समलैंगिकता का अपराधीकरण हमारे समाज में अन्याय की कई कहानियों में से एक था: सीजेआई

वर्ष 2018 में उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में रखने वाली भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को असंवैधानिक क़रार देते हुए इसे ग़ैर-आपराधिक ठहराया था. वर्तमान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ यह निर्णय देने वाली पीठ में शामिल थे.

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सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो: पीटीआई)

वर्ष 2018 में उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में रखने वाली भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को असंवैधानिक क़रार देते हुए इसे ग़ैर-आपराधिक ठहराया था. वर्तमान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ यह निर्णय देने वाली पीठ में शामिल थे.

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो: पीटीआई)

नागपुर: भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि समलैंगिकता का अपराधीकरण, जिसका सात दशक के बाद गैर-आपराधिक कर दिया गया, हमारे समाज में अन्याय की कई कहानियों में से एक था.

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, सीजेआई शहर के वारंगा परिसर में महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (एमएनएलयू) के पहले दीक्षांत समारोह में बोल रहे थे.

एमएनएलयू के संस्थापक चांसलर पूर्व सीजेआई शरद बोबड़े और सुप्रीम कोर्ट के जज भूषण गवई, जो अब चांसलर हैं, ने बॉम्बे हाईकोर्ट के वरिष्ठ जज संजय गंगापुरवाला (बॉम्बे हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश), सुनील शुकरे, अतुल चंदुरकर और अनिल किलोर के साथ मंच साझा किया.

नवतेज सिंह जौहर मामले में अपने ऐतिहासिक फैसले का हवाला देते हुए- जहां उन्होंने फैसला सुनाया था कि आईपीसी की धारा 377 एक ‘पुराना औपनिवेशिक कानून’ थी, जिसने समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जीवन और निजता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया- सीजेआई ने कहा कि उन्होंने यह ध्यान में रखकर अपना फैसला दिया था कि समानता और गैर-भेदभाव के संवैधानिक अधिकार की गारंटी के बावजूद कानून की सुस्ती स्पष्ट थी.

ज्ञात हो कि वर्ष 2018 में उच्चतम न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को असंवैधानिक करार देते हुए इसे गैर-आपराधिक ठहराया था. कोर्ट ने अपने ही साल 2013 के फैसले को पलटते हुए धारा 377 की मान्यता रद्द कर दी थी, जिसके बाद अब सहमति के साथ अगर समलैंगिक समुदाय के लोग संबंध बनाते हैं तो वो अपराध के दायरे में नहीं आएगा.

सीजेआई ने कहा, ‘एक शासन करने वाले दस्तावेज के रूप में संविधान ने अधिक न्यायपूर्ण लोकतांत्रिक समाज की ओर तेजी से कदम बढ़ाए हैं, लेकिन इससे पहले कि हम आराम कर सकें, बहुत काम पूरा किया जाना बाकी है. स्वतंत्रता के समय हमारे समाज को खंडित करने वाली गहरी असमानता आज भी बनी हुई है. इस असमानता को अतीत का एक दूर का सपना बनाने का सबसे अच्छा तरीका हमारे समाज में संविधान की भावना को जगाना है. मेरे प्रिय छात्रों, इस प्रयास में आपसे बेहतर कोई जगह नहीं है.’

यह कहते हुए कि कानून की दुर्भाग्यपूर्ण प्रकृति यह थी कि यह सुस्त और जड़त्व से भरा था, सीजेआई ने कहा, ‘जब आप एक वकील के रूप में सफल होते हैं और न्यायाधीश बन जाते हैं तो आपको एक निष्क्रिय व्यक्ति बनने के लिए लाखों बहाने मिलेंगे. लेकिन आपमें कानून की सुस्ती नहीं झलकनी चाहिए. हम अपने लिए जो समाज बनाते हैं, वह न्याय के लिए हमारी सामूहिक खोज की रीढ़ बनता है.’

वहीं, उन्होंने यह भी कहा कि भारत का संविधान स्वशासन, गरिमा और स्वतंत्रता का एक उल्लेखनीय स्वदेशी उत्पाद है तथा कुछ लोग इसकी अत्यधिक प्रशंसा करते हैं, जबकि कई अन्य इसकी सफलता के बारे में संशयवादी हैं.

उन्होंने संविधान की प्रस्तावना का उल्लेख करते हुए कहा कि यह छोटा है, लेकिन संविधान का महत्वपूर्ण हिस्सा है और कहता है कि ‘हम भारत के लोग इस संविधान को खुद को सौंपते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘औपनिवेशिक शासकों ने अनुग्रह के रूप में हमें संविधान नहीं प्रदान किया. हमारा (संविधान) एक ऐसा दस्तावेज है, जिसे देश में तैयार किया गया है…जो स्वशासन, गरिमा और स्वतंत्रता का उत्पाद है.’

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हमारे संविधान की सफलता को आमतौर पर ‘स्पेक्ट्रम’ के दो विपरीत छोर से देखा जाता है. कुछ लोग हमारे संविधान की अत्यधिक प्रशंसा करते हैं, जबकि अन्य इसकी सफलता को लेकर संशयवादी हैं.’

उन्होंने कहा, ‘जब संविधान को उस संदर्भ में देखा जाता है जिसमें यह उभरा था, यह कहीं से भी कम उल्लेखनीय नहीं है.’ उन्होंने कहा कि संविधान ने अधिक न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक समाज बनाने की दिशा में लंबे कदम बढ़ाए हैं.

डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा (समाज में) सामना की गई समस्याओं के बारे में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत के लोग कई संवैधानिक अधिकारों के लिए उनके ऋणी हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)