बीते 13 फरवरी को आईआईटी मद्रास में महाराष्ट्र के 27 वर्षीय रिसर्च स्कॉलर ने आत्महत्या कर ली. उसी दिन कैंपस में एक अन्य छात्र ने अपनी जान लेने की, जिसे बचा लिया गया. इन घटनाओं के बाद परिसर में विरोध की एक नई लहर शुरू हो गई है. छात्रों का कहना है कि आत्महत्याओं को रोकने के लिए प्रबंधन द्वारा बहुत कम प्रयास किया गया है.
चेन्नई: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (आईआईटी-मद्रास) परिसर के अंदर और बाहर के छात्र समूह संस्थान में लगातार आत्महत्याओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.
बीते 13 फरवरी को आईआईटी-मद्रास में महाराष्ट्र के 27 वर्षीय रिसर्च स्कॉलर स्टीफन सनी ने आत्महत्या कर ली. इसके अलावा उसी दिन कैंपस में एक अन्य छात्र ने आत्महत्या की कोशिश की, जिसे बचा लिया गया. इन घटनाओं के बाद परिसर में विरोध की एक नई लहर शुरू हो गई है.
छात्रों के अनुसार, परिसर में आत्महत्याओं को रोकने के लिए संस्थान प्रशासन द्वारा बहुत कम प्रयास किया गया है. मद्रास के इस प्रमुख संस्थान ने 2019 में कथित रूप से धार्मिक भेदभाव का सामना करने वाली छात्रा फातिमा लतीफ की आत्महत्या के बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों का सामना किया था.
सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत प्राप्त जानकारी का हवाला देते हुए छात्रों का कहना है कि आईआईटी-मद्रास में देश में किसी भी अन्य आईआईटी की तुलना में सबसे अधिक आत्महत्याएं हुई हैं. पिछले 10 वर्षों में इस कैंपस में 14 आत्महत्याओं की सूचना दी है.
संयोग से आईआईटी-मद्रास में नवीनतम आत्महत्या का मामला आईआईटी-बॉम्बे में प्रथम वर्ष के छात्र की आत्महत्या के एक दिन बाद आया है. अहमदाबाद के रहने वाले दर्शन सोलंकी की 12 फरवरी को आईआईटी परिसर के एक छात्रावास की इमारत की सातवीं मंजिल से कथित तौर पर छलांग लगाने से मौत हो गई थी.
स्थानीय पुलिस ने आईआईटी-मद्रास में आत्महत्या के लिए मृतक के ‘व्यक्तिगत कारणों’ को जिम्मेदार ठहराया है, वहीं, परिसर में छात्रों ने 13-14 फरवरी को रातभर विरोध प्रदर्शन किया और प्रशासन से कैंपस में लगातार हो रहे आत्महत्याओं के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की.
नाम न छापने की शर्त पर एक छात्र ने कहा, ‘उनका (सनी का) सोमवार दोपहर बाद निधन हो गया था और छात्रों को इसका पता काफी बाद में चला. हमें प्रशासन से सूचना मिली, जिसमें आत्महत्या का कोई उल्लेख नहीं था. इसमें केवल एक ‘दुर्भाग्यपूर्ण निधन’ का जिक्र था.’
छात्र का कहना है कि इसके बाद छात्रों ने विरोध शुरू कर दिया, जो सोमवार (13 फरवरी) रात भर जारी रहा. उन्होंने कहा, ‘रजिस्ट्रार सहित प्रशासन के कई सदस्यों ने हमसे बात की, लेकिन हमने निदेशक से बात करने पर जोर दिया, क्योंकि हमारी विभिन्न मांगें थीं.’
छात्रों ने तनाव से संबंधित मुद्दों के लिए कैंपस में एक वेलनेस सेंटर की आवश्यकता के बारे में भी बताया, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है. छात्रों ने बताया कि कैसे एक केंद्र के लिए उनसे वेलनेस फीस लिया जा रहा है, जो छात्रों की मदद के लिए पर्याप्त नहीं कर रहा.
मंगलवार (14 फरवरी) को सुबह करीब 7 बजे आईआईटी-मद्रास के निदेशक प्रोफेसर वी. कामकोटि ने प्रदर्शनकारी छात्रों से मुलाकात की. छात्रों ने विभिन्न शिकायतें कीं. निदेशक ने मुद्दों को सुलझाने के लिए एक मीटिंग आयोजित करने का वादा किया. उन्होंने कहा कि बैठक 10 दिनों में होगी. छात्रों ने कहा, ‘हम इसका इंतजार कर रहे हैं.’
छात्र का यह भी कहना है कि प्रशासन ने रिसर्च स्कॉलर की आत्महत्या के बारे में पर्याप्त खुलासा नहीं करने के लिए ‘गोपनीयता कारणों’ का हवाला दिया है.
इसी बीच, आईआईटी-मद्रास के एक छात्र समूह आंबेडकर पेरियार स्टडी सर्कल (एपीएससी) ने एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ भेदभाव के मुद्दों पर एक सक्रिय प्रकोष्ठ (Cell) बनाने की मांग की.
