वकील शाहिद आज़मी हत्या मामला: हाईकोर्ट ने सुनवाई पर लगी रोक हटाई

अधिवक्ता शाहिद आज़मी की 11 फरवरी 2010 को मुंबई के कुर्ला उपनगर में उनके कार्यालय में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. घटना के समय वह मालेगांव 2006 बम विस्फोट, 7/11 ट्रेन विस्फोट मामले, औरंगाबाद हथियार बरामदगी मामले और घाटकोपर विस्फोट मामले में कई आरोपियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे.

अधिवक्ता शाहिद आज़मी. (फोटो साभार: विकिपीडिया)

अधिवक्ता शाहिद आज़मी की 11 फरवरी 2010 को मुंबई के कुर्ला उपनगर में उनके कार्यालय में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. घटना के समय वह मालेगांव 2006 बम विस्फोट, 7/11 ट्रेन विस्फोट मामले, औरंगाबाद हथियार बरामदगी मामले और घाटकोपर विस्फोट मामले में कई आरोपियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे.

अधिवक्ता शाहिद आज़मी. (फोटो साभार: विकिपीडिया)

मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2010 में फौजदारी मुकदमे के वकील शाहिद आजमी की हत्या के मामले में सुनवाई पर लगी रोक हटा दी है और ‘पूर्वाग्रह’ को आधार बनाकर किसी और निचली अदालत में सुनवाई कराए जाने संबंधी अभियुक्त का अनुरोध ठुकरा दिया है.

आजमी की 11 फरवरी, 2010 को कुर्ला उपनगर में उनके कार्यालय में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

घटना के समय आजमी मालेगांव 2006 बम विस्फोट, 7/11 ट्रेन विस्फोट मामले, औरंगाबाद हथियार बरामदगी मामले और घाटकोपर विस्फोट मामले में कई आरोपियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे.

अभियोजन पक्ष के अनुसार, गैंगस्टर छोटा राजन के इशारे पर आजमी की हत्या की गई. हाईकोर्ट ने सितंबर 2022 में एक आरोपी हसमुख सोलंकी द्वारा मामले को दूसरे सत्र न्यायाधीश को स्थानांतरित करने की अर्जी दायर करने के बाद मुकदमे की सुनवाई पर रोक लगा दी थी.

जस्टिस पीडी नाइक ने बीते सात फरवरी को स्थगन आदेश को रद्द कर दिया और सोलंकी की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें मामले को मुंबई के सत्र न्यायाधीश से दूसरे सत्र न्यायाधीश को स्थानांतरित करने का अनुरोध किया गया था. सोलंकी ने मौजूदा जज पर पक्षपात का आरोप लगाया था.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे 11 गवाह हैं जिनकी अदालत ने अब तक जांच की है और जज पीडी नाइक ने निष्कर्ष निकाला कि आरोपी द्वारा आगे लाई गई सामग्री ‘यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त नहीं थी कि ट्रायल कोर्ट आवेदक के खिलाफ पक्षपाती है’ और वह उक्त न्यायालय के समक्ष निष्पक्ष सुनवाई का मौका नहीं पा सकेगा. इसलिए जांच के हस्तांतरण के लिए कोई मामला नहीं बनता है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग सात वर्षों की अपनी प्रैक्टिस में शाहिद आजमी ने कई मामलों की पैरवी की थी और उन लोगों का प्रतिनिधित्व किया, जिनके बारे में उनका मानना था कि उन्हें मुंबई में कई हाई-प्रोफाइल ‘आतंकवादी मामलों’ में गलत तरीके से अभियुक्त बनाया गया था.

आजमी ने लगभग 17 मामलों में अपने मुवक्किलों को दोषमुक्त कराया, जो हमारी आपराधिक परीक्षण प्रणाली में देरी को देखते हुए लगभग सात वर्षों के उनके छोटे से करिअर में काफी उल्लेखनीय संख्या है.

उनके प्रारंभिक मामलों में से एक 2002 में घाटकोपर बस बम विस्फोट था, जब आरिफ पानवाला, जिसे आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) के तहत गिरफ्तार किया गया था, को सबूतों की कमी के कारण अदालत द्वारा आठ अन्य लोगों के साथ बरी कर दिया गया था; यह अंतत: इस कानून को निरस्त करने का कारण बना.

राजकुमार राव अभिनीत हंसल मेहता की 2013 की फिल्म ‘शाहिद’ आजमी के जीवन और कार्य पर आधारित थी. यह उन सभी घटनाओं का वर्णन करती है, जिन्होंने उन्हें ‘शाहिद आजमी’ बनाया. उनकी लड़ाई के पीछे मुख्य प्रेरणा वह गलत कैद थी, जिसे उन्होंने खुद झेला था.

राजनेताओं की हत्या में कथित संलिप्तता के लिए आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (टाडा) के तहत आरोप लगाए जाने के बाद आजमी ने लगभग 7 साल तिहाड़ जेल में बिताए, लेकिन अंतत: उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया था.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, जेल में रहते हुए उन्होंने एलएलबी की डिग्री प्राप्त की और अपने बरी होने के बाद उन्होंने मुंबई 7/11 ट्रेन विस्फोट मामले, 26/11 मुकदमे, मालेगांव 2006 बम विस्फोट मामले आदि में कई अभियुक्तों का प्रतिनिधित्व किया था

बहरहाल 13 साल बाद भी शाहिद आजमी की हत्या के मामले में अभी तक किसी को सजा नहीं हुई है.

न्यूज़लॉन्ड्री की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगस्त 2017 में चार लोगों के खिलाफ हत्या और आपराधिक साजिश के आरोप तय किए गए थे. आरोप शुरू में पांच लोगों के खिलाफ थे, लेकिन गैंगस्टर संतोष शेट्टी को अक्टूबर 2014 में छोड़ दिया गया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)