2019-21 के बीच आत्महत्या करने वालों में दैनिक वेतन भोगियों और गृहिणियों की संख्या सर्वाधिक

सरकार ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के हवाले से लोकसभा में बताया है कि वर्ष 2019-21 की तीन साल की अवधि में आत्महत्याओं की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है. 2019 में 1,39123 लोगों ने आत्महत्या की थी, 2020 में यह 1,53,052 हो गई और 2021 में बढ़कर 1,64,033 हो गई.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Eric Parker/Flickr)

सरकार ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के हवाले से लोकसभा में बताया है कि वर्ष 2019-21 की तीन साल की अवधि में आत्महत्याओं की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है. 2019 में 1,39123 लोगों ने आत्महत्या की थी, 2020 में यह 1,53,052 हो गई और 2021 में बढ़कर 1,64,033 हो गई.

(फोटो साभार: Eric Parker/Flickr)

नई दिल्ली: श्रम और रोजगार मंत्रालय ने सोमवार (14 फरवरी) को एक सवाल के जवाब में लोकसभा को बताया कि 2019 और 2021 के बीच देश भर में आत्महत्या से मरने वाले लोगों की सबसे बड़ी श्रेणी दैनिक वेतन भोगी (दिहाड़ी) लोगों की है.

आत्महत्या के मामले में दूसरी सबसे बड़ी श्रेणी गृहिणियों की है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के डेटा के मुताबिक, स्व-नियोजित व्यक्तियों, बेरोजगारों और छात्रों की श्रेणियां अगली तीन सबसे बड़ी श्रेणियां हैं, जिनमें लोगों ने अपना जीवन स्वयं ही समाप्त कर लिया.

तमिलनाडु के कांग्रेस सांसद सु. थिरूनवुक्‍करास के एक सवाल के जवाब में श्रम और रोजगार मंत्री भूपेंद्र यादव ने एनसीआरबी के तीन साल के आंकड़े उपलब्ध कराए, जिनसे इसकी पुष्टि हुई. कांग्रेस सांसद ने पूछा था कि क्या यह सच है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान आत्महत्या से मरने वालों में दिहाड़ी मजदूर सबसे बड़ा समूह है.

सांसद के एक अन्य प्रश्न पर कि क्या सरकार द्वारा दैनिक वेतन भोगियों की सुरक्षा और उनकी आजीविका में सुधार के लिए कोई कदम उठाए जा रहे हैं, मंत्री ने जवाब दिया कि ‘असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम 2008 के अनुसार, सरकार को असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना अनिवार्य है.’

उन्होंने कई कल्याणकारी और पेंशन योजनाओं का हवाला दिया जो 18-70 वर्ष की श्रेणी में लोगों के लिए शुरू की गई हैं.

आंकड़े तीन साल की अवधि में वृद्धि का खुलासा करते हैं

एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चला है कि तीन साल की अवधि में आत्महत्याओं की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है. 2019 में 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की थी, 2020 में यह संख्या 1,53,052 हो गई और 2021 में बढ़कर 1,64,033 हो गई.

आंकड़ों में इन मौतों को नौ व्यापक श्रेणियो में वर्गीकृत किया गया है- गृहिणी, पेशेवर/वेतनभोगी, सरकारी कर्मचारी, छात्र, बेरोजगार, स्व-नियोजित व्यक्ति, कृषि क्षेत्र में लगे लोग, दैनिक वेतन भोगी, सेवानिवृत्त व्यक्ति और अन्य.

इसमें खुलासा हुआ कि दैनिक वेतनभोगियों के बीच आत्महत्या हर साल होने वाली ऐसी ऐसी सभी मौतों का लगभग 25 फीसदी है.

सरकार ने सोमवार को राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 2019 से 2021 तक तीन वर्ष की अवधि में कुल 1.12 लाख दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की.

मरने वाले इन दिहाड़ी मजदूरों की संख्या भी 2019 में 32,563 थी, जो 2020 में बढ़कर 37,666 हो गई और 2021 में यह बढ़कर 42,004 हो गई.

गौरतलब है कि 2020 कोविड-19 महामारी का पहला वर्ष था, जिसमें देशभर में लॉकडाउन लगाया गया था. लॉकडाउन में लाखों प्रवासी दिहाड़ी मजदूर रातों-रात बेरोजगार हो गए थे और उन्हें पैदल ही अपने गांव वापस जाना पड़ा था.

केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री भूपेंद्र यादव ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी.

यादव ने बताया कि दिहाड़ी मजदूरों के अलावा इन तीन वर्ष की अवधि में 66,912 गृहणियों, स्वरोजगार वाले 53,661 व्यक्तियों, 43,420 वेतनभोगी लोगों और 43,385 बेरोजगार लोगों ने खुदकुशी की.

उनके अनुसार, वर्ष 2019 से 2021 के दौरान 35,950 छात्रों और कृषि क्षेत्र में काम करने वाले 31,839 लोगों ने आत्महत्या की.

आंकड़ों से यह भी पता चला कि गृहिणियों के बीच भी इन तीन वर्षों में आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि हुई है. 2019 में 21,359 गृहिणियों ने अपना जीवन स्वयं समाप्त किया था, 2020 और 2021 में यह संख्य बढ़कर क्रमश: 22,374 और 23,179 हो गई.

अन्य श्रेणियों में तेज वृद्धि

आत्महत्या से मरने वालों की तीसरी सबसे बड़ी श्रेणी स्व-नियोजित व्यक्तियों की थी. 2019 में ऐसे 16,098 लोगों ने अपनी जान ली. 2020 में यह संख्या 17,332 और 2021 में 20,231 हो गई. इस श्रेणी ने 2020 और 2021 के बीच सबसे तेज वृद्धि दिखी, जिसका कारण संभवत: कोरोना संक्रमण रहा.

इस अवधि के दौरान आत्महत्या से मरने वाले लोगों की चौथी सबसे बड़ी श्रेणी बेरोजगारों की थी. आत्महत्या करने की संख्या 2019 में 14,019 से बढ़कर 2020 में 15,652 हो गई, लेकिन फिर 2021 में मामूली रूप से घटकर 13,714 हो गई.

छात्रों की श्रेणी पांचवें स्थान पर रही और छात्रों के बीच ऐसी दर्ज मौतें 2019 में 10,335 से लगभग 20 फीसदी बढ़कर 2020 में 12,526 हो गईं. 2021 में इसने 13,089 के उच्च स्तर को छू लिया.

किसानों की मौतें घटीं, खेतिहर मजदूरों की बढ़ीं

जहां तक कृषि क्षेत्र में लगे लोगों की बात है, एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि इस अवधि के दौरान जहां किसानों की आत्महत्या में कमी आई है, वहीं खेतिहर मजदूरों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है.

किसान आत्महत्या से दर्ज मौतों की संख्या 2019 में 5,957 से घटकर 2020 में 5,579 और 2021 में 5,318 हो गई.

हालांकि, खेतिहर मजदूरों के मामले में (श्रमिकों की अन्य श्रेणियों के साथ) आत्महत्या से मौतों की संख्या 2019 की 4,324 से बढ़कर 2020 में 5,098 और फिर 2021 में 5,563 हो गई.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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