पटना हाईकोर्ट के सात जजों ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उनके सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) एकाउंट को क़ानून और न्याय मंत्रालय से प्राप्त राय के आधार पर बिहार के महालेखाकार द्वारा बंद कर दिया गया है, जिससे उनके पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों को लेकर अनिश्चितता की स्थिति खड़ी हो गई है.
नई दिल्ली: पटना हाईकोर्ट के सात जजों ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में शिकायत की कि उनके सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) खातों को कानून और न्याय मंत्रालय से प्राप्त राय के आधार पर बिहार के महालेखाकार द्वारा बंद कर दिया गया है, जिससे उनकी पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों को लेकर अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न हो गई है.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, जस्टिस शैलेंद्र सिंह, अरुण कुमार झा, जितेंद्र कुमार, आलोक कुमार पांडेय, सुनील दत्ता मिश्रा, चंद्र प्रकाश सिंह और चंद्र शेखर झा द्वारा संयुक्त रूप से दायर याचिका का जब अधिवक्ता प्रेम प्रकाश ने जल्द सुनवाई के लिए उल्लेख किया, तो सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने आश्चर्य व्यक्त किया.
पीठ उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के जीपीएफ एकाउंट को अचानक बंद करने के संबंध में उनकी याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई के लिए सहमत हो गया.
इन न्यायाधीशों को अप्रैल 2010 में बिहार की सुपीरियर न्यायिक सेवाओं के तहत सीधी भर्ती के रूप में अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था. उन्हें पिछले साल हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था.
रिपोर्ट के अनुसार, जब वे न्यायिक अधिकारी थे, तब वे राष्ट्रीय पेंशन योजना का हिस्सा थे. 2016 में बिहार सरकार ने एक नीति बनाई कि नई पेंशन योजना से पुरानी पेंशन योजना में जाने वाले लोग अपनी एनपीएस योगदान राशि वापस पाने के हकदार होंगे और इसे या तो उनके बैंक खाते में रखा जा सकता है या जीपीएफ खाते में जमा किया जा सकता है.
न्यायाधीश नियुक्त होने पर उन्हें एक-एक जीपीएफ खाता दिया गया, जहां से निकालकर एनपीएस अंशदान राशि जमा की.
पिछले साल नवंबर में महालेखाकार ने कानून और न्याय मंत्रालय से इन न्यायाधीशों द्वारा एनपीएस योगदान को जीपीएफ खातों में स्थानांतरित करने की वैधता के बारे में स्पष्टीकरण मांगा था.