केंद्र सरकार के बजट में सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य व शिक्षा को न केवल दरकिनार किया गया है बल्कि मनरेगा सरीखी कई ज़रूरी योजनाओं के आवंटन में भारी कटौती की गई है. ऐसे में झारखंड जैसा राज्य जो कुपोषण, ग़रीबी व ग्रामीण बेरोज़गारी से जूझ रहा है, वहां आने वाले राज्य बजट के पहले पिछले बजटों में की गई घोषणाओं के आकलन की ज़रूरत है.
केंद्र सरकार के 2023-24 के बजट में पोषण, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य व शिक्षा को न केवल दरकिनार किया गया है बल्कि कई महत्वपूर्ण योजनाओं जैसे आंगनवाड़ी सेवाएं, मध्याह्न भोजन व पेंशन के आवंटन की कटौती की गई है. मनरेगा के बजट में तो भारी कटौती हुई है. सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में कुल जीडीपी के अनुपात में केंद्र सरकार द्वारा खर्च लगातार कम होते जा रहा है. ऐसी परिस्थिति में झारखंड, जहां व्यापक भूख, कुपोषण, गरीबी व ग्रामीण बेरोज़गारी है, के आने वाले राज्य बजट का विशेष महत्व है.
पिछले 3 सालों में हेमंत सोरेन सरकार ने जन अपेक्षा अनुरूप सामाजिक सुरक्षा संबंधित कई सराहनीय घोषणाएं की हैं. नए वादों से पहले इन घोषणाओं के आकलन से बजट को एक दिशा मिल सकती है.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून अंतर्गत जन वितरण प्रणाली से छूटे योग्य लोगों में 15 लाख व्यक्तियों को राशन देने के लिए सरकार ने अगस्त 2020 में राज्य खाद्य सुरक्षा योजना की घोषणा की. पिछले बजट में इस संख्या को बढ़ाकर 20 लाख करने की घोषणा हुई. जन वितरण प्रणाली में 15 लाख अतिरिक्त व्यक्ति तो जुड़ गए लेकिन इन्हें नियमित रूप से हर महीने राशन नहीं मिलता है. पिछले पांच महीनों में तो अधिकांश कार्डधारियों को अनाज नहीं मिला है.
सरकार के अनुसार अनाज खरीदने, संबंधित निविदा व ट्रांसपोर्ट में विलंब हो रहा है. सरकार ने जन वितरण प्रणाली अंतर्गत सभी राशन कार्डधारियों को सस्ते दर पर दाल देने की भी घोषणा की थी, लेकिन एक साल बाद भी यह फिलहाल कागज़ पर ही सीमित है.
कक्षा 1-8 के बच्चों के मध्याह्न भोजन में 5 अंडे व आंगनवाड़ी में 3-6 वर्ष के बच्चों को 6 अंडे प्रति सप्ताह की घोषणा राज्य सरकार ने पिछले दो साल में कई बार की. लेकिन आज तक बच्चों की थाली तक अंडे नहीं पहुंचे – कभी बजट का बहाना तो कभी अंडे के कॉन्ट्रैक्ट के लिए केंद्रीय निविदा में देरी का बहाना.
केवल नई घोषणाएं ही नहीं, बल्कि वर्तमान सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के सही कार्यान्वयन के प्रति भी सरकार उदासीन है. हाल में महिला व बाल विकास मंत्री के खुद के विधानसभा क्षेत्र में एक स्वतंत्र नागरिक सर्वेक्षण में पाया गया कि आंगनवाड़ी की स्थिति दयनीय है. केवल आधे केंद्र ही नियमित रूप से खुलते हैं.
घोषणाओं को लागू करने के लिए पर्याप्त बजट आवंटन के साथ-साथ सही नीति की भी ज़रूरत है. 1.5 साल पहले लागू की गई मुख्यमंत्री सर्वजन पेंशन योजना (राज्य की सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाओं का सार्वभौमिकरण) के बाद पेंशन योजनाओं के बजट का आवंटन बढ़ा एवं अनेक बुज़ुर्ग व विधवाओं को पेंशन मिलनी शुरू हुई. लेकिन अभी भी पेंशन योजनाएं सार्वभौमिकरण से कोसों दूर है. योजनाओं से संबंधित जटिलताओं के कारण अनेक बुज़ुर्ग व विधवा पेंशन से वंचित हैं.
राज्य के बुजुर्गों के आधार कार्ड में कम उम्र दर्ज होना एक आम समस्या है. कोई अन्य उम्र प्रमाण व आधार में उम्र सुधार प्रक्रियाओं की जटिलता के कारण अनेक योग्य वृद्ध पेंशन से वंचित हैं. साथ ही, सालों पहले पति की मृत्यु का प्रमाण पत्र बनवाने में जटिलताओं के कारण अनेक विधवा महिलाएं पेंशन से वंचित हैं. पीड़ितों व नागरिक संगठनों द्वारा कई बार संबंधित मंत्री व पदाधिकरियों से इन समस्याओं के निराकरण के मांग के बावजूद कार्रवाई नहीं हुई है.
बेरोज़गारी के दौर में शहरी रोज़गार गारंटी योजना लागू करने वाले चुनिंदा राज्यों में से झारखंड एक हैं. लेकिन 2.5 साल पहले की गई यह घोषणा महज़ कागज़ तक सिमट गई क्योंकि योजना के लिए आज तक न तो पर्याप्त बजट का आवंटन हुआ और न ही लागू करने के लिए सही नीति बनी. योजनाओं को सही रूप से लागू करने के लिए बिचौलियों और प्रशासन के भ्रष्ट गठजोड़ को भी तोड़ने की ज़रूरत है.
मुख्यमंत्री ने हाल की एक बजट पूर्व गोष्ठी में सरकार की प्राथमिकताओं में ग्रामीण स्वरोज़गार को गिनाया, लेकिन मुख्यमंत्री रोज़गार सृजन में आवेदकों से हजारों रुपयों की घूस ली जाती है और स्वीकृत लोन का भी एक बड़ा हिस्सा रख लिया जाता है. आवेदन स्वीकृति के लिए स्थानीय विधायक व बिचौलियों के साथ की ज़रूरत है. पश्चिमी सिंहभूम में अनेक आदिवासी युवा महीनों से इस तंत्र में फंसे हुए हैं और लोन के इंतज़ार में हैं.
सार्वजानिक शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए. विभिन्न शोधों में पाया गया है कि लॉकडाउन ने प्राथमिक व माध्यमिक कक्षाओं के बच्चों की शैक्षणिक क्षमता को कई साल पीछे कर दिया है. लेकिन राज्य सरकार ने लॉकडाउन के घाटे को पाटने के लिए कोई अतिरिक्त व्यवस्था नहीं की है. ज़रूरत है कि शिक्षकों की व्यापक रिक्तियों को भरने के साथ-साथ विशेष शिक्षा अभियान चलाया जाए. साथ ही, राज्य में बड़ी संख्या में सुनसान पड़े स्वास्थ्य केंद्र यह इंगित करते है कि फिलहाल राज्य में प्राथमिकता भवन निर्माण के बजाए सेवा प्रदाताओं की नियुक्ति होनी चाहिए.
झारखंड में ग्रामीणों, खासकर आदिवासी, दलित व अन्य वंचितों, के पोषण, सामाजिक सुरक्षा, शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए राज्य बजट में खास फोकस की ज़रूरत है. लेकिन सरकार को महज़ घोषणाओं के आगे बढ़ना पड़ेगा.
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता है.)