प्रसार भारती ने ख़बरों के लिए आरएसएस समर्थित समाचार एजेंसी के साथ क़रार किया

देश के सार्वजनिक प्रसारक प्रसार भारती द्वारा आरएसएस समर्थित समाचार एजेंसी हिंदुस्तान समाचार के साथ एक विशेष अनुबंध किया गया है, जिसके तहत वह दो साल की अवधि के लिए एजेंसी को क़रीब 8 करोड़ रुपये देगा. इससे पहले 2020 में प्रसार भारती ने प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के साथ अपना सब्सक्रिप्शन रद्द कर दिया था.

(सभी फोटो साभार: संबंधित वेबसाइट्स)

देश के सार्वजनिक प्रसारक प्रसार भारती द्वारा आरएसएस समर्थित समाचार एजेंसी हिंदुस्तान समाचार के साथ एक विशेष अनुबंध किया गया है, जिसके तहत वह दो साल की अवधि के लिए एजेंसी को क़रीब 8 करोड़ रुपये देगा. इससे पहले 2020 में प्रसार भारती ने प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के साथ अपना सब्सक्रिप्शन रद्द कर दिया था.

(सभी फोटो साभार: संबंधित वेबसाइट्स)

नई दिल्ली: भारत का अपना सार्वजनिक प्रसारक प्रसार भारती अपने दैनिक समाचार फीड के लिए अब पूरी तरह से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) समर्थित समाचार एजेंसी हिंदुस्तान समाचार पर निर्भर होगा.

दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो चलाने वाले प्रसार भारती ने हिंदुस्तान समाचार के साथ एक विशेष अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं. ज्ञात हो कि 2020 में प्रसार भारती ने प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) के साथ अपना सब्सक्रिप्शन रद्द कर दिया था.

हिंदुस्तान समाचार 2017 से प्रसार भारती को अपनी सेवाएं निशुल्क दे रहा है. दोनों पक्षों ने औपचारिक समझौता 9 फरवरी 2023 को किया है, जिसमें प्रसार भारती मार्च 2025 तक दो साल की अवधि के लिए हिंदुस्तान समाचार को करीब 7.7 करोड़ रुपये का भुगतान करेगा.

समझौते में कहा गया है कि हिंदुस्तान समाचार को प्रति दिन कम से कम 100 खबरें प्रसार भारती को देनी होंगी, जिनमें कम से कम 10 राष्ट्रीय खबरें और क्षेत्रीय भाषाओं में 40 स्थानीय खबरें शामिल होंगी.

प्रसार भारती का हालिया कदम पिछले कुछ सालों में समाचार एजेंसी पीटीआई और यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई) के साथ नरेंद्र मोदी सरकार के कड़वे रिश्तों के बाद आया है.

प्रसार भारती के सूत्रों के मुताबिक, सरकार ने 2017 में सार्वजनिक प्रसारक को निर्देशित किया था कि वह परंपरागत समाचार एजेंसियों के सेवाएं समाप्त कर दे. इसके पीछे उसने ‘अनुचित’ सब्सक्रिप्शन फीस का हवाला दिया था.

द वायर  ने 2017 में इस संबंध में की गई एक रिपोर्ट में बताया था कि दोनों एजेंसियों को वार्षिक तौर पर 15.75 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा रहा था, जिसमें पीटीआई की फीस करीब 9 करोड़ रुपये थी.

हालांकि, सूत्र यह भी मानते हैं कि केंद्र सरकार का मानना है कि पीटीआई और यूएनआई दोनों ‘एकपक्षीय’ खबरें दिया करते थे और सरकार ऐसी समाचार एजेंसी चाहती थी जो सरकार की केवल सकारात्मक छवि दिखाए.

अब ट्वीट की एक श्रृंखला में पूर्व केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री एवं कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने दावा किया था कि अपने प्रसारण के लिए प्रसार भारती पर पीटीआई और यूएनआई को हटाकर हिंदुस्तान समाचार को प्राथमिक समाचार एजेंसी के तौर पर शामिल करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकारी का दबाव था.

