पिछले साल 23 मार्च को ब्रिटेन के मानवविज्ञानी फिलिपो ओसेला को तिरुवनंतपुरम में एक सम्मेलन में भाग लेना था, हालांकि बिना कोई स्पष्ट कारण बताए हवाई अड्डे पर पहुंचने पर उन्हें वापस उनके देश भेज दिया गया था. केंद्र सरकार के निर्वासन आदेश को उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
नई दिल्ली: ब्रिटेन के मानवविज्ञानी फिलिपो ओसेला के निर्वासन को सही ठहराते हुए केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट से कहा है कि जाति और धर्म जैसे मुद्दों पर शोध ‘संवेदनशील’ है और इस तरह का शोध करना वीजा मानदंडों का उल्लंघन था.
ओसेला ब्रिटेन के ससेक्स विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ ग्लोबल स्टडीज के मानव विज्ञान विभाग में मानव विज्ञान और दक्षिण एशियाई अध्ययन की प्रोफेसर हैं. वह केरल के विशेषज्ञ हैं और केरल में मछुआरा समुदाय पर अनुसंधान में शामिल रहे हैं. उन्होंने राज्य में 30 से अधिक वर्षों तक सके सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन पर व्यापक शोध किया है.
पिछले साल 23 मार्च को फिलिपो ओसेला को तिरुवनंतपुरम में एक सम्मेलन में भाग लेना था, हालांकि बिना कोई स्पष्ट कारण बताए हवाई अड्डे पर पहुंचने पर उन्हें डिपोर्ट (वापस उनके देश भेज दिया गया था) कर दिया गया था.
इसके बाद ओसेला ने अपने निर्वासन आदेश को रद्द करने की मांग की थी.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, गृह मंत्रालय में इमिग्रेशन ब्यूरो के फॉरेनर्स रिजीनल रजिस्ट्रेशन अधिकारी के माध्यम से दायर अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने दावा किया कि जाति, धर्म और अर्थव्यवस्था जैसे विषय ‘संवेदनशील’ हैं और उन पर शोध ने वीजा मानदंडों का उल्लंघन किया है.
सरकार की ओर से कहा गया है, ‘याचिकाकर्ता टूरिस्ट वीजा पर अपने दौरे के दौरान जाति, धर्म और अर्थव्यवस्था से जुड़ी शोध गतिविधियों में लिप्त रहे हैं, जो अपनी प्रकृति से ही संवेदनशील है, जिससे वीजा मानदंडों का उल्लंघन होता है.’
इंडियन एक्सप्रेस ने खबर दी है कि केंद्र सरकार ने इस साल 17 जनवरी को यह हलफनामा दायर किया था. इंडियन एक्सप्रेस और लाइव लॉ दोनों ने 23 फरवरी को इस संबंध में रिपोर्ट प्रकाशित की है.
ब्रिटिश मानवविज्ञानी फिलिपो ओसेला ने द वायर को बताया कि मामले की अगली सुनवाई 14 मई को है.
ओसेला ने कहा, ‘जैसा कि मैं इसे समझ पा रहा हूं, भारत सरकार ने हाईकोर्ट में मेरी मूल याचिका के जवाब में एक जवाबी हलफनामा दायर किया है. जज ने 14 मई, 2023 को होने वाली सुनवाई में जवाबी हलफनामे पर विचार करने का फैसला किया और मुझे जवाबी हलफनामे में लगाए गए आरोपों का जवाब पेश करने की अनुमति दी. चूंकि मामला विचाराधीन है, इसलिए इस स्तर पर मेरे लिए कोई टिप्पणी करना अनुचित होगा. एक बार मामला समाप्त हो जाने के बाद मैं आपको गहन प्रतिक्रिया और टिप्पणी प्रदान कर सकता हूं.’
केंद्र सरकार ने इससे पहले 12 अक्टूबर 2022 को दिल्ली हाईकोर्ट को बताया था कि फिलिपो ओसेला को ‘काली सूची में डालने और कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त सामग्री’ थी.
नए हलफनामे में दावा किया गया है कि एक विदेशी नागरिक को निष्कासित करने की सरकार की शक्तियां ‘पूर्ण और असीमित’ है और विदेशियों को भारतीयों को दिए गए मौलिक अधिकारों का लाभ नहीं मिलता है.
सरकार के हलफनामे में कहा गया है, यह बताया गया है कि जिस तरह से केरल में अपने शोध कार्य को पूरा करने के लिए याचिकाकर्ता को विदेशी धन मिलता है, वह राष्ट्रीय सुरक्षा चिंता का एक क्षेत्र है, क्योंकि याचिकाकर्ता द्वारा भारत में अपने शोध कार्य के लिए प्राप्त धन के उपयोग का कोई लेखा-जोखा नहीं रहता है.
सरकार ने यह भी दावा किया कि भारत में प्रोफेसर ओसेला के प्रवेश से ‘कई गंभीर सुरक्षा चिंताएं’ हो सकती थीं.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया में यह भी कहा कि विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (फेमा), अकादमिक उद्देश्यों के लिए विदेशी योगदानकर्ताओं को अधिकारियों की जांच से छूट देता है. फंड को विश्वविद्यालयों के माध्यम से भेजा जाना चाहिए, ताकि एक रिकॉर्ड बनाए रखा जा सके. सरकार ने दावा किया कि प्रोफेसर ओसेला के मामले में धन का लेन-देन फेमा के खिलाफ है.
प्रोफेसर ओसेला ने अपनी प्रतिक्रिया में दावा किया कि उनके पास किसी भी गैरकानूनी गतिविधियों का कोई रिकॉर्ड नहीं है और न ही निर्वासित होने से पहले उन्हें आव्रजन (Immigration) में किसी समस्या का सामना करना पड़ा था.
उन्होंने यह भी कहा कि जब उन्हें निर्वासित किया जा रहा था, तब कोई कारण नहीं बताया गया था और पूरे प्रकरण को मनमाने तरीके से नियंत्रित किया गया. उन्होंने कहा कि उनके साथ एक ‘खूंखार अपराधी’ की तरह व्यवहार किया गया और ‘उसी विमान में भारत से वापस भेज दिया गया’, जिससे वह यहां पहुंचे थे.
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