भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित ने कहा कि हमारे पास कॉलेजियम प्रणाली से बेहतर व्यवस्था नहीं है. न्यायपालिका सक्षम उम्मीदवारों की योग्यता पर फैसला करने के लिहाज़ से बेहतर स्थिति में होती है, क्योंकि वहां उनके काम को सालों तक देखा जाता है.
नई दिल्ली: पूर्व प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस यूयू ललित ने एक बार फिर कॉलेजियम प्रणाली का समर्थन करते हुए कहा है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की यह प्रणाली एक तरह से संपूर्ण मॉडल है.
उन्होंने कहा, ‘मेरे हिसाब से हमारे पास कॉलेजियम प्रणाली से बेहतर व्यवस्था नहीं है. गुणवत्ता के लिहाज से अगर हमारे पास इससे बेहतर कुछ नहीं है तो हमें इस दिशा में काम करना चाहिए कि यह प्रणाली अस्तित्व में रहे. आज हम जिस मॉडल पर काम करते हैं, वह लगभग संपूर्ण है.’
बीते शनिवार को आयोजित ‘न्यायिक नियुक्तियां और सुधार’ पर ‘कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल एकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स’ (सीजेएआर) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पूर्व सीजेआई जस्टिस यूयू ललित ने यह टिप्पणी की.
बीते साल 8 नवंबर को सेवानिवृत्त हुए जस्टिस ललित ने कहा कि न्यायपालिका सक्षम उम्मीदवारों की योग्यता पर फैसला करने के लिहाज से बेहतर स्थिति में होती है, क्योंकि वहां उनके काम को सालों तक देखा जाता है.
इससे पहले नवंबर 2022 में उन्होंने न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली का बचाव करते हुए जस्टिस यूयू ललित ने कहा था कि यह सेकंड जजेस मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की राय से अस्तित्व में आई थी और यह स्थापित मानदंडों के अनुसार काम करती है.
उन्होंने कहा था, ‘यह पांच न्यायाधीशों का निष्कर्ष था कि कॉलेजियम प्रणाली आदर्श है और हमें इसी प्रणाली का पालन करना चाहिए. यह आज जिस स्थिति में है, वह एकदम सही है.’
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) को लाने के प्रयासों का जिक्र करते हुए पूर्व सीजेआई ने कहा था, ‘यह प्रयास सही नहीं पाया गाया. अदालत ने तो यहां तक कह दिया कि इस तरह का प्रयास बुनियादी ढांचे का उल्लंघन होगा.’
उल्लेखनीय है कि जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली बीते कुछ समय से केंद्र और न्यायपालिका के बीच गतिरोध का विषय बनी हुई है, जहां कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू कई बार विभिन्न प्रकार की टिप्पणियां कर चुके हैं.
दिसंबर 2022 में संपन्न हुए संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान रिजिजू सुप्रीम कोर्ट से जमानत अर्जियां और ‘दुर्भावनापूर्ण’ जनहित याचिकाएं न सुनने को कह चुके हैं, इसके बाद उन्होंने अदालत की छुट्टियों पर टिप्पणी करने के साथ कोर्ट में लंबित मामलों को जजों की नियुक्ति से जोड़ते हुए कॉलेजियम के स्थान पर नई प्रणाली लाने की बात दोहराई थी.
इससे पहले भी रिजिजू न्यायपालिका, सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम प्रणाली को लेकर आलोचनात्मक बयान देते रहे हैं.
नवंबर 2022 में किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम व्यवस्था को ‘अपारदर्शी और एलियन’ बताया था. उनकी टिप्पणी को लेकर शीर्ष अदालत ने नाराजगी भी जाहिर की थी.
सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम की विभिन्न सिफारिशों पर सरकार के ‘बैठे रहने’ संबंधी आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए रिजिजू ने कहा था कि ऐसा कभी नहीं कहा जाना चाहिए कि सरकार फाइलों पर बैठी हुई है.
नवंबर 2022 में ही सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि सरकार का कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नाम रोके रखना अस्वीकार्य है. कॉलेजियम प्रणाली के बचाव में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि संवैधानिक लोकतंत्र में कोई भी संस्था परफेक्ट नहीं है.
दिसंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली इस देश का कानून है और इसके खिलाफ टिप्पणी करना ठीक नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसके द्वारा घोषित कोई भी कानून सभी हितधारकों के लिए ‘बाध्यकारी’ है और कॉलेजियम प्रणाली का पालन होना चाहिए.
वहीं, बीते जनवरी (2023) माह की शुरुआत में रिजिजू ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखते हुए कहा था कि केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को हाईकोर्ट के कॉलेजियम में जगह दी जानी चाहिए. विपक्ष ने इस मांग की व्यापक तौर पर निंदा की थी.
बीते 22 जनवरी को ही रिजिजू ने दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आरएस सोढ़ी के एक साक्षात्कार का वीडियो साझा करते हुए उनके विचारों का समर्थन किया था. सोढ़ी ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने खुद न्यायाधीशों की नियुक्ति का फैसला कर संविधान का ‘अपहरण’ (Hijack) किया है.
वहीं, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी रिजिजू की तरह ही न्यायपालिका पर बीते कुछ समय से हमलावर रहे हैं. 7 दिसंबर 2022 को राज्यसभा के सभापति के रूप में अपने पहले भाषण में जगदीप धनखड़ ने एनजेएसी अधिनियम निरस्त करने के लिए न्यायपालिका की आलोचना की थी.
तब उन्होंने कहा था, ‘लोकतांत्रिक इतिहास में इस तरह की घटना का कोई उदाहरण नहीं है, जहां एक विधिवत वैध संवैधानिक विधि को न्यायिक रूप से पहले की स्थिति में लाया गया हो. यह संसदीय संप्रभुता के गंभीर समझौते और लोगों के जनादेश की अवहेलना का एक ज्वलंत उदाहरण है, जिनके संरक्षक यह सदन और लोकसभा हैं.’
यह पहली बार नहीं था जब धनखड़ ने उपराष्ट्रपति बनने के बाद एनजेएसी को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की थी.
2 दिसंबर 2022 को भी उन्होंने कहा था कि वह ‘हैरान’ थे कि शीर्ष अदालत द्वारा एनजेएसी कानून को रद्द किए जाने के बाद संसद में कोई चर्चा नहीं हुई. उससे पहले उन्होंने संविधान दिवस (26 नवंबर 2022) के अवसर पर हुए एक कार्यक्रम में भी ऐसी ही टिप्पणी की थी.
वहीं, बीते जनवरी माह की शुरुआत में उपराष्ट्रपति धनखड़ फिर से न्यायपालिका पर हमलावर हो गए थे और 1973 के केशवानंद भारती फैसले को ‘गलत परंपरा’ करार दे दिया था.