तमिलनाडु: मद्रास हाईकोर्ट ने अपना पिछला आदेश रद्द कर आरएसएस को मार्च निकालने की अनुमति दी

मद्रास हाईकोर्ट की एकल पीठ ने नवंबर 2022 में तमिलनाडु पुलिस को एक जुलूस और जनसभा आयोजित करने की अनुमति से संबंधित आरएसएस के अनुरोध पर विचार करने का निर्देश दिया था. आदेश में प्रस्तावित राज्यव्यापी रूट मार्च पर शर्तें लगाई गई थीं और इसे बंद जगह में आयोजित करने को कहा गया था.

मद्रास हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

मद्रास हाईकोर्ट की एकल पीठ ने नवंबर 2022 में तमिलनाडु पुलिस को एक जुलूस और जनसभा आयोजित करने की अनुमति से संबंधित आरएसएस के अनुरोध पर विचार करने का निर्देश दिया था. आदेश में प्रस्तावित राज्यव्यापी रूट मार्च पर शर्तें लगाई गई थीं और इसे बंद जगह में आयोजित करने को कहा गया था.

मद्रास हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय ने अपनी एकल पीठ के 4 नवंबर के आदेश को खारिज करते हुए शुक्रवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को तमिलनाडु में फिर से निर्धारित तिथि पर अपना रूट मार्च निकालने की अनुमति दी और कहा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए प्रदर्शन जरूरी है.

रिपोर्ट के अनुसार, आरएसएस ने इससे पहले स्वतंत्रता के 75वें वर्ष, बीआर आंबेडकर की जन्मशती और विजयादशमी त्योहार पर मार्च निकालने की अनुमति मांगी थी. हालांकि, राज्य सरकार ने कानून और व्यवस्था की चिंताओं का हवाला देते हुए उन्हें अनुमति देने से इनकार कर दिया था.

एकल न्यायाधीश के 4 नवंबर, 2022 को पारित आदेश को निरस्त करते हुए अदालत ने 22 सितंबर, 2022 के आदेश को बहाल किया.

4 नवंबर के आदेश में तमिलनाडु पुलिस को जुलूस आयोजित करने और एक जनसभा आयोजित करने की अनुमति से संबंधित आरएसएस के अनुरोध पर विचार करने का निर्देश दिया था. हालांकि, एकल न्यायाधीश के आदेश में प्रस्तावित राज्यव्यापी रूट मार्च पर शर्तें लगाई गई थीं और इसे बंद जगह में आयोजित करने को कहा गया था.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, जस्टिस जीके इलंथेरियन की एकल पीठ द्वारा आरएसएस के मार्च पर लगाई शर्तों में यह भी शामिल था कि प्रतिभागी कोई भी छड़ी, लाठी या हथियार न लाएं जिससे किसी को चोट लग सकती है.

आरएसएस ने इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी.

इससे पहले 22 सितंबर 2022 को कोर्ट ने तमिलनाडु पुलिस को निर्देश दिया था कि वह आरएसएस को मार्च निकालने और जनसभा करने की इजाजत दे.

शुक्रवार (10 फरवरी) को जस्टिस आर. महादेवन और मोहम्मद शफीक की पीठ ने 4 नवंबर के पिछले आदेश को रद्द करते हुए 22 सितंबर के आदेश को बहाल करते हुए कहा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए विरोध प्रदर्शन जरूरी है.

पीठ ने कहा, ‘4 नवंबर 2022 को अवमानना याचिकाओं में पारित आदेश को रद्द कर दिया गया है और 22 सितंबर 2022 को रिट याचिकाओं में पारित आदेश को बहाल किया गया है और यह लागू होगा.’

अदालत ने आरएसएस को रूट मार्च/शांतिपूर्ण जुलूस आयोजित करने के उद्देश्य से तीन अलग-अलग तिथियों के साथ राज्य के अधिकारियों से संपर्क करने को कहा तथा राज्य के अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे इन तीन तिथियों में से एक चयनित तिथि पर उन्हें रूट मार्च/शांतिपूर्ण जुलूस आयोजित करने की अनुमति दें.

अदालत ने कहा, ‘हमारा विचार है कि राज्य के अधिकारियों को बोलने, अभिव्यक्ति और सभा करने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को बनाए रखने के लिए कार्य करना चाहिए, जिसे कि हमारे संविधान के सबसे पवित्र अधिकारों में से एक माना जाता है.’

अदालत ने यह भी कहा कि ‘जिन तारीखों पर अपीलकर्ता रूट मार्च निकालना चाहते थे, वे बीत चुकी हैं. उचित यही होगा कि इस संबंध में एक निर्देश जारी किया जाए.’

इसने आरएसएस से प्रस्तावित मार्च के दौरान सख्त अनुशासन सुनिश्चित करने को कहा और कहा कि इस दौरान कोई उकसावे वाली कार्रवाई न हो.

एक दिन बाद अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद से संबद्ध एक संगठन एबीवीएस ने शनिवार (11 फरवरी) को मदुरै में एक कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में जस्टिस आर. महादेवन को आमंत्रित किया गया था.

अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद की शुरुआत 7 सितंबर 1992 को नई दिल्ली में दत्तोपंत ठेंगड़ी द्वारा की गई थी. ठेंगड़ी एक प्रमुख आरएसएस और हिंदुत्व विचारक थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)