एक अन्य छात्र समूह, चिंताबार (ChintaBAR) ने मांग की कि आईआईटी-मद्रास के छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य का अध्ययन किया जाए. उत्पीड़न को एक कारक के रूप में शामिल करके विभागीय शिकायत निवारण प्रकोष्ठ के दायरे का विस्तार किया जाए और परिसर में होने वाली मौतों की जांच के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया का मसौदा तैयार किया जाए.
साल 2019 के विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने वाले एक छात्र ने कहा, ‘प्रशासन ने शुरू में कहा था कि वे पूरा सहयोग करेंगे, लेकिन इससे कुछ नहीं निकला. फातिमा लतीफ की घटना के बाद भी इस मुद्दे को देखने के लिए प्रभावी रूप से कोई कदम नहीं उठाया गया.’
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने बाद में निष्कर्ष निकाला कि फातिमा लतीफ ने होम सिकनेस और कुछ मनोवैज्ञानिक मुद्दों के कारण खुदकुशी का कदम उठाया था.
छात्रों का आरोप है कि संस्थान प्रशासन आसानी से मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करता है, लेकिन आत्महत्या के संभावित कारण के रूप में छात्रों द्वारा सामना किए जाने वाले भेदभाव को स्वीकार करने से इनकार करता है.
छात्र ने कहा, ‘हाल के विरोध के दौरान भी भेदभाव की कोई चर्चा नहीं हुई. भेदभाव के बारे में चर्चा किए बिना इसे केवल मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे के रूप में संबोधित करने से कोई मदद नहीं मिलने वाली है.’
तमिलनाडु चैप्टर के स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के नेता निरुबन चक्रवर्ती के अनुसार, ‘फातिमा लतीफ के मामले में हॉस्टल के कमरे में फांसी लगाने के लिए रस्सी तक उसकी पहुंच को लेकर भी सवाल उठाए गए थे.’
एसएफआई ने 14 फरवरी को आईआईटी-मद्रास के बाहर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया और कैंपस में लगातार हो रही आत्महत्याओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग की.
चक्रवर्ती ने कहा, ‘हाल ही में हुई आत्महत्या में भी इस तरह के सवाल उठ रहे हैं. प्रशासन न तो इस तरह के सवालों का जवाब दे रहा है और न ही इन मुद्दों पर कोई कार्रवाई कर रहा है.’
चक्रवर्ती यह भी बताते हैं कि कैसे आईआईटी में फैकल्टी भर्ती में आरक्षण का पालन नहीं किया जा रहा है, जो कथित रूप से उत्पीड़ित और हाशिये के समुदायों के छात्रों के खिलाफ एक माहौल बनाता है.
उन्होंने कहा, ‘हम मांग करते हैं कि रोहित वेमुला अधिनियम को इस भेदभाव को समाप्त करने के लिए लागू किया जाए, जो (छात्रों को) आत्महत्याओं की ओर ले जाता है.’
तमिलनाडु में शैक्षिक अधिकारों के मुद्दे पर काम करने वाले एक कार्यकर्ता प्रिंस गजेंद्र बाबू बताते हैं कि भेदभाव और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों की समस्या न केवल आईआईटी बल्कि पूरे देश में उच्च शिक्षा संस्थानों को प्रभावित करती है.
यह आरोप लगाते हुए कि देश भर के संस्थान परिसरों में हो रहे अत्याचारों को पहचानने से इनकार कर रहे हैं, बाबू ने कहा, ‘जब रोहित वेमुला की मृत्यु हुई, तो अकेले हैदराबाद में ऐसी कम से कम छह अन्य घटनाएं हुई थीं. हम में से कई चाहते थे कि यह रोहित वेमुला के साथ खत्म हो, लेकिन मुथुकृष्णन ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में आत्महत्या की. नजीब लापता हो गया. आईआईटी में बड़े पैमाने पर आत्महत्याएं होती रही हैं.’
उन्होंने कहा, ‘यह सांप्रदायिक, जातिवादी, लिंग या आर्थिक दुर्व्यवहार भी हो सकता है, लेकिन परिसर में दुर्व्यवहार है. जब तक हम इसे नहीं पहचानेंगे, कुछ होने वाला नहीं है. संस्थानों को अपने परिसरों में हो रहे अत्याचारों को पहचानने और स्वीकार करने की आवश्यकता है और फिर एक विशेष प्रकार के दुर्व्यवहार को रोकने के लिए एक तंत्र के साथ आना चाहिए.’
उन्होंने आगे कहा, ‘दुर्भाग्य से संस्थान ऐसा करने से मना करते हैं. मीडिया लगातार इसके बारे में बात नहीं करता है और यह मुद्दा अनसुलझा रहता है. यदि उच्च शिक्षा संस्थानों में आत्महत्या को समाप्त करने के बारे में किसी तरह की दृढ़ता है, तो इसे परिसरों में समस्या को स्वीकार करके शुरू करना चाहिए.’
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