सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई ने कहा- राज्यपालों को राजनीति में नहीं उतरना चाहिए

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी महाराष्ट्र में बीते साल उपजे राजनीतिक संकट, जिसके फलस्वरूप उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली एमवीए सरकार गिर गई थी, से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए की. 

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(फोटो साभार: Pinakpani/Wikimedia Commons, CC BY-SA 4.0)

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी महाराष्ट्र में बीते साल उपजे राजनीतिक संकट, जिसके फलस्वरूप उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली एमवीए सरकार गिर गई थी, से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए की.

(फोटो साभार: Pinakpani/Wikimedia Commons, CC BY-SA 4.0

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (15 फरवरी) को कहा कि ‘राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में नहीं उतरना चाहिए.’ शीर्ष अदालत महाराष्ट्र में बीते साल उपजे राजनीतिक संकट, जिसके कारण एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के विधायकों के एक धड़े ने अपना समर्थन वापस ले लिया था, जिससे उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली एमवीए सरकार गिर गई थी, से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रही थी.

लाइव लॉ के अनुसार, महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से बोलते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘हमारे पास दो दलीय व्यवस्था नहीं है. भारत बहुदलीय लोकतंत्र है. बहुदलीय लोकतंत्र का मतलब है कि हम गठबंधन के युग में हैं. गठबंधन दो तरह के होते हैं- चुनाव पूर्व गठबंधन, चुनाव बाद के गठबंधन. चुनाव के बाद आम तौर पर संख्या को पूरा करने के लिए एक अवसरवादी गठबंधन होता है, लेकिन चुनाव पूर्व गठबंधन एक सैद्धांतिक गठबंधन होता है. दो राजनीतिक दलों – भाजपा और शिवसेना के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन था. जैसा कि किहोटो बताते हैं, जब आप मतदाता के सामने जाते हैं, तो आप एक व्यक्तिगत उम्मीदवार के रूप में नहीं जाते हैं, बल्कि एक राजनीतिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिनिधि के रूप में जाते हैं, एक प्रतिनिधि जो जाकर कहता है, यह हमारा साझा विश्वास है, साझा एजेंडा है. मतदाता व्यक्तियों के लिए नहीं बल्कि उस विचारधारा या राजनीतिक दर्शन के लिए वोट करता है जिसे पार्टी प्रोजेक्ट कर रही होती है. हम ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ शब्द सुनते हैं. यहां, एक नेता (उद्धव ठाकरे) ने उन लोगों के साथ सरकार बनाई, जिनके खिलाफ उन्होंने चुनाव लड़ा (कांग्रेस और एनसीपी) और मतदाताओं ने एक विशेष पार्टी के खिलाफ नकारात्मक वोट दिया.

इस पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा की इस तरह के बयान राज्यपाल कार्यालय की तरफ से नहीं आने चाहिए. उन्होंने कहा, ‘कोई राज्यपाल इस तरह कैसे कह सकता है? सरकार के गठन पर राज्यपाल का यह बयान कैसे हो सकता है?’

द हिंदू के मुताबिक, उन्होंने जोड़ा, ‘जब वे सरकार बनाते हैं, तब राज्यपाल को विश्वासमत करवाना होता है… राज्यपाल को राजनीति में नहीं पड़ना चाहिए.’ मामले की सुनवाई कर रही पीठ में जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा हैं.

द ट्रिब्यून के अनुसार, न्यायाधीशों ने कहा कि इस मामले और इससे उपजने वाले संवैधानिक सवालों का राजनीति पर ‘बहुत गंभीर’ प्रभाव पड़ा है. पीठ ने कहा, ‘इस कारण जवाब देना एक कठिन संवैधानिक मुद्दा है क्योंकि दोनों ही के परिणामों का राजनीति पर गंभीर प्रभाव पड़ता है. यदि आप नबाम रेबिया (2016 में दिया गया सुप्रीम कोर्ट का निर्णय) मामले को देखें तो यह, जैसा कि हमने महाराष्ट्र में देखा है- किसी सदस्य के एक पार्टी से दूसरे दल में जाने की अनुमति देता है.’

पीठ ने जोड़ा, ‘दूसरे छोर पर यह स्थिति है कि भले ही राजनीतिक दल के नेता ने अपना लोगों को खो दिया हो, वह अपनी पकड़ बनाए रख सकता है. इसलिए, इसे अपनाने का मतलब राजनीतिक यथास्थिति सुनिश्चित करना होगा. हालांकि अगर हम नबाम रेबिया (निर्णय) के खिलाफ जाते हैं तो नेता ने विधायकों के एक समूह पर प्रभावी रूप से अपना नेतृत्व खो दिया है. आप जिसे भी स्वीकार करें, राजनीतिक स्पेक्ट्रम पर दोनों ही के बहुत गंभीर परिणाम होते हैं और दोनों वांछनीय नहीं हैं.’

उल्लेखनीय है कि 2016 में नबाम रेबिया मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था कि अगर स्पीकर को हटाने की पूर्व सूचना सदन के पास लंबित है, तो विधानसभा अध्यक्ष विधायकों की अयोग्यता की याचिका पर आगे नहीं बढ़ सकता. यह मामला प्रासंगिक है क्योंकि इसी तरह की स्थिति महाराष्ट्र में हुई थी – ठाकरे गुट ने शिंदे-समर्थक विधायकों की अयोग्यता की मांग की थी, जबकि विधानसभा उपाध्यक्ष नरहरि सीताराम ज़ीरवाल को हटाने के लिए नोटिस (शिंदे समूह की ओर से) लंबित था.