बीते वर्ष 30 अक्टूबर को गुजरात के मोरबी शहर में माच्छू नदी पर बने केबल पुल के अचानक टूटने से 140 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी.
मोरबी: गुजरात के मोरबी में बीते अक्टूबर माह में हुए पुल हादसे में 140 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. हादसे की जांच के लिए राज्य सरकार ने एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था, जिसकी प्रारंभिक जांच में उन कुछ प्रमुख कमियों के बारे में बताया गया है जिनके चलते पुल टूटा था.
उन कमियों में केबल पर लगे आधे तारों में जंग लगना और पुराने सस्पेंडर्स को नए के साथ वेल्डिंग कर देना शामिल है.
एनडीटीवी के मुताबिक, ये निष्कर्ष पांच सदस्यीय एसआईटी द्वारा दिसंबर 2022 में सौंपी गई ‘मोरबी पुल हादसे पर प्रारंभिक रिपोर्ट’ का हिस्सा हैं. यह रिपोर्ट हाल ही में राज्य शहरी विकास विभाग द्वारा मोरबी नगर पालिका के साथ साझा की गई थी.
भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी राजकुमार बेनीवाल, भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी सुभाष त्रिवेदी, राज्य सड़क एवं भवन विभाग के एक सचिव एवं मुख्य अभियंता और स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के एक प्रोफेसर उक्त एसआईटी के सदस्य थे.
गौरतलब है कि मच्छू नदी पर ब्रिटिश काल के पुल के संचालन और रखरखाव का जिम्मा अजंता मैन्युफैक्चरिंग लिमिटेड (ओरेवा ग्रुप) के पास था. पुल 30 अक्टूबर 2022 को टूट गया था.
एसआईटी ने पुल की मरम्मत, रखरखाव और संचालन में कई खामियां पाईं हैं. उसने पाया है कि माच्छू नदी पर 1887 में तत्कालीन शासकों द्वारा बनाए गए पुल के दो मुख्य केबल में से एक केबल में जंग की दिक्कत थी.
रिपोर्ट में संभावना जताई गई है कि इसके लगभग आधे तार 30 अक्टूबर की शाम को केबल टूटने से पहले ही टूट चुके हों.
एसआईटी के अनुसार, नदी के ऊपर की ओर की मुख्य केबल टूटने से यह हादसा हुआ था. एसआईटी रिपोर्ट कहती है कि प्रत्येक केबल सात मोटे तारों से बनी थी, प्रत्येक तार में सात स्टील के तार थे. इस केबल को बनाने के लिए कुल 49 तारों को सात मोटे तारों में जोड़ा गया था.
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘यह पाया गया कि 49 तारों में से 22 में जंग लगी हुई थी, जो इंगित करता है कि वे तार घटना से पहले ही टूट गए होंगे. बाकी बचे 27 तार बाद में टूट गए.’
साथ ही, एसआईटी ने पाया कि पुल के नवीनीकरण कार्य के दौरान, पुराने सस्पेंडर्स (स्टील की छड़ें जो केबल को प्लेटफॉर्म डेक से जोड़ती हैं) की नए सस्पेंडर्स के साथ वेल्डिंग कर दी गई थी. इसलिए सस्पेंडर्स का व्यवहार बदल गया.
बता दें कि कि मोरबी नगर पालिका ने सामान्य बोर्ड की मंजूरी के बिना ओरेवा ग्रुप (अजंता मैन्युफैक्चरिंग लिमिटेड) को पुल के रखरखाव और संचालन का ठेका दिया था. एक निजी कंपनी द्वारा मरम्मत किए जाने के बाद पुल को 26 अक्टूबर को लोगों के लिए फिर से खोला गया था.
एसआईटी का कहना है कि पुल टूटने के समय उस पर लगभग 300 व्यक्ति थे, जो पुल की भार वहन क्षमता से कहीं अधिक संख्या थी. हालांकि, एसआईटी ने साथ ही कहा है कि पुल की वास्तविक क्षमता की पुष्टि प्रयोगशाला की रिपोर्ट आने के बाद होगी.
जांच रिपोर्ट में इस ओर भी इशारा किया गया है कि अलग-अलग लकड़ी के तख्तों को एल्यूमीनियम डेक के साथ बदलने ने भी हादसे में भूमिका निभाई.
रिपोर्ट कहती है, ‘पुल पर चलने वाला ढांचा (वॉकिंग स्ट्रक्चर) लचीले लकड़ी के तख्तों के बजाय कठोर एल्युमीनियम पैनलों से बना था. यदि अलग-अलग लकड़ी के तख्ते होते (जो नवीकरण से पहले थे), तो मरने वालों की संख्या कम हो सकती थी. इसके अलावा पुल खोलने से पहले कोई भार परीक्षण नहीं किया गया था.’
एसआईटी ने कहा कि एल्युमीनियम के उपयोग से पुल का समग्र वजन भी बढ़ सकता है.
बता दें कि मोरबी पुलिस ओरेवा ग्रुप के प्रबंध निदेशक जयसुख पटेल सहित दस आरोपियों को आईपीसी की धारा 304, 308, 336, 337 और 338 के तहत गिरफ्तार कर चुकी है.