पुलिस हिरासत में मौत के मामलों में पिछले तीन सालों में तेज़ वृद्धि: केंद्र

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया है कि पुलिस हिरासत में होने वाली मौतों की संख्या में पिछले तीन वर्षों में लगभग 60 फीसदी और पिछले दो वर्षों में 75 फीसदी की वृद्धि देखी गई है. महाराष्ट्र में ऐसे मामलों में दस गुना की वृद्धि हुई है.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया है कि पुलिस हिरासत में होने वाली मौतों की संख्या में पिछले तीन वर्षों में लगभग 60 फीसदी और पिछले दो वर्षों में 75 फीसदी की वृद्धि देखी गई है. महाराष्ट्र में ऐसे मामलों में दस गुना की वृद्धि हुई है.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा राज्यसभा में उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से पता चला है कि देश भर में पुलिस हिरासत में होने वाली मौतों की संख्या में पिछले तीन वर्षों में लगभग 60 फीसदी और पिछले दो वर्षों में 75 फीसदी की वृद्धि देखी गई है.

रिपोर्ट के अनुसार, आंकड़ों से यह भी पता चला कि ऐसे मामलों की संख्या महाराष्ट्र में 10 गुना, केरल व बिहार में तीन गुना और गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं कर्नाटक में दो गुना बढ़ी है.

कांग्रेस सांसद फूलो देवी नेताम ने पांच वर्षों में पुलिस हिरासत में हुई मौतों की संख्या और उनके संबंध में जांच और मुआवजे के भुगतान की स्थिति के बारे में पूछा था, जिसके जवाब में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने ऐसे मामलों का राज्यवार विवरण प्रस्तुत किया.

उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा प्रदान की गई जानकारी के अनुसार, 201 मामलों में 5,80,74,998 रुपये की आर्थिक राहत की सिफारिश की गई है पिछले पांच वित्तीय वर्षों के दौरान एक मामले में अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई है.

सांसद के इस सवाल पर कि ‘क्या सरकार ने हिरासत में यातना और मौत को खत्म करने के लिए कोई कदम उठाया है’, मंत्री ने कहा, ‘यह मुख्यत: संबंधित राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे. हालांकि, केंद्र सरकार समय-समय पर परामर्श जारी करती है और मानवाधिकार अधिनियम (पीएचआर) 1993 भी लागू किया है जो लोक सेवकों द्वारा कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन पर नज़र रखने के लिए एनएचआरसी और राज्य मानवाधिकार आयोगों की स्थापना की बात करता है.’

उन्होंने कहा कि ‘जब कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायतें एनएचआरसी को प्राप्त होती हैं तो आयोग द्वारा मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत निर्धारित प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की जाती है.’

जवाब के साथ प्रस्तुत किए आंकड़ों से खुलासा होता है कि पूरे भारत में ऐसी हिरासत में मौतों की संख्या लगातार पिछले तीन सालों से गिरी है. वर्ष 2017-18 में 146, 2018-19 में 136, 2019-20 में 112 और 2020-21 में 100 मामले हिरासत में मौत के सामने आए. लेकिन, 2021-22 में तेज वृद्धि देखी गई और 175 मामले दर्ज किए गए.

महाराष्ट्र में ऐसे मामले 2019-20 में 3 थे जो 2021-22 में बढ़कर 30 हो गए. गुजरात में इसी अवधि के दौरान मामले 12 से बढ़कर 24 हो गए. राजस्थान में 5 से बढ़कर 13, कर्नाटक में 4 से बढ़कर 8. उत्तर प्रदेश में 3 से बढ़कर 8 और केरल में 2 से बढ़कर 6 हो गए.