देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने मार्च 2020 में राज्यसभा का सदस्य मनोनीत होने के बाद से सदन में कोई सवाल नहीं किया, न ही कोई प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया. राज्यसभा की वेबसाइट के जिस हिस्से में सांसदों की ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग उपलब्ध है, वहां गोगोई संबंधी कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है.
नई दिल्ली: भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त होने के तुरंत बाद मार्च 2020 में राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया था, ने अब तक संसद में एक भी प्रश्न नहीं पूछा है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि इस अवधि में उन्होंने कोई भी प्राइवेट मेंबर बिल भी पेश नहीं किया है और राज्यसभा की वेबसाइट के जिस हिस्से में सांसदों की ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग उपलब्ध है, वहां गोगोई संबंधी कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है.
जब से गोगोई सांसद बने हैं, उन्होंने संसदीय कार्यवाही, यहां तक कि संसद में भाग लेने में भी बहुत कम दिलचस्पी दिखाई है. पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार, उनकी उपस्थिति केवल 30% है- हालांकि ऐसा भी हो सकता है कि उन्होंने उपस्थिति रजिस्टर पर हस्ताक्षर किए बिना भी कुछ दिनों में उपस्थित रहे हों.
द वायर ने सदन में उनकी ख़ामोशी और कम उपस्थिति के बारे में 2021 और 2022 में भी बताया था.
उल्लेखनीय है कि गोगोई के राज्यसभा सदस्य के तौर पर मनोनीत होने की यह कहते हुए व्यापक आलोचना हुई थी कि सरकार ने उन्हें उनके फैसलों (खासकर बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि मामले के) का ईनाम दिया है. हालांकि गोगोई ने इसका स्पष्टीकरण देते कहा था, ‘संसद में मेरी उपस्थिति विधायिका के समक्ष न्यायपालिका के विचारों को पेश करने और का एक अवसर होगा.’
साल 2021 में एनडीटीवी को दिए एक साक्षात्कार में उनकी कम उपस्थिति के बारे में पूछे जाने पर गोगोई ने कहा था, ‘मैं राज्यसभा तब जाता हूं जब मेरा मन करता है, जब मुझे लगता है कि महत्वपूर्ण मामले हैं जिन पर मुझे बोलना चाहिए. मैं मनोनीत सदस्य हूं, किसी पार्टी ह्विप द्वारा शासित नहीं हूं. इसलिए, जब भी पार्टी के सदस्यों के आने की बात होती है, मैं उस दायरे में नहीं आता.’
इन टिप्पणियों के लिए विपक्षी दलों के कई सांसदों ने उनके खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव पेश किए थे.
उल्लेखनीय है कि इसी सप्ताह अयोध्या मामले में फैसला देने वाली पीठ का हिस्सा रहे जस्टिस एस. अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है. उनकी नियुक्ति की भी व्यापक आलोचना हुई है.
नवंबर 2109 में अयोध्या मामले में फैसला देने वाली पांच जजों की पीठ के वे तीसरे ऐसे न्यायधीश हैं, जिन्हें मोदी सरकार द्वारा रिटायरमेंट के बाद किसी अन्य पद के लिए नामित किया गया है. उनसे पहले गोगोई के अलावा जस्टिस अशोक भूषण को जुलाई 2021 में सेवानिवृत्त होने के बाद उसी साल राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) का प्रमुख बनाया गया था.