दावर नेता रहे हैं. उन्होंने मंडी के विकास के लिए काम किया है लेकिन आप ये गौर करेंगे जब वो कांग्रेस पार्टी के साथ रहे तो सबसे ज्यादा विकास के काम हुए. यानी अगर सुखराम द्वारा किए गए विकास कार्यों की चर्चा आप करेंगे तो कांग्रेस पार्टी के बगैर संभव नहीं है.’
वहीं इस सवाल पर भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष महेश सिंह कहते हैं, ‘पंडित सुखराम एक वरिष्ठ नेता है. उन्हें पार्टी में शामिल करने का निर्णय शीर्ष नेतृत्व का है. हम शीर्ष नेतृत्व के इस फैसले का सम्मान करते हैं. जहां तक मंंडी के विकास की बात है तो सुखराम के योगदान को न तो भाजपा के नेता इनकार कर सकते हैं और न ही कांग्रेस के नेता इससे मना कर सकते हैं. उनकी यही छवि मंडी की जनता के बीच में हैं तो निस्संदेह उनके भाजपा में आने से पार्टी को फायदा मिलेगा. हम मंडी की सभी सीटों पर जीत की ओर बढ़ रहे हैं.’
कुछ ऐसी ही राय भाजपा के दूसरे नेता और कार्यकर्ता रखते हैं. एडवोकेट और भाजपा नेता विशाल ठाकुर कहते हैं, ‘सुखराम की छवि बड़े कद्दावर नेता की है. उनका साफ कहना है कि कांग्रेस के कुछ नेताओं ने उन्हें फंसाने का काम किया था. मंडी की जनता उनकी बात से सहमत है. देश की संचार क्रांति को बढ़ावा देने का काम उन्होंने किया था. मंडी के विकास के लिए उन्होंने कई काम किए हैं. उनकी वास्तविक छवि से मंडी की जनता भलीभांति वाकिफ है. इसका फायदा भाजपा को मिलता है.’
वहीं, मंडी के वरिष्ठ पत्रकार पकंज पंडित कहते हैं, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक तरफ हिमाचल की सरकार को जमानती सरकार कहा है तो दूसरी तरफ भ्रष्टाचार की छवि वाले सुखराम को पार्टी में शामिल कर लेते हैं. यहां मंडी में सुखराम में विकास के कुछ कार्य करवाए हैं इसलिए उनकी एक इमेज हैं. वैसे मंडी में ही नहीं हिमाचल प्रदेश में भ्रष्टाचार इस विधानसभा चुनाव में कोई खास मुद्दा नहीं है.’
भ्रष्टाचार हिमाचल चुनाव या कहें मंडी में क्यों बड़ा मुद्दा नहीं हैं इसके जवाब में दूरदर्शन के मंडी संवाददाता अंकुश कहते हैं, ‘सुखराम एक कद्दावर नेता हैं. वह जिस भी पार्टी में रहते हैं उसको फायदा पहुंचाते हैं. अभी उन्होंने भाजपा जॉइन किया है तो निस्संदेह मंडी में भाजपा को फायदा मिलेगा. जहां तक उनकी भ्रष्टाचारी छवि की बात है तो हिमाचल में ऐसा कौन सा नेता है जिस पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं है. मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह अभी उनके विरोधी हैं लेकिन उनके अंदर इतना साहस नहीं है कि वो हिमाचल प्रदेश में मंच से बोल सकें कि सुखराम भ्रष्टाचारी हैं. या फिर जब वो भाजपा के साथ नहीं थे तब प्रेम कुमार धूमल के अंदर इतना नैतिक साहस नहीं था कि वो उन्हें भ्रष्टाचारी कह सकें. तो जब कोई नेता उनके भ्रष्टाचार की बात ही नहीं कर रहा तो यह सवाल अपने आप ही खत्म हो जाता है. ’