अडानी-हिंडनबर्ग केस: सुप्रीम कोर्ट जांच समिति गठित करेगा, केंद्र द्वारा प्रस्तावित नाम ख़ारिज

अडानी समूह पर हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट और उसके परिणामों को लेकर कई याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि अदालत अपनी ख़ुद की एक समिति नियुक्त करेगी. इस दौरान केंद्र द्वारा सीलबंद लिफाफे में सुझाए गए समिति के सदस्यों के नामों को अपारदर्शी बताकर शीर्ष अदालत ने ख़ारिज कर दिया.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

अडानी समूह पर हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट और उसके परिणामों को लेकर कई याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि अदालत अपनी ख़ुद की एक समिति नियुक्त करेगी. इस दौरान केंद्र द्वारा सीलबंद लिफाफे में सुझाए गए समिति के सदस्यों के नामों को अपारदर्शी बताकर शीर्ष अदालत ने ख़ारिज कर दिया.

भारत का सर्वोच्च न्यायालय. (फोटो: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित नामों को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (17 फरवरी) को कहा कि वह अडानी-हिंडनबर्ग मामलों को ध्यान में रखते हुए नियामक तंत्र की समीक्षा के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन करेगा.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट और उसके परिणामों पर कई याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली तीन जजों की पीठ की अध्यक्षता करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘अदालत ‘पूर्ण पारदर्शिता’ बनाए रखना चाहती थी. अदालत अपनी खुद की एक समिति नियुक्त करेगी, जो प्रक्रिया में विश्वास की भावना को बढ़ावा देगी.’

सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान सील कवर में दी गई समिति के सदस्यों को लेकर केंद्र की सिफारिशों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. अदालत ने याचिकाकर्ताओं की ओर से भी किसी भी नाम को सिफारिश को स्वीकार करने से इनकार कर दिया.

लाइव लॉ के मुताबिक, सीलबंद कवर में केंद्र सरकार द्वारा दिए गए प्रस्तावित नामों को खारिज करते हुए पीठ ने कहा, अदालत ‘पूर्ण (सार्वजनिक) विश्वास’ सुनिश्चित करने के लिए समिति का गठन करेगी.

एनडीटीवी के अनुसार, सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘यह हमें तय करने के लिए छोड़ दें. हम पूर्ण पारदर्शिता चाहते हैं. यदि हम (इन) सुझावों को स्वीकार करते हैं, तो इसे सरकार द्वारा नियुक्त समिति के रूप में देखा जाएगा, जो हम नहीं चाहते हैं.

उन्होंने यह भी कहा, ‘हम नियामक विफलता के अनुमान के साथ शुरुआत नहीं कर सकते.’

अडानी समूह विवाद पर याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई करते हुए अदालत ने पिछले हफ्ते भारतीय निवेशकों की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार और सेबी से अपना पक्ष रखने को कहा था, तब केंद्र सरकार ने अदालत को सूचित किया था कि उसे समिति के गठन से कोई दिक्कत नहीं.

इस दौरान उसने अदालत से आग्रह किया था कि इसके दायरे को इस तरह से परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए कि विदेशी और घरेलू निवेशकों को लगे कि नियामक ढांचे में गुणवत्ता की कमी है.

याचियाचिकाकर्ताओं में से एक विशाल शर्मा ने अदालत से कहा कि वह ‘बैंकों द्वारा दिए जा रहे ऋणों के लिए शेयरों का उचित मूल्यांकन’ और साथ ही अडानी कंपनियों का ऑडिट चाहते हैं.

शर्मा द्वारा दायर एक जनहित याचिका में हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट की जांच के लिए शीर्ष अदालत के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में एक समिति गठित करने का केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है.

