बीते पांच वर्षों में पुलिस हिरासत में मौत के सर्वाधिक मामले गुजरात में दर्ज किए गए: केंद्र

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यसभा को सूचित किया है कि वर्ष 2017 से 2022 के बीच गुजरात में पुलिस हिरासत में 80 लोगों की मौत हुई है. इसके बाद महाराष्ट्र में 76, उत्तर प्रदेश में 41, तमिलनाडु में 40 और बिहार में 38 लोगों की मौत के मामले सामने आए हैं.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यसभा को सूचित किया है कि वर्ष 2017 से 2022 के बीच गुजरात में पुलिस हिरासत में 80 लोगों की मौत हुई है. इसके बाद महाराष्ट्र में 76, उत्तर प्रदेश में 41, तमिलनाडु में 40 और बिहार में 38 लोगों की मौत के मामले सामने आए हैं.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय में राज्यसभा को सूचित किया है कि पिछले पांच सालों में हिरासत में मौतों की सबसे अधिक संख्या गुजरात में रही है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मंत्रालय ने बताया है कि इस दौरान गुजरात में 80 मौतें हुई हैं. इसके बाद महाराष्ट्र (76), उत्तर प्रदेश (41), तमिलनाडु (40) और बिहार (38) का नंबर आता है.

भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 1 अप्रैल 2017 से 31 मार्च 2022 के बीच हिरासत में हुईं मौतों का विवरण साझा करते हुए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा को सूचित किया कि वर्ष 2017-18 के दौरान पुलिस हिरासत में मौत के 146 मामले सामने आए, वर्ष 2018-19 में 136, वर्ष 2019-20 में 112, वर्ष 2020-21 में 100 और वर्ष 2021-22 में 175 मामले रिपोर्ट किए गए.

उन्होंन कहा, ‘वर्ष 2017-18 में गुजरात में पुलिस हिरासत में 14 मौतें रिपोर्ट की गईं, वर्ष 2018-19 में 13, वर्ष 2019-20 में 12, वर्ष 2020-21 में 17 और वर्ष 2021-22 में 24 मौतें रिपोर्ट की गईं.’

राय ने कहा कि नौ केंद्रशासित प्रदेशों में पिछले पांच वर्षों में हिरासत में मौक की सबसे अधिक घटनाएं दिल्ली में हुईं, जिनकी संख्या 29 रही. इसके बाद जम्मू कश्मीर का नंबर आता है, जहां 4 मौत हुईं.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी का हवाला देते हुए मंत्री ने कहा कि पुलिस हिरासत में मौत की घटनाओं में आयोग ने 201 मामलों में 5,80,74,998 रुपये की आर्थिक राहत और एक मामले में अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की है.

राय ने बताया, ‘महाराष्ट्र में वर्ष 2017-18 में पुलिस हिरासत में 19 मौतें दर्ज की गईं, वर्ष 2018-19 में 11, वर्ष 2019-20 में 3, वर्ष 2020-21 में 13 और वर्ष 2021-22 में 30 मौतें दर्ज की गईं. उत्तर प्रदेश में वर्ष 2017-18 में 10 मौतें, वर्ष 2018-19 में 12 मौतें, वर्ष 2019-2020 में तीन मौतें, वर्ष 2020-21 में आठ मौतें और वर्ष 2021-22 में आठ मौतें हुईं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘तमिलनाडु में वर्ष 2017-18 में 11 मौतें, वर्ष 2018-19 में 11, वर्ष 2019-2020 में 12 मौतें, वर्ष 2020-21 में दो मौतें और वर्ष 2021-22 में चार मौतें हुईं. बिहार में वर्ष 2017-18 में पुलिस हिरासत में सात मौतें, वर्ष 2018-19 और वर्ष 2019-2020 में पांच-पांच, वर्ष 2020-21 में तीन मौतें और वर्ष 2021-22 में 18 मौतें दर्ज की गईं.’

मंत्री ने बताया कि सिक्किम और गोवा जैसे राज्यों में 2017 से 2020 तक कोई घटना दर्ज नहीं की गई, लेकिन 2021-2022 में दोनों राज्यों में हिरासत में मौत की एक-एक घटना दर्ज की गई.

उन्होंने कहा, ‘भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था राज्य के विषय हैं. मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना प्राथमिक रूप से संबंधित राज्य सरकार का उत्तरदायित्व है. हालांकि, केंद्र सरकार समय-समय पर सलाह जारी करती है और मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम (पीएचआर), 1993 भी लागू कर चुकी है, जो लोक सेवकों द्वारा कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच के लिए एनएचआरसी और राज्य मानवाधिकार आयोगों की स्थापना निर्धारित करते हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘जब एनएचआरसी को कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायतें प्राप्त होती हैं, तो आयोग द्वारा मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के तहत निर्धारित प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की जाती है.’