मेडिकल जर्नल ‘द लांसेट’ में प्रकाशित तीन शोधपत्रों की शृंखला में कहा गया है कि दूध कंपनियां अपने उत्पादों को बेचने के लिए लैंगिक राजनीति के दांव-पेच भी अपनाती हैं. इसमें भ्रमित करने वाले दावों और राजनीतिक हस्तक्षेप से निपटने के लिए तुरंत सख़्त कार्रवाई की अपील की गई है.
नई दिल्ली: फॉर्मूला दुग्ध उद्योग के विपणन (मार्केटिंग) संबंधी हथकंडे शोषणकारी हैं, जो स्तनपान को हतोत्साहित करते हैं. ‘द लांसेट’ में प्रकाशित तीन शोधपत्रों की शृंखला में यह दावा किया गया है.
इसमें भ्रमित करने वाले दावों और राजनीतिक हस्तक्षेप से निपटने के लिए तुरंत सख्त कार्रवाई की अपील की गई है. ये शोधपत्र सुझाते हैं कि उद्योग का यह प्रभाव (जिसमें अहम स्तनपान समर्थक उपायों के खिलाफ लामबंदी (लॉबिंग) करना शामिल है) महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य और अधिकारों को गंभीर नुकसान पहुंचाता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) में वैज्ञानिक और फॉर्मूला दुग्ध विपणन पर एक शोधपत्र के लेखक प्रोफेसर निगेल रोलिंस ने कहा, ‘नया शोध बड़ी फॉर्मूला दूध कंपनियों की व्यापक आर्थिक और राजनीतिक ताकत तथा सार्वजनिक नीति की गंभीर नाकामी पर प्रकाश डालता है, जो लाखों महिलाओं को अपने बच्चों को स्तनपान कराने से रोकती है.’
रोलिंस ने कहा कि समाज के विभिन्न क्षेत्रों में कार्रवाई की जरूरत है, ताकि महिलाएं जब तक चाहें, तब तक उन्हें स्तनपान के लिए बेहतर समर्थन दिया जा सके. उन्होंने कहा कि इसके साथ फॉर्मूला दूध के शोषणकारी विपणन से निपटने के लिए प्रयास किए जाएं.
लांसेट की शोधपत्रों की शृंखला में स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा प्रणाली में स्तनपान के लिए अधिक समर्थन दिए जाने की सिफारिश की गई है, जिसमें पर्याप्त वैतनिक मातृत्व अवकाश की गारंटी देना शामिल है. इसमें कहा गया कि मौजूदा समय में 65 करोड़ महिलाओं के पास पार्याप्त मातृत्व सुरक्षा का अभाव है.
डब्ल्यूएचओ ने एक बयान में कहा कि फॉर्मूला दूध का सघन विपणन काफी हद तक बेरोकटोक जारी है और इन उत्पादों की बिक्री का आंकड़ा अब प्रति वर्ष 55 अरब अमेरिकी डॉलर के पास पहुंच गया है.
रिपोर्ट के अनुसार, लांसेट की शोधपत्रों की शृंखला में कहा गया है कि कैसे भ्रामक मार्केटिंग दावे शिशु के सामान्य व्यवहार के बारे में माता-पिता की चिंताओं का फायदा उठाते हैं. भ्रामक मार्केटिंग दावों और डेयरी व फॉर्मूला दूध उद्योगों की रणनीतिक पैरवी, माता-पिता के सामने नई चुनौतियां खड़ी कर देती हैं.
लेख में कहा गया है कि इनमें ऐसे असंख्य दावे किए जाते हैं कि फॉर्मूला दूध पीने में शिशु नखरे नहीं करते हैं, इससे पेट में गैस नहीं बनती, और बेहतर नींद मिलती है. इन सबसे केवल माता-पिता की चिंताएं बढ़ रही हैं.
इस शृंखला में जांच की गई है कि कैसे फॉर्मूला मार्केटिंग रणनीतियां, स्तनपान को महत्व न देकर, माता-पिता, स्वास्थ्य पेशेवरों व राजनेताओं को लक्षित करती है और किस तरह महिलाओं के अधिकार एवं स्वास्थ्य परिणाम, शक्ति असंतुलन तथा राजनैतिक एवं आर्थिक संरचनाओं द्वारा खाद्य प्रथाएं निर्धारित की जाती हैं.
लेखकों के अनुसार, ‘स्तनपान कराना केवल महिलाओं की जिम्मेदारी नहीं है. इसके लिए ऐसे सामूहिक सामाजिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो लैंगिक असमानताओं को ध्यान में रखे.’
डेयर से लेकर फॉर्मूला दुग्ध उद्योग तक भ्रामक मार्केटिंग के दावे और रणनीति लामबंदी स्तनपान और शिशु देखभाल के बारे में चिंता बढ़ाकर माता-पिता की मुश्किलों में इजाफा कर देती है.
‘वर्ल्ड हेल्थ असेंबली’ ने 1981 में ‘ब्रेस्ट-मिल्क सबस्टिट्यूट्स’ की मार्केटिंग के लिए अंतरराष्ट्रीय कोड और अन्य प्रस्तावों को विकसित किया.
लेखकों ने पाया कि कंपनियां अपने उत्पादों को बेचने के लिए लैंगिक राजनीति के दांव-पेच भी अपनाती हैं, स्तनपान की वकालत को ‘नैतिक निर्णय’ के रूप में प्रस्तुत करती हैं.
इसमें यह भी कहा गया है कि कंपनियां अंतरराष्ट्रीय नियामक प्रक्रियाओं में भी दखल देती हैं. उदाहरण के लिए डेयरी और फॉर्मूला दूध उद्योगों ने गैर-जवाबदेह व्यापार संघों का एक नेटवर्क स्थापित किया है, जो स्तनपान की सुरक्षा या शिशु फॉर्मूला की गुणवत्ता को नियंत्रित करने के नीतिगत उपायों के विरुद्ध पैरवी करते हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)