अयोध्या मामले में निर्णय देने वाली पीठ का हिस्सा रहे जस्टिस नज़ीर आंध्र प्रदेश के राज्यपाल होंगे

बीते जनवरी में रिटायर हुए जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले में फैसला सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ के तीसरे ऐसे न्यायाधीश हैं, जिन्हें सेवानिवृत्ति के बाद मोदी सरकार द्वारा किसी अन्य पद के लिए नामित किया गया है.

बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ में तत्कालीन सीजेआई मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई (बीच में) (बाएं से दाएं) जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस धनंजय वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर शामिल थे. (फाइल फोटो: पीटीआई)

बीते जनवरी में रिटायर हुए जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले में फैसला सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ के तीसरे ऐसे न्यायाधीश हैं, जिन्हें सेवानिवृत्ति के बाद मोदी सरकार द्वारा किसी अन्य पद के लिए नामित किया गया है.

बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ में तत्कालीन सीजेआई मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई (बीच में) (बाएं से दाएं) जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस धनंजय वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर शामिल थे. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस. अब्दुल नजीर सहित छह नए चेहरों को रविवार को विभिन्न प्रदेशों का राज्यपाल नियुक्त किया.

आंध्र प्रदेश के राज्यपाल नियुक्त हुए जस्टिस नजीर अयोध्या मामले पर फैसला सुनाने वाली उच्चतम न्यायालय की पीठ के सदस्य थे और बीते जनवरी में ही वे सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए हैं.

आंध्र प्रदेश के वर्तमान राज्यपाल बिस्वा भूषण हरिचंदन को छत्तीसगढ़ के राज्यपाल बनाया गया है.

5 जनवरी, 1958 को कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले के बेलुवई में जन्मे जस्टिस अब्दुल नज़ीर ने 1983 में वकालत की शुरुआत की थी. यहां 20 सालों तक उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट में प्रैक्टिस की, जिसके बाद उन्हें 2003 में कर्नाटक हाईकोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया.

17 फरवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट में बतौर जज नियुक्त हुए, जहां से वे बीते चार जनवरी को सेवानिवृत्त हुए हैं.

जस्टिस नज़ीर इस सरकार के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले देने वाली संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसमें ट्रिपल तलाक की संवैधानिक वैधता केस, निजता के अधिकार, अयोध्या मामला और हाल ही में केंद्र के 2016 के नोटबंदी निर्णय और सांसदों की अभिव्यक्ति की आज़ादी का मामला शामिल है. तीन तलाक मामले में वे असहमति रखने वाले न्यायाधीश थे, जिनका कहना था कि यह प्रथा अवैध नहीं है.

उल्लेखनीय है कि नवंबर 2109 में अयोध्या मामले में फैसला देने वाली पांच जजों की पीठ के वे तीसरे ऐसे न्यायधीश हैं, जिन्हें मोदी सरकार द्वारा रिटायरमेंट के बाद किसी अन्य पद के लिए नामित किया गया है.

पीठ ने अपने विवादास्पद फैसले में कहा था कि दिसंबर 1992 में हिंदुत्ववादी कार्यकर्ताओं द्वारा अवैध रूप से गिराए जाने से पहले जहां बाबरी मस्जिद पांच शताब्दियों तक खड़ी थी, उसे विध्वंस से जुड़े संगठनों को सौंप दिया जाना चाहिए ताकि वे वहां राम मंदिर का निर्माण कर सकें.

पीठ की अध्यक्षता करने वाले तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद राज्यसभा का सदस्य बनाया गया था. इसके बाद जुलाई 2021 में सेवानिवृत्त हुए जस्टिस अशोक भूषण को उसी साल राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) का प्रमुख बनाया गया था.

स्वतंत्र भारत के इतिहास में जस्टिस नज़ीर राज्यपाल बनाए गए सर्वोच्च न्यायालय के तीसरे सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं.

हालांकि, 1997 में जस्टिस फातिमा बीवी को एचडी देवेगौड़ा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से उनकी सेवानिवृत्ति के पांच साल बाद राज्यपाल बनाया था, लेकिन मोदी सरकार में ऐसा दूसरी बार हुआ है जब रिटायरमेंट के तुरंत बाद शीर्ष अदालत के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश को राज्यपाल बनाया है. 2014 में इसने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी. सदाशिवम को केरल का राज्यपाल नियुक्त किया था.