2016 में द वायर  ने बताया था कि मोदी सरकार ने एमके राजदान द्वारा पद छोड़े जाने के बाद समाचार एजेंसी के प्रधान संपादक के रूप में अपने चुने हुए नामित व्यक्ति को चुने जाने के लिए पीटीआई बोर्ड के साथ सांठगांठ की थी.

2017 में पूर्व सूचना एवं प्रसारण सचिव ने द वायर  को बताया था कि पीटीआई और प्रसार भारती के बीच अच्छे संबंध नहीं हैं और ऐसा प्रसार भारती को सेंट्रल दिल्ली में पीटीआई के भवन से बाहर किए जाने के बाद हुआ था. इसके बाद अक्टूबर 2020 में प्रसार भारती ने अंतत: अपना पीटीआई सब्सक्रिप्शन रद्द कर दिया था.

बता दें कि 2014 से ही मोदी सरकार को पीटीआई के स्वतंत्र समाचार कवरेज से छोटी-बड़ी समस्याएं थीं. हालांकि, मामला प्रकाश में 2020 में तब आया जब प्रसार भारती के एक वरिष्ठ अधिकारी समीर कुमार ने पीटीआई के मुख्य विपणन अधिकारी को लिखा कि लद्दाख गतिरोध पर समाचार एजेंसी का हालिया न्यूज कवरेज ‘राष्ट्रीय हित’ के लिए नुकसानदायक था और ‘भारत की क्षेत्रीय अखंडता’ को कमजोर करने वाला था.

सरकार इस बात से भी खिन्न थी कि पीटीआई ने भारत में चीनी राजदूत और चीन में भारतीय राजदूत का साक्षात्कार किया था. उस समय प्रसार भारती के एक अधिकारी ने संवाददाताओं को बताया था, ‘पीटीआई की राष्ट्र-विरोधी रिपोर्टिंग के चलते संबंध जारी रखना संभव नहीं है.’

तब सरकार को ऐसा लगता था कि चीनी राजदूत का तो साक्षात्कार करना ही नहीं चाहिए था, जबकि भारतीय राजदूत ने साक्षात्कार में चीनी घुसपैठ पर ऐसी टिप्पणी की थी कि जिससे सरकार को शर्मिंदा होना पड़ा था क्योंकि वह टिप्पणी प्रधानमंत्री के उस दावे के विपरीत थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि किसी भी भारतीय क्षेत्र के साथ समझौता नहीं किया गया है.

प्राथमिक समाचार एजेंसी के तौर पर पीटीआई को हटाने के कदम और इसकी जगह कम जानी-मानी हिंदुस्तान समाचार के साथ समझौते का कदम सीधे तौर पर सार्वजनिक प्रसारण को सकारात्मक मीडिया कवरेज के रूप में प्रभावित करने की कोशिश है, साथ ही भगवा समाचार एजेंसी को फिर से खड़ा करने का प्रयास है जो अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है.

हिंदुस्तान समाचार को पीटीआई- जिसके पास देश में रिपोर्टर और फोटोग्राफ का सबसे बड़ा नेटवर्क है- पर तरजीह देना दिखाता है कि सरकार निजी दक्षिणपंथी मीडिया एजेंसी को पुनर्जीवित करने की भी योजना बना रही है.

बहु-भाषी समाचार एजेंसी हिंदुस्तान समाचार की स्थापना 1948 में एक वरिष्ठ आरएसएस प्रचारक और विश्व हिंदू परिषद के सह-संस्थापक शिवराम शंकर आप्टे और आरएसएस विचारक एमएस गोलवलकर द्वारा की गई थी.

जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, हिंदुस्तान समाचार सरकारी विज्ञापनों का नियमित लाभार्थी रहा है और बताया जा रहा है कि उसकी योजना आरएसएस के दिल्ली कार्यालय के पास झंडेवालान में स्थित अपने छोटे कार्यालय को नोएडा में एक बड़े कार्यालय में स्थानांतरित करने की है.

हिंदुस्तान समाचार, जिसका घोषित मिशन ‘राष्ट्रीय’ दृष्टिकोण से खबरों को प्रस्तुत करना है, को आर्थिक संकट के बाद 1986 मे बंद करना पड़ा था. हालांकि, इसे 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल आरएसएस द्वारा पुनर्जीवित किया गया था.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq