गुजरात: 2003 के ‘आईएसआई साज़िश’ मामले में मौलवी और पांच अन्य बरी

2002 गुजरात दंगों के बाद अपराध शाखा ने हैदराबाद के एक मौलवी और पांच अन्य लोगों को इस आरोप में गिरफ़्तार किया था कि उन्होंने दंगों का बदला लेने के लिए हैदराबाद और गुजरात के मुस्लिम युवकों को आतंकवाद का प्रशिक्षण लेने पाकिस्तान भेजा था. कोर्ट ने कहा कि अभियोजन ये आरोप साबित नहीं कर सका.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Lawmin.gov.in)

2002 गुजरात दंगों के बाद अपराध शाखा ने हैदराबाद के एक मौलवी और पांच अन्य लोगों को इस आरोप में गिरफ़्तार किया था कि उन्होंने दंगों का बदला लेने के लिए हैदराबाद और गुजरात के मुस्लिम युवकों को आतंकवाद का प्रशिक्षण लेने पाकिस्तान भेजा था. कोर्ट ने कहा कि अभियोजन ये आरोप साबित नहीं कर सका.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Lawmin.gov.in)

अहमदाबाद: अहमदाबाद की एक विशेष पोटा (आतंकवाद अधिनियम की रोकथाम) अदालत ने 2003 के एक मामले में आतंकवाद के आरोपों का सामना कर रहे हैदराबाद के एक मौलवी और पांच अन्य लोगों को बरी कर दिया है. इस मामले को ‘आईसीआई साजिश मामला’ के नाम से जाना जाता है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अदालत ने यह देखते हुए फैसला सुनाया कि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ आरोप साबित करने में विफल रहा.

दंगों का प्रतिशोध लेने संबंधी पांच मामलों को संयुक्त करके एक में ही सुना जा रहा था. पांच मामलों में से एक मामला राज्य के पूर्व गृह मंत्री हरेन पंड्या की हत्या, टिफिन बम विस्फोट और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने की साजिश से संबंधित था.

बरी किए गए लोगों में हैदराबाद के एक मौलवी मोहम्मद अब्दुल कवि, गुलाम जाफर शेख, मोहम्मद आदिल, अब्दुल रजाक अब्दुल करीम शेख, मोहम्मद शकील मोतिउल्लाह शेख और मोहम्मद यूसुफ शेख शामिल हैं.

सभी को सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी डीजी बंजारा के नेतृत्व में काम करने वाली अपराध शाखा की जांच के बाद आरोपों का सामना करना पड़ा था. गौरतलब है कि बंजारा को बाद में सोहराबुद्दीन शेख कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में गिरफ्तार किया गया था.

आरोपियों को 2014 से 2019 के बीच गिरफ्तार किया गया था.

यह आदेश 31 जनवरी, 2023 को विशेष पोटा न्यायाधीश शुभदा कृष्णकांत बक्सी द्वारा सुनाया गया था.

यह फैसला उन्हें आरोपित किए जाने के लगभग 20 साल बाद आया. उन पर आरोप था कि उन्होंने हैदराबाद और गुजरात के मुस्लिम युवाओं को आतंकवाद का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए कथित तौर पर पाकिस्तान भेजा था, ताकि गोधरा ट्रेन जलाने की घटना के बाद भड़के दंगों में मुस्लिम समुदाय को हुए नुकसान का बदला लिया जा सके.

यह मामला ज्यादातर सीआरपीसी की धारा 164 और पोटा की धारा 32 के तहत दर्ज इकबालिया बयानों पर निर्भर था. बता दें कि पोटा आतंकवाद के मामलो में इस्तेमाल होने वाला कानून था, जिसे निरस्त कर दिया गया है.

मामले में 15 गवाह थे, जिनमें से 7 जांच अधिकारी थे, जिनमें एक नाम गिरीश सिंघल का भी था जो बाद में इशरत जहां कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में आरोपी बनाए गए और जमानत पर बाहर हैं.