वकील एमएल शर्मा ने एक अन्य याचिका दायर की थी, जिसमें अमेरिका की वित्तीय शोध कंपनी ‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ के नाथन एंडरसन और भारत तथा अमेरिका में उनके सहयोगियों के खिलाफ कथित रूप से निर्दोष निवेशकों का शोषण करने और अडानी समूह के शेयर के मूल्य को ‘कृत्रिम तरीके’ से गिराने के लिए मुकदमा चलाने की मांग की गई थी.

एक वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक विशेष जांच दल गठित करने की मांग की.

एनडीटीवी के अनुसार, सरकारी वकील तुषार मेहता ने कहा, ‘हम (अडानी समूह के) प्रवर्तकों या हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर जांच पर आपत्ति नहीं कर रहे हैं. सेबी और सभी नियामकों ने अब तक अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया है.’

मालूम हो कि अमेरिकी निवेश अनुसंधान फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे, जिसके बाद समूह की कंपनियों के शेयरों में पिछले कुछ दिन में भारी गिरावट आई है. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है.

रिपोर्ट सामने आने के बाद अडानी समूह ने बीते 26 जनवरी को कहा था कि वह अपनी प्रमुख कंपनी के शेयर बिक्री को नुकसान पहुंचाने के प्रयास के तहत ‘बिना सोचे-विचारे’ काम करने के लिए हिंडनबर्ग रिसर्च के खिलाफ ‘दंडात्मक कार्रवाई’ को लेकर कानूनी विकल्पों पर गौर कर रहा है.

इसके जवाब में हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा था कि वह अपनी रिपोर्ट पर पूरी तरह कायम है. कंपनी ने यह भी कहा था कि अगर अडानी समूह गंभीर है, तो उसे अमेरिका में भी मुकदमा दायर करना चाहिए, जहां हम काम करते हैं. हमारे पास कानूनी प्रक्रिया के दौरान मांगे जाने वाले दस्तावेजों की एक लंबी सूची है.

इसके बाद बीते 30 जनवरी को अडानी समूह ने हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों के जवाब में 413 पृष्ठ का ‘स्पष्टीकरण’ जारी किया था. अडानी समूह ने इन आरोपों के जवाब में कहा था कि यह हिंडनबर्ग द्वारा भारत पर सोच-समझकर किया गया हमला है. समूह ने कहा था कि ये आरोप और कुछ नहीं सिर्फ ‘झूठ’ हैं.

समूह ने कहा था, ‘यह केवल किसी विशिष्ट कंपनी पर एक अवांछित हमला नहीं है, बल्कि भारत, भारतीय संस्थाओं की स्वतंत्रता, अखंडता और गुणवत्ता, तथा भारत की विकास गाथा और महत्वाकांक्षाओं पर एक सुनियोजित हमला है.’

अडानी समूह के इस जवाब पर पलटवार करते हुए हिंडनबर्ग समूह की ओर से बीते 31 जनवरी को कहा गया था कि धोखाधड़ी को ‘राष्ट्रवाद’ या ‘कुछ बढ़ा-चढ़ाकर प्रतिक्रिया’ से ढका नहीं जा सकता. भारत एक जीवंत लोकतंत्र और उभरती महाशक्ति है. अडानी समूह ‘व्यवस्थित लूट’ से भारत के भविष्य को रोक रहा है.

हिंडनबर्ग की ओर से कहा गया था, ‘हम असहमत हैं. स्पष्ट होने के लिए हम मानते हैं कि भारत एक जीवंत लोकतंत्र है और एक रोमांचक भविष्य के साथ एक उभरती हुई महाशक्ति है. हम यह भी मानते हैं कि भारत का भविष्य अडानी समूह द्वारा रोका जा रहा है, जिसने देश को व्यवस्थित रूप से लूटते हुए खुद को राष्ट्रवाद के आवरण में लपेट लिया है.’

हिंडनबर्ग रिसर्च ने प्रतिक्रिया में कहा कि धोखाधड़ी, धोखाधड़ी ही होती है चाहे इसे दुनिया के सबसे अमीर आदमी ने अंजाम क्यों न दिया हो.